ईरान ने IAEA से तोड़े सभी संबंध: मिडिल ईस्ट की राजनीति में नया भूचाल

 
Iran Shocks the World: IAEA Ties Severed Islamic Nations Role Global Impact Explained

आज हम बात करेंगे एक ऐसी खबर की, जो न सिर्फ मिडिल ईस्ट, बल्कि पूरी दुनिया की सियासत को हिला सकती है। ईरान ने international nuclear energy एजेंसी यानी  International Atomic Energy Agency के साथ अपने सभी संबंध तोड़ दिए हैं! 25 जून 2025 को ईरानी संसद ने एक historic bill को मंजूरी दी, जिसमें कहा गया कि जब तक उनकी nuclear facilities की Security की गारंटी नहीं मिलती, तब तक IAEA के साथ कोई Collaboration नहीं होगा। लेकिन इस फैसले के पीछे क्या है पूरी कहानी ? क्यों कुछ इस्लामिक देशों ने इसराइल का साथ नहीं दिया, और इसका global impact क्या होगा? चलिए, इस खबर को facts के साथ detail  से समझते हैं। 

 25 जून 2025 को ईरानी संसद ने 290 में से 220 वोटों के साथ एक bill पास किया, जिसके तहत IAEA के साथ सभी nuclear surveillance सहयोग को पूरी तरह Suspend कर दिया गया। इस bill  के according  IAEA के इंस्पेक्टर्स को ईरान की nuclear facilities में Entry की Permission नहीं होगी, न ही वहाँ कैमरे लगाए जाएंगे, और न ही कोई डेटा या रिपोर्ट share  की जाएगी। संसद के स्पीकर मोहम्मद बाक़र क़ालिबाफ़ ने कहा, 'जब तक हमारी परमाणु सुविधाओं की सुरक्षा की international guarantee नहीं मिलती, तब तक हम IAEA के साथ कोई सहयोग नहीं करेंगे।'

इस फैसले की वजह क्या है? पिछले कुछ महीनों में ईरान की प्रमुख परमाणु सुविधाओं—जैसे नतांज, फोर्डो, और इस्फ़हान—पर इजरायल और अमेरिका के कथित हमले हुए हैं। ईरान का दावा है कि इन हमलों में उनकी सुविधाएँ सुरक्षित रहीं और कोई रेडिएशन लीक नहीं हुआ। लेकिन IAEA की हालिया रिपोर्ट ने आग में घी डाल दिया। इस रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान के पास 60% तक Enriched Uranium का 142.1 किलोग्राम भंडार है, जो तकनीकी रूप से 9 परमाणु बम बनाने के लिए काफी हो सकता है। इसने इजरायल और अमेरिका को ईरान पर और दबाव बनाने का मौका दे दिया।

ईरान का आरोप है कि IAEA biased attitude अपना रहा है। ईरान के Foreign Minister हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने कहा, 'IAEA ने इजरायल के हमलों की निंदा नहीं की, बल्कि हमारी सुविधाओं को निशाना बनाने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद की।' यही वजह है कि ईरान ने IAEA के साथ सहयोग खत्म करने का फैसला लिया। लेकिन सवाल ये है—क्या ये फैसला ईरान को global platform पर और अलग-थलग कर देगा, या ये उसकी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है?"

"अब बात करते हैं इस्लामिक देशों की। ईरान और इसराइल के बीच बढ़ते तनाव में इस्लामिक दुनिया का रुख बेहद अहम है। कुछ देशों ने ईरान का खुलकर समर्थन किया। मिसाल के तौर पर, पाकिस्तान ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को 'शांतिपूर्ण' बताया और इजरायली हमलों की कड़ी निंदा की। सीरिया और लेबनान ने भी ईरान के पक्ष में बयान दिए। हिज़बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह ने तो यहाँ तक कहा कि 'इसराइल मिडिल ईस्ट में परमाणु युद्ध की आग भड़काने की कोशिश कर रहा है।'

लेकिन कई इस्लामिक देशों ने इस मामले में neutral or unclear रुख अपनाया। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने इजरायली हमलों की निंदा तो की, लेकिन साथ ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चिंता भी जताई। कतर और ओमान जैसे देशों ने कूटनीतिक बयान दिए, जिसमें युद्ध से बचने की अपील की गई। तुर्की ने दोनों पक्षों से संयम बरतने को कहा। ईरान को लगता है कि इस्लामिक दुनिया से उसे वो एकजुट समर्थन नहीं मिला, जिसकी उसे उम्मीद थी।

दूसरी तरफ, गैर-इस्लामिक देशों का रुख भी देखने लायक है। रूस ने IAEA पर western countries के दबाव में काम करने का आरोप लगाया और इजरायली हमलों को 'अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन' बताया। चीन ने भी यही रुख अपनाया और कहा कि 'मिडिल ईस्ट में तनाव कम करने के लिए कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है।' लेकिन भारत ने इस मामले में neutral रुख रखा और दोनों पक्षों से बातचीत की अपील की। क्या ये बिखरी हुई एकता मिडिल ईस्ट में नए सियाली समीकरण बनाएगी ?

तो, इस पूरे incident  का global impact क्या होगा? सबसे पहले, ईरान का IAEA से संबंध तोड़ना उसके परमाणु कार्यक्रम को और रहस्यमयी बना सकता है। बिना international surveillance के, ये idea  लगाना मुश्किल होगा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम किस दिशा में जा रहा है। IAEA के डायरेक्टर जनरल राफेल ग्रॉसी ने संयुक्त राष्ट्र में चेतावनी दी कि 'ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हमले न्यूक्लियर सेफ्टी के लिए गंभीर खतरा हैं।' उन्होंने ये भी कहा कि ईरान के इस कदम से NPT कमजोर हो सकती है।

दूसरा, इसराइल और अमेरिका के लिए ये एक मौका है। इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया कि 'ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी दुनिया के लिए खतरा है।' अमेरिका ने भी ईरान पर नए प्रतिबंधों की बात कही है। लेकिन इन हमलों और प्रतिबंधों से मिडिल ईस्ट में युद्ध का खतरा बढ़ गया है। हाल ही में ट्रंप की मध्यस्थता में 12 दिन का युद्धविराम हुआ था, जिसमें गाजा और लेबनान में संघर्ष थमा था। लेकिन अब वो युद्धविराम टूट चुका है, और तनाव अपने चरम पर है।

आखिर में, सवाल ये है—क्या ये स्थिति एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध की ओर ले जाएगी, या कूटनीति कोई रास्ता निकालेगी? ईरान का कहना है कि उसकी रक्षा नीति में परमाणु हथियारों का कोई स्थान नहीं है। लेकिन बिना IAEA की निगरानी के, क्या दुनिया उस पर भरोसा करेगी ?

"तो  ये थी ईरान-IAEA विवाद और मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव की पूरी कहानी। आपका क्या मानना है? क्या ईरान का IAEA से संबंध तोड़ना सही है, या इससे दुनिया में और instability आएगी? कमेंट में अपनी राय जरूर बताएँ। 

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