नज़र अपने नहीं आते, उसे दिखता है बस पैसा

He doesn't see his own people, he only sees money
 
He doesn't see his own people, he only sees money
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)।नवोदय साहित्यिक एंव सांस्कृतिक संस्था, लखनऊ की मासिक काव्य गोष्ठी "नवोदय प्रांगण" में डा शिव मंगल सिंह "मंगल" की अध्यक्षता में, आज 23 फरवरी को, सम्पन्न हुई।
मुख्य अतिथि उमा शंकर तिवारी, विशिष्ठ अतिथि अवधेश श्रीवास्तव , उन्नाव व प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव "प्रणय" सीतापुर।
मंच संचालन गोपाल ठहाका जी द्वारा।
आज के कार्यक्रम में "श्रीमती मुन्नी देवी एवं पं रामतेज तिवारी अध्यात्मिक संस्थान, लखनऊ द्वारा नवोदय साहित्यिक एंव सांस्कृतिक संस्था के संस्थापक-अध्यक्ष अष्ठाना महेश "प्रकाश" को "गोपाल सिंह नेपाली सम्मान वर्ष 2025 से, पं उमा शंकर मिश्र द्वारा सम्मान पत्र, स्मृति चिन्ह व अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
आज के सहभागी कवि सर्वश्री
अवधेश श्रीवास्तव , उन्नाव, 
सुंदरता यदि कहीं देखनी माँ का रूप निहारे तुम।
पल्लू उसका सिर पे होता, ढंग से रूप निहारे तुम।।
निहारिका गुप्ता , हरदोई 
नेता जी का चेहरा उजला, मन बड़ा ही काला है।
हर किसी को जीजा जी कहते, खुद को बताते साझा हैं।।
प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव , सीतापुर 
उम्र हो या जवानी एक दिन ढ़ल जाती है।
रूप की रंगत सदा ना एक सी रह पाती है।।
डा शिव मंगल सिंह "मंगल" जी
गीत हम उनके गाते हैं।
चरण रज शीश लगाते है।
मातृ भूमि की बलिवेदी पर।
वीर जो प्राण गवाते हैं।।
राम शंकर वर्मा जी
कवि हो तो कवि धर्म का करो तनिक निर्वाह।
कविता मत गिरवी रखो चन्द टकों की चाह।।
अमर जी विश्वकर्मा जी
खुद्दारियों ने मेरी अना टूटने न दी।
मैं डूबता रहा मगर आवाज तक न दी।।
ठेठ मलिहाबादी
गाँव छूटा है जब से, मैं ग़म सा गया हूँ।
मैं शहर आ गया हूँ मैं शहर आ गया हूँ।।
महेश शर्मा जी
मन्दिर मस्जिद चर्च गुरुवार
नदिया पर्वत जंगल सारे
ढ़ूँढ़ ढ़ूँढ़ थक हार गया मैं 
कहीं मिले ना मोहन प्यारे।।
विनीत श्रीवास्तव जी
भुला बैठा है अपनो को, है इंसा आज का कैसा
नज़र अपने नहीं आते, उसे दिखता है बस पैसा।।
गोपाल ठहाका जी
कागा जैसे हो गए, हम सबके बोल।
कद्दू लम्बे हो गए,लौकी हो गई गोल।।
उमा शंकर त्रिपाठी जी, नोयडा
चलता रहूँ कर्म पथ पर, पग पीछे मेरे न हटें।
सच्चाई की राह पर,लेखनी मेरी न डिगे।।
आनंद "आकुल"
चश्मे नम से ख्वाबों को सींचते रहे।
दिन महीने, साल यूँ ही बीतते रहे।।
अष्ठाना महेश "प्रकाश"
आजादी का वह संघर्ष, इतिहास लिखा है काला।
पद लोलुप चाटुकारिता ने,आतंक बता है डाला।
ना देखी थी जेल सलाखें, कर के अंग्रेज गुलामी।
आजादी की उस बेला में, परिवारवाद को ढ़ाला।।
सुधीर श्रीवास्तव जी
कहानीकार, लेखक, पत्रकार जी ने, अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम को चार चाँद लगाए।।

Tags