Powered by myUpchar

उत्तम से उत्तम वस्तु से भी कुछ लेना हो तो कुछ छोड़ना पड़ता है: रमेश भइया

If you want to take something from even the best thing, you have to give up something: Ramesh Bhaiya
 
If you want to take something from even the best thing, you have to give up something: Ramesh Bhaiya
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)।विनोबा विचार प्रवाह के सूत्रधार रमेश भइया ने कहा कि विनोबा विचार प्रवाह मौन संकल्प कुटिया का आज 81 वां दिन, वेद चिंतन में से उद्धृत सक्तुमिव उत्तम से उत्तम वस्तु से भी कुछ लेना हो तो कुछ छोड़ना पड़ता है। सक्तुमिव तितउना पुनंत: यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत । 

अन्ना सखाय: सख्यानि जानते भद्रैषाम लक्ष्मीरनिहिताधि वाचि जैसे चलनी धान चालने पर नि:सत्व वस्तु चोकर फेंककर निर्मल भरा हुआ चावल का दाना ग्रहण करती है। ठीक वैसे ही जिस देश में ज्ञानी मनुष्य होते हैं,वे वाणी को छान लेते हैं, मनपूर्वक लेते हैं,वहां श्री रहती है। जिस समाज में वाणी संयमपूर्वक इस्तेमाल की जाती है,वहीं लक्ष्मी का निवास होता है। संतरे के फल को हम वैसा का वैसा नहीं खाते।छिलके निकालते हैं,मुंह में डाल चबाकर रस लेते हैं और असार अंश बाहर थूक देते हैं।

उत्तम से उत्तम चीज का भी हम इसी प्रकार सेवन करते हैं। केले का भी ऊपर का छिलका हटाना पड़ता है। नारियल के भी ऊपर की सारी चीजें फेकनी पड़ती हैं।हर चीज में ऐसे कुछ अंश होते हैं जिन्हें छोड़कर बाकी ग्रहण करते हैं। इसी को सार असार विवेक कहते हैं। सर्वोत्तम से भी सार लेना चाहिए। बाबा विनोबा कहते थे कि वेद भी एक उत्तम ग्रंथ है इसे भी वैसे का वैसा नहीं लेना चाहिए। असार छोड़कर सार लेंगे तभी वह हमारे काम आयेगा। इसलिए पुराने ग्रंथों को हम पाठ करते चले जाएं,या धार्मिक व्याख्यान देते चले जाएं इससे धर्मकार्य नहीं होगा। उसमें कौन से अच्छे विचार हैं वह लेकर उसमें फिर नए विचार डालने चाहिए। इस प्रकार यह विचार संशोधन का काम है।

कुछ लोग जब यह संशोधन का काम करते हैं तो पुराने लोग चिल्लाते हैं। इसलिए फिर सच्ची बात लोग छोड़ देते हैं। लोकनिंदा सहन नहीं कर सकते हैं, इससे सत्यनिष्ठा में भी कमी आती है। वहां फिर धैर्य कैसे टिकेगा? इसलिए जो लोग धार्मिक जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।उन्हें सर्वप्रथम विचार संशोधन का ही कार्य करना चाहिए। नए नए विचारों को ग्रहण करने से धर्म निरंतर बढ़ता है। तो वेद कहते हैं, जहां ज्ञानी पुरुष मनन पूर्वक वाणी की छानबीन करते हैं और उत्तम, पावन, शुद्ध, पवित्र , निर्मल, स्वच्छ, खालिस शब्द ढूंढ निकालकर उनका प्रयोग करते है।उस समाज में लक्ष्मी रहेगी।। बहुत से लोग कहते हैं कि लक्ष्मी और सरस्वती का वैर है। सरस्वती तो संयोजक शक्ति है,वह तो जोड़नेवाली कड़ी है, जो बाहर और अंदर की दुनिया को जोड़ती है, विज्ञान और आत्मज्ञान को जोड़ती है।दुनिया में जितनी शक्तियां मौजूद हैं उन सबको वाणी ही जोड़ती है।

सरस्वती और लक्ष्मी का वैर कैसे हो सकता है? ऐसा कहना छोटे दिमाग की बात है।उसमें जो सूक्ष्म दृष्टि वेद ने दिखाई वह सबको नहीं दिखती। वेद ने यह नहीं कहा कि वहां लक्ष्मी रहती है बल्कि कहा लक्ष्मी निहिता अर्थात लक्ष्मी छिपी हुई रहती है ऐसा कहा।वाणी सूक्ष्म शक्ति है, इसलिए उसके अंदर और शक्तियां छिपी हुई रहती हैं।

Tags