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मकोका मामले में कम नहीं किया जा सकता व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा कि आरोपित अरुण मकोका के तहत वर्तमान प्राथमिकी में आठ साल से अधिक समय से हिरासत में है और मुकदमे का निष्कर्ष आने में अभी काफी समय लगेगा। आरोपित की लगातार कैद भी एक अन्य मामले में चार सप्ताह के लिए पैरोल पर उसकी रिहाई में बाधा बन रही है।अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
यह मामला अनुच्छेद 21 के तहत संवैधानिक परीक्षण के दायरे में आता है। दिल्ली पुलिस की स्थिति रिपोर्ट को देखते हुए अदालत ने कहा कि 60 गवाहों में से अब तक केवल 35 की ही जांच की गई है। आरोपित अरुण को जून 2016 में मनोज मोरखेड़ी गिरोह का सक्रिय सदस्य होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह गिरोह मुख्य रूप से एनसीआर और आसपास के राज्यों में संचालित आपराधिक गिरोह है। इस गिरोह पर हत्या, फिरौती के लिए अपहरण, जबरन वसूली, डकैती और हत्या के प्रयास सहित कई गंभीर अपराधों में शामिल होने का आरोप है। अदालत ने आरोपित को 50 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के एक जमानती पर सशर्त नियमित जमानत दे दी।