Ladla Samadhi Yojana : संकट से बचना है तो शुरू करें 'लाड़ला समधी योजना'

If you want to avoid crisis then start 'Ladla Samadhi Yojana'
 
'Ladla Samadhi Yojana

(मुकेश "कबीर" - विभूति फीचर्स)  हमारे देश में 'लाड़ली लक्ष्मी', 'लाड़ली बेटी', 'लाड़ली बहना' जैसी योजनाओं की ऐसी धूम है कि इनके सहारे कई ऐसे नेता भी चल निकलते हैं जो अपनी ताकत पर खड़े होने लायक भी नहीं होते। जब इन योजनाओं के कारण न चलने वाले नेता भी चल जाते हैं, तो ये योजनाएँ भला क्यों न चलें? और जब भी लगता है कि सरकार की गाड़ी डगमगा रही है, तुरंत एक नई 'लाड़ली' योजना की घोषणा हो जाती है

क्यों सिर्फ बेटी और बहना ही लाड़ली?

सवाल यह है कि हमारी सारी लाड़ली योजनाएँ केवल बेटी और बहना तक ही क्यों सीमित हैं? जीजा, भाई, फूफा, समधी और समधन ने आखिर सरकार का क्या बिगाड़ा है? जीजा और फूफा का तो चलो समझ आता है—जीजा का नखरेला होना और आगे चलकर फूफा बनकर 'करेला और नीम चढ़ा' हो जाना। फूफा तो बेचारा मुन्नी के बाद देश में सबसे ज्यादा बदनाम है। वह फूं-फां बहुत करता है, इसलिए वैज्ञानिक भी उसे जुरासिक पार्क के डायनासोर जैसा ही समझते हैं। लेकिन समधी ने क्या अपराध किया है? लाड़ला समधी योजना तो चलनी ही चाहिए!

समधी को लाड़ला बनाओ, घर-घर की कहानी ख़त्म करो

समधी वह महत्वपूर्ण व्यक्ति है जो हमारे घर में अपनी लाड़ली (बेटी) देता है। वह लाड़ली होती है, इसलिए लड़ भी लेती है—लड़ना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। उसकी इस 'लड़ाई' की एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि हम उनके पिता यानी समधी को लाड़ नहीं करते! इसलिए घर-घर के झगड़ों को ख़त्म करने के लिए 'लाड़ला समधी योजना' की सख्त ज़रूरत है।

इस योजना की मुख्य शर्तें

  1. संवैधानिक अधिकार: समधी को हर हफ़्ते लाड़ली के घर जाने का संवैधानिक अधिकार दिया जाए।

  2. शाही स्वागत: उनका स्वागत-सत्कार उसी तरह करवाया जाए, जैसे सरपंच साब पहली बार आपके घर आए हों, और यह हर बार 'पहली बार' जैसा ही स्वागत सुनिश्चित किया जाए।

याद रहे, समधी भी कभी किसी का फूफा रहा होगा। जैसे 'सास भी कभी बहू थी', वैसे ही 'समधी भी पहले फूफा था'! हमें समधी के अंदर से फूफा को बाहर आने का मौका नहीं देना है। अगर ऐसा हुआ, तो घर की लक्ष्मी (बहू) के अंदर से भवानी (क्रोध) निकलने में देर नहीं लगेगी, और फिर भवन में रहना मुश्किल हो जाएगा।

समधी नाराज़ तो रोग लाइलाज

इसलिए, सारी अन्य योजनाओं को बंद करके तुरंत 'लाड़ला समधी योजना' शुरू कीजिए। इसमें लाड़ली लक्ष्मी तो वैसे भी 'इनबिल्ट' (Inbuilt) रहती ही है सूत्र याद रखें: समधी खुश, तो लाड़ली खुश। समधी नाराज़, तो रोग लाइलाज। इस सूत्र को पुलिस वालों के 'देशभक्ति जनसेवा' की तरह ब्रह्म वाक्य समझिए। सिर्फ इतना ही नहीं, 'लाड़ला समधी योजना' के तहत समधी जी की आरती भी रोज घर-घर गवाई जाए, जैसे दफ़्तर-दफ़्तर 'वन्दे मातरम' गवाया जाता है। अब त्रेता युग नहीं है, जब समधी अपनी लाड़ली के घर खाना नहीं खाते थे। अब कलयुग है! अब या तो समधी खाना खाएगा, नहीं तो लाड़ली आपकी जान खा जाएगी। ("Now you have to decide what you prefer" - अब आपको तय करना है कि आप क्या पसंद करेंगे।)

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