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कीर्तिशेष राधेश्याम त्रिपाठी की पुण्य स्मृति में कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह आयोजित

हरदोई(अम्बरीष कुमार सक्सेना) एक साप्ताहिक के संस्थापक संपादक वरिष्ठ पत्रकार स्व. राधेश्याम त्रिपाठी की पुण्य स्मृति में एक कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन उनके पैतृक निवास ग्राम मझिला में किया गया। त्रिपाठी जी के पुत्रों शैलेन्द्र त्रिपाठी एवं प्रभाकर त्रिपाठी के आयोजन/संयोजन में संपन्न इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मोहम्मदी के वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीकांत त्रिपाठी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में हरदोई जिले के वरिष्ठ राजनयिक अजय सिंह एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ चिकित्सक डा. मुरारी लाल गुप्ता जी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन आकाश त्रिपाठी एवं श्रीकांत सिंह ने किया।
कार्यक्रम में नगर एवं जनपद के वरेण्य कवियों एवं शायरों ने काव्यपाठ किया।माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से कार्यक्रम का प्रारम्भ हुआ उसके बाद आयोजक मंडल द्वारा समस्त आगंतुक कवियों को अंग वस्त्र एवं सम्मान पत्र द्वारा सम्मानित किया गया।इसके अतिरिक्त मुख्य अतिथि अजय सिंह, डा. मुरारीलाल गुप्ता, अध्यक्ष लक्ष्मीकांत त्रिपाठी एवं जनपद के वरिष्ठ पत्रकार अम्बरीष कुमार सक्सेना को भी अंगवस्त्र एवं सम्मानपत्र से अलंकृत किया गया।
तत्पश्चात माँ शारदे की वंदना शीतल त्रिपाठी एवं कवि करुणेश दीक्षित सरल द्वारा की गई।इसके बाद काव्यपाठ के क्रम में ओमदेव दीक्षित ने पढ़ा-“रामलला हम आए हैं मंदिर वहीं बनाये हैं।वहीं जहाँ का वादा था बस मजबूत इरादा था।”ओज कवि श्याम त्रिवेदी पंकज (हरदोई) ने अपने तेवर की कविता पढ़ी-“कलमें छू दें तो पत्थर भी शिलालेख हो जाते हैं।है धरती में कितना सोना कलमों से तोला जाता है।”चिंतन के कवि अभिनव दीक्षित ने बेटियों पर रचना पढ़ी-“बेटियों का बाप बन इतरा रहा हूँ।प्रश्न मन में हैं उन्हें सुलझा रहा हूँ।”वरिष्ठ कवि सतीश शुक्ल (हरियावां) ने अपने हास्य से श्रोताओं को लोटपोट कर दिया। उन्होंने गंभीर कविता पढ़ते हुए भी कहा-“जब जब भीष्म पितामह अपनी शक्ति क्षीण कर सोता है।
द्रुपदसुता के तरह देश तब धाहें देकर रोता है।”मोहम्मदी के ओज कवि आकाश त्रिपाठी ने ओजस्वी छन्दों के माध्यम से कहा-“रामजी की सेना के सिपाही हम भारतीय, रास्ता ना मिले तो समुद्र पाट देते हैं।मातु भारती की अस्मिता पे जो उठाते आँख, ऐसे दुष्ट रावणों के शीश काट देते हैं।”हास्य के प्रसिद्ध शायर नईम ख़ान शाहाबादी ने कहा-“महामूर्ख धनवान को कहते लोग महान।कितना भी विद्वान हो निर्धन गधा समान।”कार्यक्रम का संचालन कर रहे वरिष्ठ व्यंग्यकार श्रीकांत सिंह ने अनेकों सामयिक कटाक्ष सुनाकर कार्यक्रम को बुलंदी तक पहुचाया।
उन्होंने पढ़ा-“दफ्तर में फ़ाइल रखी फ़ाइल मागे दाम।बिना दाम के हो भला कैसे कोई काम।”शायर फ़ैज़ हैदर वारसी ने लाजवाब शेर पढ़ कर श्रोताओं को आनंदित किया।उनका कहना था कि-“घर के आँगन की कभी भी ख़ुश्बूएँ मरती नहीं।माँ जो घर में हो तो घर की बरकतें मरती नहीं। ”शाहाबाद के गीतकार करुणेश दीक्षित सरल ने कुछ यूँ सुनाया-“कभी जब धड़कनों को दर्द का एहसास होता है।वही जो दूर होता है वो दिल के पास होता है।”श्रोताओं की भारी भीड़ के बीच देर रात तक चले कवि सम्मेलन में इसके अतिरिक्त कवि अरविंद मिश्र, शायर हाजी मो. हनीफ़ आदि ने भी काव्यपाठ किया।
अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन में लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी एवं आयोजक शैलेंद्र त्रिपाठी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम को अगले वर्ष तक के लिए स्थगित किया। आमंत्रित अतिथियों में कई वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनयिक विभूतियां कार्यक्रम में उपस्थित रहीं। जिनमें लक्ष्मीकांत मिश्र, कमलेश रस्तोगी, गुफ़रान कौसर, उमा दीक्षित , प्रधान सरोज मिश्रा आदि प्रमुख रहे। सफल एवं भव्य कार्यक्रम का सुचारू आयोजन संयोजन एवं अन्य व्यवस्था शाहाबाद समाचार के संपादक प्रभाकर त्रिपाठी, अभिषेक त्रिपाठी, अंकुर त्रिपाठी आदि ने की।