गणतंत्र से भारतीय नागरिक का वैश्विक संवाद

Global dialogue of Indian citizen with the Republic
 
गणतंत्र से भारतीय नागरिक का वैश्विक संवाद 

(विवेक रंजन श्रीवास्तव -विभूति फीचर्स)  छब्बीस जनवरी का दिन था। मैं सुबह सुबह एक आयोजन में जाने को निकला तो एक बुजुर्गवार से भेंट हो गई। उम्र पचहत्तर पार की परिपक्व लग रही थी, पर पूरे चुस्त दुरुस्त दिखे। बोले आज  जगह जगह मेरे सम्मान में आयोजन हैं ।  मैंने अभिवादन में मुस्कराते हुए कहा “अमर रहे गणतंत्र हमारा”।


 तभी एक मंहगी कार फर्राती हुई निकली,कार की छत वाली खिड़की से एक ब्रांडेड अर्धनग्न वस्त्रों में सजी संवरी युवा लड़की हाथ हिला कर जश्न मनाती नजर आ रही थी। बाजू से ही एक पुरानी स्कूटी पर तीन सवारियां निकली , इसमें भी एक फटे कपडे़ पहने करीब अर्धनग्न महिला अपनी चुनरी में स्वयं को समेटे बैठी,कही जा रही थी,शायद गणतंत्र दिवस के उत्सव में। गणतंत्र ने यह अंतर देखा तो बस मुस्करा कर रह गया । 

Global dialogue of Indian citizen with the Republic


  बातों बातों में मैने पूछा कहां घूम आए । गणतंत्र बोला, कुछ समय पहले श्रीलंका गया था, वहां के संविधान के चीथड़े बनते राष्ट्रपति भवन के हाल देख लौट आया,फिर अपने साथ ही आजाद हुए पड़ोसी देश का हाल चाल लेने एक दिन बाघा बार्डर से लाहौर चला गया तो देखा वहां “जिसकी लाठी उसकी भैंस" वाला  संविधान चल निकला है। मिलिट्री राज था वहां। पूरब की  तरफ देखा तो बांग्लादेश में संविधान की धज्जियां उड़ रही थी। प्रधानमंत्री जान बचाकर भागती मिली ।नोबल पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति भी कट्टरपंथियों के हाथों खिलौना बना दिखा । वाम का बड़ा नाम सुना था पर पाया कि चीन , उत्तर कोरिया में कौन कब गायब हो जाए, पता ही नहीं चलता । रशिया कभी मार्क्स का वैचारिक केंद्र रहा है किन्तु आज ये हालात हैं कि यूक्रेन और रूस जो कभी एक देश थे , इस कदर भिड़ चुके हैं कि दुनियां त्राहि त्राहि कर रही है।अमेरिका लोकतंत्र का दम भरता है , किंतु राष्ट्रवाद का ऐसा बुखार वहां चल पड़ा है कि बिना संविधान संशोधन किए ही राष्ट्रपति मनमर्जी से बाई बर्थ नागरिकता की संवैधानिक व्यवस्था ही बदल रहे हैं। 

 गणतंत्र ने गहरी सांस भरते हुए कहा कि संविधान महज किताब नहीं होता । भाषणों में हवा में किताब लहराने से गणतंत्र की रक्षा नहीं होती ।  नियमों के परिपालन में ही गणतंत्र का जीवन निहित होता है। गणतंत्र वास्तव में जन साधारण का आचरण और चरित्र  है। किताबों में तो बहुत कुछ है, पर उन सद् वाक्यों को जीवन में उतारना होता है। 


   भारत के सांस्कृतिक जीवन में गीता, गुरु ग्रन्थ साहब और मानस घुली मिली है। भारतीय संविधान के शाश्वत मूल्यों में उदारता,परस्पर सम्मान , आजादी , सहिष्णुता, सदाशयता, सत्य , अभिव्यक्ति जैसे बुनियादी तत्व हमारी संस्कृति से आए हैं, इसीलिए मुझे विश्वास है कि भारत में गणतंत्र अमर है ।  यह वह देश है जहां राजा राम के एक धोबी की फुसफुहाट पर अपनी रानी को त्याग देने के उदाहरण हैं वरना कितने ही हैं जो हूरों की लालसा में बेखौफ कितनी ही आतंकी हत्याएं कर डालते हैं । यदि उन्हें इसी धरती पर हूर मिल भी जाती है, तो ये उसकी बोटियां बनाकर फ्रिज में भर डालते हैं। 

महर्षि महेश योगी ने विश्व सरकार की परिकल्पना प्रस्तुत की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व नागरिकता , वीजा रहित आवागमन के लिए वातावरण बनाना चाहिए। अंतरिक्ष मानव मात्र का हो , विज्ञान के अनुसंधान पर सबका हक हो । भारत की सांस्कृतिक चेतना में वसुधैव कुटुंबकम् का सिद्धांत पीढ़ी दर पीढ़ी,नानी दादी की कहानियों में समाहित होकर हर नई पीढ़ी तक पहुंच जाता है। इसीलिए मैं कहता हूं कि भारत का संविधान महज किताब नहीं, यहां गणतंत्र जनता की रगो में जन्मना मौजूद है। प्रत्येक गणतंत्र दिवस पर यह सब फिर फिर दोहराकर हमें गणतंत्र को अमर बनाए रखने के इस संकल्प को पीढ़ी दर पीढ़ी और मजबूत बनाए रखना  है। (विभूति फीचर्स)

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