कारगिल विजय: नेतृत्व, एकता और साहस का अमिट प्रतीक

Kargil Vijay: An indelible symbol of leadership, unity and courage
 
कारगिल विजय: नेतृत्व, एकता और साहस का अमिट प्रतीक

(डॉ. राघवेंद्र शर्मा, विनायक फीचर्स)

कारगिल युद्ध न केवल भारत की सैन्य शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे नेतृत्व, राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों की भी शानदार मिसाल है। वर्ष 1999 में जब पाकिस्तान ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा करने का दुस्साहस किया, तब भारत में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार सत्ता में थी, जिसमें लगभग दो दर्जन विभिन्न राजनीतिक दल शामिल थे। ऐसे राजनीतिक परिदृश्य में सर्वसम्मति से निर्णायक कदम उठाना एक बड़ी चुनौती थी, जिसे वाजपेयी जी ने बखूबी पार किया।

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रणनीतिक मजबूती और नेतृत्व का संकल्प

अटल जी का स्पष्ट संदेश था – सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन राष्ट्र की अखंडता से कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार कर सेना को पूर्ण स्वतंत्रता दी। सभी दलों और विपक्ष ने भी देशहित में एकजुट होकर निर्णय का समर्थन किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि भारत ने सीमित संसाधनों और विषम परिस्थितियों के बावजूद कारगिल में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की।

वैश्विक दबाव और वाजपेयी जी की दृढ़ता

इस समय भारत पर अमेरिका सहित कई देशों के आर्थिक प्रतिबंध लागू थे। फिर भी जब पाकिस्तान ने अमेरिका की मध्यस्थता की आशा में अंतरराष्ट्रीय मंचों का सहारा लिया, तो वाजपेयी जी ने स्पष्ट कह दिया: “जब तक दुश्मन को उसकी भाषा में जवाब नहीं दिया जाता, तब तक कोई वार्ता संभव नहीं।” इस अडिग रुख ने भारत की संप्रभुता की रक्षा करते हुए वैश्विक मंच पर उसकी प्रतिष्ठा को भी मजबूत किया।

विषम भूगोल और असाधारण सैन्य पराक्रम

कारगिल युद्ध की एक और चुनौती थी – पाकिस्तानी घुसपैठिए ऊंची चोटियों पर बैठे थे और हमारी सेना नीचे घाटियों में थी। ऐसे में जीत की संभावनाएं कम आँकी जा रही थीं। लेकिन भारतीय सेना ने अपने साहस, रणनीति और अडिग संकल्प से असंभव को संभव कर दिखाया। यह दर्शाता है कि आत्मबल, संकल्प और देशभक्ति से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।

पाकिस्तान की अस्थिरता और भारत की नीति

कारगिल युद्ध पाकिस्तान की नापाक नीयत का परिणाम था। वाजपेयी जी ने लाहौर यात्रा कर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन पाकिस्तान की सेना ने उसी दोस्ती की पीठ में छुरा घोंपा। यह युद्ध एक सबक था कि पड़ोसी के छलपूर्ण रवैये के सामने भारत को न केवल सतर्क रहना होगा, बल्कि ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ की नीति अपनानी होगी — यानी धोखेबाज़ से उसी की भाषा में निपटना।

वीर बालक की भूमिका और स्थानीय सहभागिता

इस युद्ध में एक अज्ञात लेकिन प्रेरणादायक योगदान उस देशभक्त बालक का था, जिसने सबसे पहले दुश्मन की घुसपैठ की जानकारी सेना को दी। यह घटना न केवल खुफिया तंत्र की सीमाओं को उजागर करती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना और नागरिकों के बीच सहयोग कितना महत्वपूर्ण है। यदि वह बालक भयभीत होता या सेना से कटाव महसूस करता, तो समय पर सूचना नहीं मिल पाती।

सबक और संदेश

कारगिल की विजय हमें यह सिखाती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा में केवल सैनिक या एजेंसियां ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों की भूमिका भी अहम है। सीमावर्ती इलाकों में सेना और नागरिकों के बीच विश्वास और सहयोग को संस्थागत रूप से बढ़ावा देना चाहिए। इस युद्ध ने यह भी सिद्ध किया कि जब देश एकजुट होता है, तो चाहे वह दुश्मन पाकिस्तान हो या दबाव बनाने वाला अमेरिका — भारत झुकता नहीं, बल्कि डटकर खड़ा होता है।

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