महाराष्ट्र की राजनीति में राजमाता बनी गौमाता
तो एक बड़े हिस्से में उसके मांस को बड़ी लज्जत के साथ भक्षण भी किया जाता है। सनातनी तो गाय की पूंछ पकड़ कर वैतरणी पार करने का यकीन रखते हैं। पहले ये विश्वास मनुष्यों तक सीमित था लेकिन अब सियासत में भी सियासी दल चुनावी वैतरणी पार करने के लिए ' गाय ' को ठीक उसी तरह राजमाता बना रहे हैं जैसे की ' गधे ' को वक्त पड़ने पर बाप बनाया जाता है।वैसे ' गाय ' और ' गधे की राशि एक ही है किन्तु दोनों के बीच कोई तुलना ,कोई बराबरी नहीं है। गाय को माता बनाया जाता है और गधे को बाप। ये सिद्धांत मेरे या आपके नहीं बल्कि भारतीय समाज के हैं। ये मान्यताएं भी सनातन ही समझिये। जबसे मनुष्य ने गाय और गधे को अपना सहचर बनाया है शायद तभी से ये मान्यताएं,ये कहावतें समाज में प्रचलित हैं। अब यदि ये प्रचलित हैं तो निश्चित ही इनका कोई आधार भी रहा होगा। फ़िलहाल बात गाय की हो रही है।गाय और गधे में केवल एक ही समानता है कि दोनों बड़े ही धैर्यवान हैं। हालाँकि दोनों को लात मारना आता है।
गाय पर हमारे पुरखा पत्रकार स्वर्गीय राजेंद्र माथुर ने भी लिखा और साथी गिरीश पंकज ने भी। महात्मा गाँधी ने गाय के बजाय बकरी को प्राथमिकता दी ,लेकिन उनकी कांग्रेस ने गाय को ही नहीं उसके बछड़े को और उसके पति बैल को भी सम्मान दिया। एक जमाना था जब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी होता था और बाद में ये गाय-बछड़ा भी बना। इस सात्विक चौपाये ने कांग्रेस की हमेशा मदद की। कांग्रेस को अनेक बार चुनावी वैतरणी पार करायीं। कांग्रेस को हुए फायदे को देखकर अब महाराष्ट्र सरकार ने गाय को अपने सूबे की राजमाता घोषित कर दिया।ये इसलिए हुआ क्योंकि महाराष्ट्र नवंबर में विधानसभा के चुनाव होना हैं।
गाय सबका सहारा होती है । जब हम सब छात्र हुआ करते थे तब गाय हमारा भी सहारा थी। परीक्षा में हर बार गाय पर निबंध लिखने का विकल्प होता था और हम बच्चे किसी और विषय पर निबंध लिखने के बजाय गाय पर निबंध लिखना पसंद करते थे। गाय केवल एक पशु ही नहीं बल्कि हमारी मान्यता भी है । हमारे समाज में गाय को सबसे सीधा चौपाया माना जाता है। उसके इसी स्वभाव की वजह से कहावत तक बन गयी । हमारे यहां अक्सर सीधे पुरुष और महिला को गाय ही कहा जाता है । कृषि प्रधान देश में एक जमाने में गाय को सचमुच राजमाताओं जैसा सम्मान मिलता था ,क्योंकि वे कृषि के लिए बैल जनती थीं। उस जमाने में जिस किसान के घर जितनी ज्यादा गायें और जितनी ज्यादा बैल जोड़ियां होतीं थीं,उसे उतना समृद्ध माना जाता था। घर-घर में गौशालाएं थीं। तब गायों को सड़कों पर गलियों में आवारगी करने की न छूट थी और न मजबूरी।
कालांतर में भारत कृषि प्रधान देश तो है किन्तु आज न किसानों का सम्मान है और न गायों का। अब खेती बैलों की जोड़ियों से नहीं मशीनों से होती है । बैलों की जगह ट्रेक्टरों ने ले ली है। कटाई मजदूरों के पेट पर हार्वेस्टर लात मार चुके हैं। ऐसे में गायों और बैलों का बेरोजगार और महत्वहीन होना स्वाभाविक है। अब गाय और बैल पाले कौन ? आज के समय में तो आदमी के लिए अपना पेट पालना ही मुश्किल हो रहा है । 