कांवड़ यात्रा और समाजवादी पार्टी की आस्था पर राजनीति: एक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण
Kanwar Yatra and Samajwadi Party's politics on faith: A biased view
Thu, 24 Jul 2025
लेखक: मृत्युंजय दीक्षित
श्रावण मास हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस पवित्र माह में उत्तर भारत के कई राज्यों में शिवभक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। भक्तजन गंगा नदी से जल भरकर पैदल लंबी दूरी तय करते हुए शिवालयों में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि आत्मानुशासन, संयम और समाजसेवा का भी जीवंत उदाहरण है। स्त्रियाँ, वृद्ध और बच्चे तक इस यात्रा में भाग लेते हैं। हर कोई जो स्वयं यात्रा नहीं कर सकता, वह सेवा भाव से कांवड़ियों की मदद कर पुण्य अर्जित करना चाहता है।

लेकिन दुर्भाग्यवश, कुछ राजनीतिक दल इस धार्मिक यात्रा को भी राजनीति का मंच बनाने से नहीं चूकते। समाजवादी पार्टी (सपा) के कुछ नेताओं और सोशल मीडिया समर्थकों द्वारा कांवड़ यात्रा के खिलाफ दिए गए विवादास्पद बयान हाल के दिनों में चर्चा का विषय बने हैं। एक वरिष्ठ सपा सांसद ने कांवड़ियों को आतंकवादी तक कह डाला। सोशल मीडिया पर कांवड़ियों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ और आपराधिक मीम्स वायरल किए गए। कुछ तत्वों द्वारा यात्रा में घुसकर जानबूझकर अव्यवस्था फैलाने के भी आरोप सामने आए हैं।
कुछ मीडिया संस्थानों ने बिना तथ्यात्मक पुष्टि के चुनिंदा घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जिससे संपूर्ण यात्रा को ही गलत प्रकाश में दिखाने की कोशिश की गई। यह नहीं बताया गया कि कई स्थानों पर कांवड़ियों पर पहले से योजनाबद्ध हमले भी किए गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस यात्रा की गरिमा को बनाए रखने के लिए कांवड़ियों से संयम की अपील की और नियमों के उल्लंघन पर कठोर कार्रवाई का निर्देश दिया। एक मामले में सीआरपीएफ जवान और कांवड़ियों के बीच हुई झड़प पर पुलिस ने तुरंत एक्शन लिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि कानून सभी के लिए बराबर है।
मुख्यमंत्री योगी के साथ ही उपमुख्यमंत्रियों ने भी समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाया कि उनके समर्थक यात्रा में घुसकर जानबूझकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। जब भी कोई ऐसा पर्व आता है, जो हिन्दू एकता और सामूहिकता को बल देता है, तभी कुछ तुष्टीकरणवादी दलों की नकारात्मक राजनीति सतह पर आ जाती है।
सच्चाई यह है कि जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी या बसपा की सरकारें थीं, तब कांवड़ यात्रियों को उचित सुरक्षा और सम्मान नहीं दिया जाता था। कई बार महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और यात्रियों पर हमलों की खबरें भी आती थीं। इस बार जब भाजपा शासित राज्यों — उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली — ने कांवड़ियों के लिए विशेष व्यवस्थाएं कीं, तो विपक्ष को इससे भी परेशानी हुई। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी स्वयं पुष्पवर्षा कर शिवभक्तों का स्वागत कर रहे हैं, जो विरोधी दलों को असहज कर रहा है।
विरोधाभास और पक्षपात की पराकाष्ठा तब दिखती है जब कांवड़ यात्रा पर तो आपत्ति जताई जाती है, लेकिन सड़कों पर नमाज, विदेशी झंडे और धार्मिक नारे लगाने वाले जुलूसों पर कोई सवाल नहीं उठता। एक मुस्लिम सपा विधायक ने तो यहां तक कह दिया कि 'शिवभक्त कम, गुंडे ज्यादा हैं और उन्हें नरक मिलेगा' — यह बयान न केवल अमर्यादित है, बल्कि करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का भी अपमान है।
वहीं, दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के नेता संसद सत्र के दौरान संसद भवन के पास एक मस्जिद में जाकर बैठक करते हैं। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने दावा किया है कि वह मस्जिद अब सपा का अनौपचारिक कार्यालय बन गई है। यह स्पष्ट संकेत है कि सपा अब राम, कृष्ण और शिव जैसे हिन्दू आराध्यों से दूरी बनाकर मस्जिदों में अपने राजनीतिक आधार तलाश रही है।
आज जब राम मंदिर, महाकुंभ जैसे आयोजन विश्वस्तर पर सनातन संस्कृति को पहचान दिला रहे हैं, तब कुछ दल उन्हें बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं। यह विरोध किसी नीति का नहीं, बल्कि हिन्दू आस्था और मूल्यों के विरुद्ध सुनियोजित रणनीति का प्रतीक है। समाजवादी पार्टी का यह दोहरा मापदंड अब किसी से छिपा नहीं है — एक ओर धार्मिक स्थलों पर तुष्टीकरण की राजनीति, दूसरी ओर हिन्दू पर्वों और यात्राओं पर कटाक्ष।
समय आ गया है कि आम नागरिक इस पाखंड को पहचानें और यह समझें कि आस्था पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, बल्कि राजनीति को आस्था का सम्मान करना चाहिए।
