क्या घट रही है पीएम मोदी की लोकप्रियता?

Is PM Modi's popularity decreasing?
 
क्या घट रही है पीएम मोदी की लोकप्रियता?

डॉ. अतुल मलिकराम | राजनीतिक रणनीतिकार:  पिछले डेढ़ दशक में भारतीय राजनीति ने कई नए रंग और मोड़ देखे हैं। एक समय ऐसा भी आया जब प्रभावशाली सोशल मीडिया अभियानों के चलते एक क्षेत्रीय नेता राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में स्थापित हो गया। यह कोई और नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे, जिन्होंने न केवल लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली, बल्कि करोड़ों भारतीयों को "नए भारत" के सपने से भी जोड़ा।

 

हालांकि, बीते कुछ वर्षों में यह देखने को मिला है कि वह वही करिश्मा अब वैसा प्रभाव नहीं छोड़ रहा है। देशभर से जो दृश्य सामने आ रहे हैं—जनसभाओं में खाली पड़ी कुर्सियाँ, ‘मन की बात’ जैसे कार्यक्रमों में गिरती रुचि और टीवी चैनलों की टीआरपी को कृत्रिम रूप से बढ़ाने की कोशिशें—यह सभी संकेत हैं कि लोकप्रियता का ग्राफ अब उतार पर है।

 

मंचों और मीडिया पर घटता प्रभाव

 

एक समय था जब पीएम मोदी की जनसभाएं जनसैलाब में तब्दील हो जाती थीं और टीवी पर उनका भाषण प्रसारित होते ही रिमोट खुद-ब-खुद "स्टे मोड" में आ जाता था। अब वही मंच खाली कुर्सियों से भरे रहते हैं और टीवी दर्शक दूसरे चैनल की ओर पलायन करते नज़र आते हैं। मेरे हालिया भारत भ्रमण के दौरान मुझे स्पष्ट रूप से यह महसूस हुआ कि उनके भाषण अब प्रेरणा से अधिक ऊब और थकावट का कारण बनते जा रहे हैं।

 

‘400 पार’ की रणनीति और परिणाम

 

लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को 293 सीटें जरूर मिलीं, लेकिन यह संख्या ‘अबकी बार 400 पार’ के बुलंद दावे से काफी पीछे रही। यह नारा जितना शक्तिशाली प्रतीत हुआ, चुनावी नतीजों ने उतना ही ठंडा प्रभाव छोड़ा। इससे यह स्पष्ट होता है कि जनता ने अपेक्षा से भिन्न रुख अपनाया, जिससे सत्ता पक्ष को झटका लगा।

 

विदेश नीति और प्रशासनिक छवि पर असर

मोदी सरकार की विदेश नीति को भी आलोचना का सामना करना पड़ा है—चाहे वह अमेरिका के साथ संबंधों में खटास हो, पाकिस्तान के साथ युद्धविराम की स्थिति या फिर हालिया उपराष्ट्रपति का अचानक इस्तीफ़ा। इससे सरकार की निर्णय क्षमता और पारदर्शिता पर सवाल उठे हैं। साथ ही, ईडी, सीबीआई और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की निष्पक्षता पर उठे सवालों ने सरकार के प्रति जनता के विश्वास को भी डगमगाया है।

मीडिया की भूमिका और विश्वसनीयता

भारत का विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 151वां स्थान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मीडिया की निष्पक्षता संदिग्ध हो चुकी है। वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा सार्वजनिक रूप से दबाव में काम करने की बात कहे जाना, और आलोचनात्मक पत्रकारिता पर लगाम की खबरें, यह सब "गोदी मीडिया" शब्द को जनप्रिय बना चुके हैं। इससे जनता की निगाह में प्रधानमंत्री की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ा है।

संगठनात्मक बदलाव और अंदरूनी असंतोष

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख की असहमति की खबरें हों या भाजपा के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाएं—यह सभी संकेत भाजपा के आंतरिक समीकरणों में हो रहे बदलाव की ओर इशारा करते हैं। हालांकि यह भी सत्य है कि नरेंद्र मोदी अब भी भारतीय राजनीति की एक प्रभावशाली शख्सियत हैं और उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा तीसरी बार सत्ता में लौटी, परंतु यह दौर नई चुनौतियों से भरा हुआ है।

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