Hindu Death Rituals : मृत्यु के बाद के संस्कार: सम्मान, श्रद्धा और सांस्कृतिक परंपराएं

 

Hindu Death Rituals   Post -death rites: respect, reverence and cultural traditions

 
Hindu Death Rituals : मृत्यु के बाद के संस्कार: सम्मान, श्रद्धा और सांस्कृतिक परंपराएं

जीवन और मृत्यु भारतीय दर्शन में एक ही सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं। जैसे जन्म के साथ आनंद, रीति-रिवाज और संस्कार जुड़े होते हैं, वैसे ही मृत्यु भी एक आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है, जिसे विशिष्ट धार्मिक प्रक्रियाओं के साथ पूरा किया जाता है।

मृत्यु के बाद की प्रक्रिया: एक अंतिम विदाई

हिंदू धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा की यात्रा जारी रहती है। इसी कारण, मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए विशिष्ट क्रियाएं और संस्कार किए जाते हैं।

जब किसी का निधन होता है, तो पार्थिव शरीर को घर के आंगन या किसी पवित्र स्थान पर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाता है। फिर उसे स्नान करवा कर स्वच्छ, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। शरीर को फूलों और माला से सजाया जाता है — यह श्रद्धा और आत्मीय विदाई का प्रतीक होता है, जो मृतक के प्रति सम्मान व्यक्त करता है।

अर्थी उठने के बाद फूल तुरंत क्यों नहीं हटाए जाते?

अर्थी में चढ़ाए गए फूल केवल सजावटी वस्तु नहीं होते, बल्कि मृतक के प्रति श्रद्धा, प्रेम और जुड़ाव के प्रतीक होते हैं। हिंदू परंपरा के अनुसार, जब अर्थी उठती है, तो उन फूलों को तुरंत हटाना या साफ करना धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना जाता है।

यह माना जाता है कि ऐसे फूलों को तुरंत हटाने का अर्थ होता है – मृतक की स्मृति को जल्दबाज़ी में मिटा देना। इससे मृत आत्मा के प्रति असंवेदनशीलता झलकती है। इसलिए इन फूलों को कुछ समय के बाद सम्मानपूर्वक एकत्र कर या तो पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है, या किसी वृक्ष के नीचे विसर्जित किया जाता है। कहीं-कहीं इन्हें अर्थी के साथ ही श्मशान तक ले जाया जाता है, जिससे यह संदेश जाए कि मृतक से जुड़ी हर वस्तु को आदरपूर्वक अंतिम यात्रा में सम्मिलित किया गया।

अर्थी के तुरंत बाद झाड़ू लगाना क्यों वर्जित है?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद कुछ समय तक मृत आत्मा घर के आसपास रहती है। ऐसे में झाड़ू लगाना यह संकेत देता है कि आत्मा को घर से बाहर कर दिया गया, जो अशुभ माना जाता है।

झाड़ू लगाने और घर की सफाई का कार्य एक निर्धारित शुभ समय पर ही किया जाता है, जो पंडित या परिवार के वरिष्ठ सदस्य तय करते हैं। ऐसा करने से न केवल धार्मिक परंपराओं का पालन होता है, बल्कि आत्मा को सम्मानपूर्वक विदा करने का अवसर भी मिलता है।

एक नई यात्रा की शुरुआत के रूप में मृत्यु

भारतीय संस्कृति में मृत्यु को अंत नहीं बल्कि एक और जीवन के आरंभ के रूप में देखा जाता है। जैसे देवताओं को पूजा के समय वस्त्र पहनाए जाते हैं, फूल अर्पित किए जाते हैं, वैसे ही मृत्यु के बाद भी आत्मा को उसी श्रद्धा और सम्मान से विदा किया जाता है।

स्वच्छ वस्त्र, पुष्पों की सजावट और शांति पाठ – ये सभी संकेत हैं कि जीवन चाहे समाप्त हो गया हो, लेकिन मृतक के प्रति प्रेम, कृतज्ञता और आदर का भाव अंतिम क्षण तक बना रहता है।

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