international yoga day2025 : जब साधना बन जाए स्टेटस सिंबल

international yoga day2025  When Sadhana becomes status symbol
 
international yoga day2025 :

विवेक रंजन श्रीवास्तव | विभूति फीचर्स  आज का योग, अब वो पुरातनकालीन, एकांत और गुफाओं में साधना का विषय नहीं रहा। अब वह 'योग' नहीं, 'योगा' है – जिसमें विदेशी ‘A’ जोड़कर इसे इंटरनेशनल लाइफस्टाइल ब्रांड बना दिया गया है। आज की दुनिया में योग केवल मानसिक और शारीरिक अनुशासन नहीं, इंस्टाग्राम रील और सेल्फी के साथ किया जाने वाला डिजिटल परफॉर्मेंस बन गया है।

international yoga day2025  When Sadhana becomes status symbol

डिजिटल तप और ट्राइपॉड साधना

सुबह चटाई बिछाने के साथ-साथ अब मोबाइल ट्राइपॉड लगाना भी ज़रूरी हो गया है, ताकि 'डाउनवर्ड डॉग' करते हुए ‘अपवर्ड लाइक्स’ मिल सकें। ये योगी अब साधु नहीं, डिजिटल तपस्वी हैं, जिनका मंत्र है – #योगा और 'स्टोरी अपडेट'। गुरु जी ऑनलाइन क्लास लेते हैं, बीच में विज्ञापन डालते हैं। शिष्यजी फ़िल्टर लगाकर Facebook Live करते हैं। अब तो कैमरा एंगल ठीक करना कपालभाति से भी पहले आता है!

 योग फेस्टिवल से लेकर प्रीमियम स्टूडियो तक

भारत में जहाँ कभी योग एक गोपनीय आध्यात्मिक साधना हुआ करता था, आज वहीं योग फेस्टिवल के टिकट ऑनलाइन बुक होते हैं। योग सूत्रों की चर्चा से ज्यादा आजकल पतंजलि के शैम्पू और टूथपेस्ट की मार्केटिंग होती है। लोग अपने विचारों को नहीं मोड़ते, लेकिन शरीर को तो एयर-कंडीशन्ड स्टूडियो में मोड़ने के लिए हर महीने हजारों खर्च कर देते हैं।

 तनाव छोड़ो, लेकिन असली!

स्टूडियो में 'कुंभक' सीखा जाता है – यानी सांस रोकना, लेकिन बाहर निकलते ही EMI, ऑफिस का टारगेट, और घर के झगड़े खुद ही श्वास नियंत्रण करा देते हैं। सास-बहू के बीच 'महाभारतासन' चलता रहता है और व्यक्ति ‘अनुलोम-विलोम’ से तनाव नहीं, नौकरी छोड़ने का मन बनाता है।

 योग के बाद सिगरेट, और फिर संतुलन का प्रवचन

यह आज के #योगा की सच्चाई है। सुबह शंखपुष्पी काढ़ा पीकर 'शीर्षासन' होता है, और शाम को ऑफिस में उसी का गुणगान सिगरेट के साथ किया जाता है — “गुरु जी ने कहा है, संतुलन जरूरी है!”। 'भ्रामरी' करते समय अब मधुमक्खी की गूंज नहीं, क्रेडिट कार्ड का बिल सुनाई देता है।

 योग, लेकिन मौन नहीं

आज कुछ योग गुरु सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग करते हुए ‘वीरभद्रासन’ की मुद्रा में दिखते हैं। गीता की बात करने वाले स्टूडियो का किराया बढ़ा देते हैं और ‘अपरिग्रह’ (त्याग) की चर्चा पाठ्यक्रम से हटा देते हैं। वही लोग जो पर्यावरण योग की बात करते हैं, दिवाली पर सबसे ऊँचे पटाखे चलाते हैं।

 अध्यात्म अब ‘एड टू कार्ट’ में

आजकल योग का अनुभव नहीं, उसकी एक्सेसरीज बिकती हैं – बांस के कपड़े, ऑर्गेनिक योगा मैट्स, डिटॉक्स टी, क्रिस्टल माला। एक नया मंत्र प्रचलित है: “ॐ नमः ब्रांडेभ्यः”

 सच्चा योग वही

सच्चा योग आज भी वही है — जहाँ इंसान लाइक्स और कमेंट्स के बिना भी सुखासन में बैठकर शांति का अनुभव कर सके। भागदौड़ में भी मानसिक संतुलन बनाए रख सके। किसी को धक्का दिए बिना भीड़भरी मेट्रो में खड़ा रहना ही आज का ‘ताड़ासन’ है। पत्नी के ताने सुनकर शांत रह जाना 'शवासन' है। EMI के तनाव के बावजूद मुस्कुरा कर कहना – "ध्यान ही धन है" – यही है कर्मयोग!

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