हामिद मीर का चौंकाने वाला बयान: “अफगानिस्तान के 33% लोग पागल हैं?” — ह्यूमर के पीछे छुपी गंभीर सच्चाई
हामिद मीर का चौंकाने वाला बयान: “अफगानिस्तान के 33% लोग पागल हैं?” — ह्यूमर के पीछे छुपी गंभीर सच्चाई
Geo News के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर का हालिया बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने कहा कि लगभग 33% लोग मानसिक रूप से बीमार या “सेमी-इन्सेन” हैं। यह सुनते ही लोगों में हैरानी, बहस और हंसी—तीनों एक साथ देखने को मिलीं। कुछ ने इसे मज़ाक माना, तो कुछ ने कहा कि इसमें कड़वी सच्चाई छुपी है।
हामिद मीर के मुताबिक, इस हालत के पीछे सबसे बड़ा कारण है—आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा की अनिश्चित स्थिति। उनका कहना था कि जब देश की अर्थव्यवस्था ICU में हो, राजनीति रोज़ के ड्रामे जैसी बन जाए और हर सुबह लोग यह सोचकर उठें कि “आज कौन-सा नया सरप्राइज़ मिलेगा?”, तो मानसिक तनाव बढ़ना लाज़मी है।
महंगाई, बिजली और रोज़मर्रा का तनाव
आज हालात ऐसे हैं कि तनख्वाह आते ही गायब हो जाती है। बिजली आएगी या जाएगी—यह अब एक नेशनल गेम बन चुका है। गैस, इंटरनेट और बाकी सुविधाओं का मूड कभी ऊपर तो कभी बिल्कुल नीचे रहता है। ऐसे माहौल में दिमाग का फ्यूज उड़ जाना कोई हैरानी की बात नहीं।
राजनीति ने सबको “एक्सपर्ट” बना दिया
हामिद मीर ने मज़ाकिया लहजे में कहा कि राजनीतिक अस्थिरता ने हर आम आदमी को फिलॉसफर और विश्लेषक बना दिया है। हर चाय के ढाबे पर प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख और वित्त मंत्री बैठे होते हैं। कोई कहता है “मेरे पास समाधान है”, तो कोई जवाब देता है “सब साज़िश है।” मुफ्त की थेरैपी हर जगह उपलब्ध है—बस सुनने वाला चाहिए।
आर्थिक संकट और मीडिया का ड्रामा
पेट्रोल के दाम ऐसे बढ़ रहे हैं जैसे रॉकेट लॉन्च हो रहा हो। न्यूज़ चैनलों पर हर ब्रेकिंग न्यूज़ मिनी हार्ट अटैक जैसी लगती है। एंकर इतना ड्रामेटिक अंदाज़ अपनाते हैं कि पीछे हॉरर मूवी का म्यूज़िक चल जाए तो भी अजीब न लगे। आम आदमी रिमोट हाथ में लेकर सोचता है—न्यूज़ देखूं तो टेंशन, न देखूं तो FOMO।
सोशल मीडिया ने बढ़ाई उलझन
सोशल मीडिया पर तो हर व्यक्ति एक्सपर्ट है। कोई एक ट्वीट में IMF का हल बता देता है, दूसरा विदेश नीति सुधार देता है और तीसरा वर्ल्ड कप टीम चुन लेता है। इतनी मल्टी-टास्किंग में दिमाग का हैंग होना बिल्कुल नॉर्मल हो गया है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
अगर आंकड़ों पर नज़र डालें, तो हाल के सर्वे और स्टडीज़ में भी मानसिक तनाव, एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन की दर काफी ऊंची बताई गई है। कई कम्युनिटी-आधारित स्टडीज़ में यह आंकड़ा 30% से ज्यादा तक पाया गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि हामिद मीर ने इसे सीधे और थोड़े मसालेदार अंदाज़ में कह दिया।
“पागलपन” नहीं, बल्कि मानसिक थकान
असलियत यह है कि यहां “पागलपन” की बात नहीं हो रही, बल्कि रोज़मर्रा के तनाव, चिंता और अवसाद जैसी आम मानसिक समस्याओं की। सबसे बड़ी समस्या यह है कि मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं और ज़रूरतमंद लोगों में से ज़्यादातर को सही इलाज नहीं मिल पाता।
निष्कर्ष
हामिद मीर का बयान भले ही ह्यूमर और एक्सैजरेशन से भरा हो, लेकिन उसका संदेश गंभीर है। जब आर्थिक दबाव, राजनीतिक अनिश्चितता और मीडिया का शोर रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा बन जाए, तो मानसिक थकान होना स्वाभाविक है। लोग हंस भी रहे हैं, बहस भी कर रहे हैं और कहीं न कहीं यह सोचने पर मजबूर भी हो रहे हैं कि शायद देश को थोड़ी शांति, स्थिरता और कम “ब्रेकिंग न्यूज़” की ज़रूरत है—ताकि चाय के साथ सिर्फ राजनीति नहीं, सुकून भी मिल सके।
