भाषा नहीं बचेगी तो संस्कृति का अस्तित्व भी नहीं रहेगा : डॉ. सूर्यपाल सिंह
गोण्डा। भाषा और साहित्य के संरक्षण के बिना संस्कृति का अस्तित्व संभव नहीं है। यह विचार साहित्य भूषण डॉ. सूर्यपाल सिंह ने श्री लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय, गोण्डा के ललिता सभागार में आयोजित साहित्य, संस्कृति एवं ज्ञानकोश निर्माण विषयक कार्यशाला को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
यह कार्यशाला मंगलवार को हिंदी विभाग, भविष्य भूमि एवं पूर्वापर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई, जिसमें देवीपाटन मंडल के प्रमुख साहित्यकारों का समागम हुआ। कार्यक्रम के दौरान जनपद के प्रख्यात साहित्यधर्मी पत्रकार स्वर्गीय चंडीदत्त शुक्ल ‘सागर’ की पुस्तक ‘चंडीदत्त रचना समग्र’ का लोकार्पण भी किया गया।
साहित्य और संस्कृति के संरक्षण पर मंथन
दो सत्रों में आयोजित इस कार्यशाला में विषय प्रवर्तन करते हुए हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष एवं भविष्य भूमि के सूत्रधार शैलेन्द्र नाथ मिश्र ‘शून्यम्’ ने कहा कि सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने में साहित्य मनीषियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित साहित्य-संस्कृति ज्ञानकोश में अवध क्षेत्र की संस्कृति, लोक साहित्य और प्रमुख साहित्यिक विधाओं को समाहित किया जाएगा।
महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य प्रो. बी. पी. सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम की भूमिका को आगे बढ़ाते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. जय शंकर तिवारी ने कहा कि साहित्य एवं संस्कृति का निष्पक्ष इतिहास लेखन एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, फिर भी अवधी संस्कृति की सौंदर्य चेतना को संरक्षित रखने के लिए तथ्यपरक संकलन एवं विवेचन का प्रयास किया जा रहा है।
ज्ञानकोश निर्माण का संकल्प
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए डॉ. सूर्यपाल सिंह ने कहा यदि हमारी भाषा और साहित्य नहीं बचेंगे तो हमारी संस्कृति भी नहीं बचेगी। ज्ञानकोश का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। हमें अपने क्षेत्र के इतिहास के गर्त में छिपे सांस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक परिवेश को प्रकाश में लाने का संकल्प लेना होगा।” इस अवसर पर महंत अंकित दास ने संत बनादास के भक्ति साहित्य के संरक्षण और संवर्धन का आह्वान किया।
‘चंडीदत्त रचना समग्र’ का लोकार्पण
कार्यक्रम में शैलेन्द्र मिश्र एवं राजेश ओझा द्वारा संपादित ‘चंडीदत्त रचना समग्र’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया। स्वर्गीय चंडीदत्त शुक्ल के पुत्र अमिताभ एवं पुत्री पंखुरी ने अपने पिता की रचना प्रक्रिया और साहित्यिक जीवन से जुड़े अनुभव साझा किए।

साहित्यकारों की गरिमामयी उपस्थिति
कार्यशाला में गोण्डा, बहराइच, श्रावस्ती एवं बलरामपुर जनपदों के प्रमुख साहित्यकारों में अतुल कुमार सिंह, शिवाकांत मिश्र ‘विद्रोही’, सतीश आर्य, दिनेश त्रिपाठी, त्रिलोकीनाथ मौर्य, माधव राज सिंह, विनय शुक्ल ‘अक्षत’, एस. बी. सिंह ‘झंझट’, डॉ. नीरज पाण्डेय, अवधेश सिंह, अनिल विश्वकर्मा, गुणशेखर, मनोज मिश्र ‘कप्तान’, प्रदीप मिश्र, हुस्न तबस्सुम निहाँ सहित अनेक साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।

