हरियाली अमावस्या: प्रकृति, परंपरा और पर्यावरण चेतना का उत्सव
Hariyali Amavasya: A celebration of nature, tradition and environmental consciousness
Wed, 23 Jul 2025
पवन वर्मा – विनायक फीचर्स
भारत की सांस्कृतिक विरासत में ऋतुओं के अनुसार पर्व और परंपराएं रची-बसी हैं। श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला हरियाली अमावस्या भी ऐसा ही एक पर्व है, जो प्राकृतिक सौंदर्य, लोक आस्था और आध्यात्मिक चेतना का अद्भुत संगम है। यह दिन सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण की सामाजिक चेतना से भी जुड़ा हुआ है।
हरियाली का उत्सव
“हरियाली अमावस्या” नाम से ही स्पष्ट है कि यह पर्व प्रकृति की हरितिमा, समृद्धि और उसकी निरंतरता का प्रतीक है। श्रावण मास के मध्य जब धरती हरियाली से आच्छादित होती है, तब यह पर्व एक प्राकृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। खेत-खलिहान, बाग-बगिचे और वन इस समय जीवन से भर जाते हैं। परंपरागत रूप से इस दिन वृक्षारोपण, नदी-तालाबों की पूजा, देवी-देवताओं का पूजन और पर्यावरणीय गतिविधियां की जाती हैं।
धार्मिक महत्व और परंपराएं
हरियाली अमावस्या पर भगवान शिव, माता पार्वती और नागदेवता की विशेष पूजा की जाती है। महिलाएं उपवास रखकर शिव-पार्वती से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। जगह-जगह पीपल, वट वृक्ष, नीम आदि वृक्षों की पूजा की जाती है। जल स्रोतों की साफ-सफाई कर उन्हें सजाया जाता है। नवविवाहित स्त्रियाँ मायके जाकर झूले झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और इस दिन को उल्लास से मनाती हैं।
मेरी माँ इस दिन घर के दरवाज़े पर हरे रंग से पारंपरिक आकृतियाँ बनाती हैं और खीर-पूड़ी का भोग लगाकर "हरियाली" की पूजा करती हैं। यह लोक मान्यताओं और पारिवारिक परंपराओं का सुंदर रूप है।
अलग-अलग नाम, एक ही उद्देश्य
हरियाली अमावस्या देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न नामों से जानी जाती है:
- उत्तर भारत: हरियाली अमावस्या
- राजस्थान: श्रावणी अमावस्या
- गुजरात: वनों महोत्सव
- मध्य भारत: हरियाली पूजा
- दक्षिण भारत: आषाढ़ अमावस्या
हर क्षेत्र की परंपराएं भले भिन्न हों, लेकिन उद्देश्य एक ही है — प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण के प्रति जागरूकता।
पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण
इस दिन को वन महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। सरकारी और निजी संस्थान वृक्षारोपण अभियान चलाते हैं। स्कूल-कॉलेज, सामाजिक संगठन और नागरिक मिलकर लाखों पौधे लगाते हैं, जिससे हरियाली बढ़ती है और पर्यावरणीय संतुलन मजबूत होता है। यह पर्व इस बात की याद दिलाता है कि वृक्षों के बिना जीवन असंभव है — वे न केवल हमें ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि छाया, फल और औषधियाँ भी प्रदान करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण
वर्षा ऋतु का यह मध्यकालीन समय वृक्षारोपण के लिए सबसे अनुकूल माना गया है। इस मौसम में मिट्टी में नमी और उपजाऊपन अधिक होता है, जिससे पौधों की जड़ें अच्छे से जमती हैं और वे तेजी से वृद्धि करते हैं। पूर्वजों ने इस मौसम को धार्मिक रूप देकर एक सामूहिक जागरूकता अभियान बना दिया — जो आज के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पूर्णतः उपयुक्त है।
आइए प्रकृति को नमन करें
हरियाली अमावस्या हमें यह सिखाती है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध अत्यंत गहरा है। जब हम वृक्ष लगाते हैं, तो न सिर्फ पर्यावरण बचाते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को जीवन का उपहार देते हैं। तो इस हरियाली अमावस्या पर हम सब प्रण लें एक पौधा अवश्य लगाएं, उसकी देखभाल करें और प्रकृति के साथ अपना संबंध और भी मजबूत बनाएं।

