International Day of Yoga : भारत की अखंड एकता का प्रतीक
International Day of Yoga : A symbol of India's unbroken unity
Fri, 20 Jun 2025

डॉ. शंकर सुवन सिंह : शिक्षाविद एवं वरिष्ठ स्तंभकार, एसोसिएट प्रोफेसर – फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी, सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

प्रकृति और मानव का गहरा संबंध
मानव जीवन प्रकृति के साथ गहरे संबंध में बंधा हुआ है। समाज की समग्र संरचना प्रकृति पर निर्भर करती है, क्योंकि प्रकृति और मानव एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि प्रकृति न हो, तो मानव जीवन की कल्पना भी अधूरी है। 'प्रकृति' शब्द 'प्र' (श्रेष्ठ) और 'कृति' (रचना) से मिलकर बना है, जिसका तात्पर्य है – ईश्वर की श्रेष्ठ रचना। यह सृष्टि के समस्त प्राणियों और पदार्थों की मूलभूत रचना है। प्रकृति दो स्वरूपों में विद्यमान है
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भौतिक प्रकृति: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
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मानव प्रकृति: मन, बुद्धि और अहंकार।
पृथ्वी मां के रूप में जीवनदायिनी है, तो प्रकृति उसका पोषण करने वाली शक्ति है। जैसे मां की गोद में शिशु का पालन होता है, वैसे ही प्रकृति के सान्निध्य में समस्त जीव-जंतुओं का विकास होता है। प्रकृति से बेहतर शिक्षक मानव के लिए कोई नहीं।
एकता, मानवता और योग का संबंध
व्यक्ति समाज की एक इकाई है, और जब अनेक व्यक्ति एक विचारधारा में एकीकृत होते हैं, तो एकात्म मानववाद जन्म लेता है। यही एकता, अखंडता का आधार बनती है। भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान इस ‘एकता में अनेकता’ के दर्शन पर आधारित है और योग इस दर्शन का सशक्त माध्यम है। योग न केवल शरीर और मन का संतुलन है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक चेतना की आत्मा भी है। यह भारत की अक्षुण्ण एकता और समग्र मानवता के विचार को जीवंत करता है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025: “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य”
हर वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह दिवस 11वीं बार विश्व स्तर पर मनाया जाएगा। इस वर्ष की थीम है – "One Earth, One Health" अर्थात् “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य”। इसका संदेश है कि संपूर्ण मानवता को स्वास्थ्य की दृष्टि से एक सूत्र में बांधा जाए।
योग के माध्यम से मनुष्य के भीतर नई ऊर्जा का संचार होता है। यह ऊर्जा शरीर की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और मानसिक स्थिरता प्रदान करती है। इस प्रकार योग केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि यह एक जीवनशैली है जो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ – संपूर्ण विश्व एक परिवार है – के दर्शन को मूर्त रूप देती है।
विश्व शांति और समृद्धि की दिशा में योग की भूमिका
एक स्वस्थ समाज ही एक मजबूत राष्ट्र की नींव रखता है। और जब विश्व स्वस्थ होगा, तभी वैश्विक अर्थव्यवस्था और स्थायित्व संभव होगा। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि “स्वस्थ मानवता ही वैश्विक समृद्धि की असली पूंजी है।” योग भारत की सांस्कृतिक गहराइयों से निकला वह ज्ञान है, जो आज पूरे विश्व को जोड़ रहा है। यह न केवल शरीर और आत्मा का संतुलन है, बल्कि यह मानवता को एक धागे में पिरोने वाला सूत्र है। यही कारण है कि योग, भारत की अखंडता, मानवता और वैश्विक भाईचारे का वास्तविक परिचायक है।