व्यक्ति को कर्मयोगी बनाकर जीवन को सफलता का मंत्र देती हैं गीता: सुरेश दूबे
Geeta gives the mantra of success in life by making a person a Karmayogi: Suresh Dubey
Sat, 7 Dec 2024
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)।गोण्डा में आवास विकास कालोनी के निवासी व सचिवालय लखनऊ में अनुरक्षण में सेवारत 58 वर्षीय इं. सुरेश दूबे पिछले 25 वर्ष से अपना जीवन श्रीमद्भगवत गीता को समर्पित कर दिया है।
आगामी 15 दिसंबर को आयोजित होने वाले 24वें गीता वार्षिकोत्सव की तैयारी में व्यस्त नगर में कर्मयोगी रूप में प्रसिद्ध सुरेश दूबे ने वार्ता क्रम में आध्यात्मिक संस्था 'गीता गोष्ठी' की चर्चा करते हुए बताया कि दो दशक पूर्व नगर के चार पांच उत्साही युवा साथियों के सहयोग से हमने गीता के अध्ययन अनुशीलन व नगर के अध्यात्म से जुड़े बौद्धिक वर्ग को एक मंच पर खड़ा करने के लिए 'गीता- गोष्ठी' का गठन किया था।विशुद्ध आध्यात्मिक चिंतन के लिए गठित यह संस्था जनसहयोग पर आधारित है और कभी कोई सरकारी अनुदान लेने का प्रयास नही किया। हमने प्रत्येक रविवार को दोपहर में गीता पाठ व चर्चा करने साप्ताहिक गोष्ठियां सदस्यों के आवास पर शुरू की। पिछले 24 वर्षो से साप्ताहिक गोष्ठियां चल रही है। इसके अतिरिक्त मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को गीता गोष्ठी के चौबीसवें वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें देश व विदेश के लब्थ प्रतिष्ठित विद्वान संत महात्माओं का गीता पर प्रवचन व संगीतकारों का शास्त्रीय गायन होता है रहा है।
गोष्ठी के गठन की प्रेरणा कैसे मिली के जवाब में वे कहते हैं कि वर्ष 2000 में हमने स्व. पीएन श्रीवास्तव व जनार्दन सिंह आदि साथियों के साथ इसका गठन किया हम सभी युवा साथी धर्म के मूल तत्व के जिज्ञासु थे।
गीता के अनुशीलन से हमें आभास हुआ कि साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के मुख से मोहग्रस्त अर्जुन को बोध कराने वाली 700 श्लोकों में वर्णित गीता व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए चिंतामुक्त कर कर्म की प्रेरणा देती हैं।यह हमें वैराग्य नही कर्मयोगी बनाती है इसलिए संतों की अपेक्षा गृहस्थों को गीता के सिद्धांत को जीवनचर्या में शामिल करनी चाहिए। आचरण ज्ञान भक्ति व वैराग्य से युक्त व भाग्यवाद चरम महत्वाकांक्षा व हानि लाभ के मोह से मुक्त कर्म प्रेरक गीता संसार का एकमात्र सद्ग्रंथ हैं जिसकी विश्व स्तर पर सभी भाषाओं में सर्वाधिक टीका हुई है। युद्ध के मैदान में आज से 5200 वर्षो पूर्व भगवान के श्रीमुख से कही गई गीता के 700 श्लोकों में एक भी श्लोक नही कहा गया है जिसे साम्प्रदायिक अथवा उसे अन्य धर्मावलंबियों के खिलाफ ठहराया जा सके। आवश्यकता है कि भारत सरकार को गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित कर सभी विद्यालय विश्वविद्यालय व कालेजों में शिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।