भक्तिन घुश्मा के नाम से प्रसिद्ध हैं घुश्मेश्वर महादेव

Ghushmeshwar Mahadev is famous by the name of Bhaktin Ghushma
 
Ghushmeshwar Mahadev is famous by the name of Bhaktin Ghushma
भगवान शिव की सहजता, सरलता और अहंकाररहित स्वरूप की अनेक कथाएँ पुराणों में मिलती हैं। वे भक्तों के प्रति इतने समर्पित हैं कि कई स्थानों पर उनके नाम से नहीं, बल्कि अपने भक्तों के नाम से पूजे जाते हैं। ऐसा ही एक पावन स्थल है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो भगवान शिव की अनन्य भक्त घुश्मा के नाम से जाना जाता है।

शिवपुराण में वर्णित है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा

शिवमहापुराण की कोटिरुद्र संहिता में विस्तार से इस ज्योतिर्लिंग की कथा का उल्लेख मिलता है। यह ज्योतिर्लिंग एक पवित्र सरोवर "शिवालय" के निकट स्थित है, जहाँ भगवान शिव स्वयं लिंगरूप में प्रकट हुए और भक्त घुश्मा के नाम से ‘घुश्मेश्वर’ कहलाए।

घुश्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव हुए प्रकट

पुराणों के अनुसार, दक्षिण दिशा में स्थित देवगिरी पर्वत के पास सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहते थे। संतानहीनता के कारण सुदेहा ने अपनी बहन घुश्मा का विवाह सुधर्मा से करवा दिया। घुश्मा भगवान शिव की घोर भक्त थी और प्रतिदिन 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करती थी।
ईर्ष्यावश सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी, किंतु घुश्मा ने अपना विश्वास नहीं छोड़ा। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया और उस स्थान पर ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हो गए।
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घुश्मेश्वर दर्शन से मिटते हैं पाप, मिलती है शांति

शिवपुराण में उल्लेख है कि घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है, और जो भक्त यहां श्रद्धा से पूजा करते हैं उन्हें आध्यात्मिक शांति, उन्नति और सुखों की प्राप्ति होती है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के आत्म-प्रकट स्वरूप का प्रतीक माना जाता है।
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महाराष्ट्र के वेरुल गांव में स्थित है घुश्मेश्वर महादेव मंदिर

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के वेरुल गाँव में स्थित है, जो प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं के निकट है। यह स्थान औरंगाबाद शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। इसे घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, घुश्मेश्वर मंदिर अथवा घुश्मेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

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