हिंदू साम्राज्य दिवस: छत्रपति शिवाजी महाराज के राष्ट्र पुनर्जागरण का प्रेरक उत्सव

शिवाजी महाराज: धर्म, स्वराज और आत्मसम्मान के प्रतीक
मुगल शासनकाल में जब भारत घोर अत्याचारों, धार्मिक उत्पीड़न, मंदिर विध्वंस और जजिया कर की त्रासदी से जूझ रहा था, तब शिवाजी महाराज ने माताजी जीजाबाई के संस्कारों के साथ स्वराज्य का संकल्प लिया। उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग को जोड़कर एक राष्ट्रवादी चेतना को पुनः जाग्रत किया – ठीक वैसे ही जैसे त्रेतायुग में श्रीराम ने लंका विजय से पहले समाज को संगठित किया था।
शिवाजी का राज्याभिषेक ऐसे कालखंड में हुआ जब समाज के बुद्धिजीवी और योद्धा भी यह मान बैठे थे कि परिवर्तन असंभव है। परंतु शिवाजी ने वह कर दिखाया जिसकी कल्पना तक उस समय करना दुस्साहस माना जाता था। उन्होंने हिंदू पद पादशाही की स्थापना कर न केवल भौगोलिक सीमाओं का विस्तार किया, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वाभिमान को भी पुनः जागृत किया।
नायक से सम्राट तक: शिवाजी की रणनीति और नेतृत्व
छत्रपति शिवाजी महाराज केवल मराठा सरदार नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के नायक बने। उनका शासन तंत्र, भ्रष्टाचारमुक्त और जनकल्याणकारी था। उन्होंने अपने सैनिकों को यह स्पष्ट निर्देश दिए थे कि वे भारतवर्ष के लिए लड़ें, किसी विशेष राजा या राज्य के लिए नहीं।
उनकी रणनीति में नैतिकता और व्यवहारिकता दोनों का अद्भुत समन्वय था:
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छापामार युद्ध शैली में वे निपुण थे
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गुप्तचर व्यवस्था अत्यंत सुदृढ़ थी
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युद्ध में महिलाओं की गरिमा की रक्षा सर्वोपरि थी
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हर वर्ग और धर्म के प्रति न्यायपूर्ण नीति अपनाई गई
अफजल खां के वध में शिवाजी की रणनीतिक कुशलता और “जैसे को तैसा” नीति का उदाहरण आज भी प्रेरणास्पद है।
भारतीय नौसेना के अग्रदूत
शिवाजी महाराज को आधुनिक भारतीय नौसेना का जनक कहा जाता है। उन्होंने समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए सशक्त नौसेना का गठन किया। अंडमान सहित कई तटीय क्षेत्रों में चौकियाँ स्थापित कर अंग्रेजों, पुर्तगालियों और डच शक्तियों से सफलतापूर्वक टक्कर ली। उनका दृष्टिकोण सीमित नहीं था – वह सम्पूर्ण राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा में विश्वास रखते थे।
घरवापसी और सामाजिक पुनरुत्थान
उनके शासनकाल में उन लोगों की ‘घरवापसी’ कराई गई जिन्होंने मुगल अत्याचारों के कारण धर्म परिवर्तन किया था। यह कार्य समाज के अस्तित्व और आत्मबल की रक्षा के लिए आवश्यक था। उनकी नीतियाँ धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित थीं – उन्होंने कभी भी अन्य धर्मों में हस्तक्षेप नहीं किया।
नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन
छत्रपति शिवाजी का जीवन नेतृत्व, दूरदृष्टि और राष्ट्रनिर्माण का जीवंत उदाहरण है। आज जब समाज पुनः विभाजनकारी विचारों और चुनौतियों से जूझ रहा है, तब शिवाजी की नीतियाँ और आदर्श अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उन्होंने शून्य से सृष्टि की रचना की और यह दिखाया कि अंधकारमय कालखंड में भी आशा का दीप जलाया जा सकता है।
क्यों मनाया जाता है ‘हिंदू साम्राज्य दिवस’?
इस दिन को मनाने का उद्देश्य केवल एक ऐतिहासिक घटना का स्मरण नहीं है, बल्कि यह एक चेतना जागरण है। यह हमें याद दिलाता है कि जब समाज हताश हो, जब आत्मसम्मान संकट में हो, तब शिवाजी जैसे नेतृत्व की आवश्यकता होती है जो प्रेरणा, संकल्प और संघर्ष से नया युग गढ़ सके।
छत्रपति शिवाजी महाराज की अमर गाथा हमें सिखाती है कि...
"यदि संकल्प पवित्र हो, नेतृत्व निष्कलंक हो और लक्ष्य राष्ट्रहित में हो – तो असंभव कुछ भी नहीं।"
नई पीढ़ी को चाहिए कि वह शिवाजी के जीवन का अध्ययन करे और उनके गुणों को आत्मसात करे। क्योंकि भारत का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब हम अपने अतीत के नायकों से प्रेरणा लेकर वर्तमान को दिशा देंगे।