85 करोड़ लोग पेट पालने के लिए सरकार पर निर्भर हैं। सरकार अपने वोटर पाले या गाय ? यहां तक कि गाय को राजमाता का सम्मान देने वाले भाजपा के कार्यकर्ता और नेता तक गाय या बैल नहीं पालते । उन्हें या तो सड़कों पर छोड़ दिया जाता है ,या वे कत्लगाहों के काम आते है। जहाँ उनके मांस को डिब्बों में बंद कर बाजारों में बेच दिया जाता है। आप हैरान होंगे कि गाय-बैल का मांस बेचने वाले विधर्मी नहीं बल्कि सनातन धर्म के मानने वाले ही हैं। महाराष्ट्र सरकार ने गाय को राज्यमाता का दर्जा दे दिया है। यह बड़ा कदम चुनाव से पहले उठाया गया है। सरकार ने कैबिनेट बैठक में यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वैदिक काल से भारतीय संस्कृति में देशी गाय की स्थिति, मानव आहार में देशी गाय के दूध की उपयोगिता रही है।
यह फैसला जारी करते हुए कहा गया कि वैदिक काल से भारतीय संस्कृति में देशी गाय की स्थिति, मानव आहार में देशी गाय के दूध की उपयोगिता, आयुर्वेद चिकित्सा,पंचगव्य उपचार पद्धति तथा जैविक कृषि प्रणालियों में देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र के महत्वपूर्ण स्थान को ध्यान में रखते हुए देशी गायों को अब से 'राज्यमाता गोमाता' घोषित करने की मंजूरी दी गई है। हम महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को इस फैसले कि लिए बधाई देते हैं। हमें उम्मीद है कि अब महाराष्ट्र में तो गाय बच ही जाएगी । देश के जिन राज्यों में डबल इंजिन की सरकारें हैं वे भी आज नहीं तो कल गाय को राजमाता का दर्जा दे ही देंगीं। भारत को कोई भी नागरिक,कोई भी मतदाता गाय को दिए गए इस सम्मान का विरोध नहीं कर सकता। करना भी नहीं चाहिए । आखिर गौशालाओं के नाम पर पलने वाले नेता और बाबा भी तो बहुत हैं।
देश भले ही मंगल ग्रह पर पहुंच गया हो लेकिन विकास की हकीकत ये है कि आज भी सड़क परिवहन का एक बड़ा भाग आज भी बैलगाड़ी पर निर्भर है। देहाती ईंधन का अधिकांश भाग तथा शहरी ईंधन का लगभग 20 प्रतिशत भाग गोबर का होता है। गौ-दुग्ध में समस्त पोषक तत्व पाए जाते हैं। पिछड़े वर्ग के लोगों और वनवासियों की आय का साधन भी गौ-वंश है। गाय से प्राप्त ऊर्जा पर्यावरण प्रदूषण फैलाने की जगह उसे रोकती है तथा दुग्ध पाउडर व रासायनिक खादों के रूप में देश से बाहर जाने वाली देशी मुद्रा की बचत करती। गाय केवल सियासत के ही नहीं बल्कि धार्मिक नेताओं के काम भी आती है। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हिंदुओं के लिए पूज्य गायों की रक्षा के लिए देशभर में एक लाख ‘गौ ध्वज’ स्थापित करने कि अभियान में लग गए हैं।हमारे प्रधानमंत्री जी को आपने हाल में ही एक बछिया को ' किस ' करते हुए देखा ही होगा।
सरकारी आंकड़ों कि मुताबिक इस समय देश में गायों की संख्या 19 करोड़ से ज्यादा है। एक समय था, जब देश की जनसंख्या 38 करोड़ हुआ करती थी और गौ वंश 117 करोड़ हुआ करता था। आंकड़े बताते हैं कि बीफ एक्सपोर्ट में भारत अब विश्व में दूसरे नंबर पर पहुँच गया है। भारत ‘मिथुन’ और ‘जलीय भैंस’ का निर्यात कर रहा है। सन् 2023 में भारत ने 1,475 टन बीफ और बछड़े का मांस एक्सपोर्ट किया है। खैर जो है सो है। अब यदि राजमाता बनने कि बाद हमारी गायों को राजमाताओं जैसा सुख भी मिलने लगे तो सबसे ज्यादा ख़ुशी मुझे होगी क्योंकि मुझे भी गाय बहुत पसंद है। मैं यदि फ़्लैट में न रह रहा होता तो एक गाय जरूर पालता।