भगवान महाकालेश्वर: काल के भी काल

Lord Mahakaleshwar: The time of time
 
श्रावण मास के अवसर पर विशेष लेख श्रृंखला का चौथा लेख।
(अंजनी सक्सेना – विभूति फीचर्स)
भारतवर्ष में ज्योतिर्लिंगों की पूजा, दर्शन और आराधना की परंपरा अत्यंत प्राचीन और श्रद्धा से परिपूर्ण रही है। ऐसा माना जाता है कि ये ज्योतिर्लिंग स्वयंभू होते हैं, जो स्वयं भगवान शिव की दिव्य शक्ति और चेतना के प्रतीक हैं। इन बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में उज्जैन स्थित महाकालेश्वर का विशेष स्थान है। न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक, खगोलीय और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महाकालेश्वर अद्वितीय हैं।

महाकालेश्वर का सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्व

महाकवि कालिदास ने ‘रघुवंश’ और ‘मेघदूत’ जैसे काव्यों में महाकाल की स्तुति की है। भवभूति, भास और बाणभट्ट जैसे संस्कृत साहित्यकारों ने भी अपने ग्रंथों में उज्जैन के इस देव स्थान की महिमा का बखान किया है। वामन पुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण, भविष्य पुराण और सौर पुराण में महाकालेश्वर की उपासना और कथाएं विस्तृत रूप से वर्णित हैं।

शिवपुराण में वर्णित कथा

शिवपुराण के अनुसार, दूषण नामक एक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया और उसके बाद धार्मिक लोगों को सताने लगा। उज्जैन के एक शिव भक्त ब्राह्मण ने भगवान शिव से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान शिव गहन समाधि में थे, लेकिन भक्त की पुकार सुनकर वे महाकाल रूप में प्रकट हुए और दूषण का वध कर उज्जैन में ही महाकालेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।

उज्जैन: खगोलीय और भौगोलिक महत्व

प्राचीन काल में उज्जैन को कालगणना का केन्द्र माना जाता था। यहां से कर्क रेखा गुजरती है और सूर्य की परम क्रांति लगभग 24 अंश है। 21 जून को सूर्य ठीक इस स्थान के ऊपर आता है—जो विशिष्ट खगोलीय घटना है। इसी कारण वराहमिहिर जैसे खगोलशास्त्री उज्जैन में निवास करते थे। महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित वेधशाला आज भी खगोलीय गणनाओं में सक्रिय है। वर्तमान में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रयासों से उज्जैन में एक नई वेधशाला और वैदिक घड़ी की स्थापना की गई है।

ज्योतिर्लिंग की विशेषताएं

महाकाल मंदिर तीन भागों में विभाजित है
1. पहला (निचला) खंड
यहाँ भगवान महाकालेश्वर की स्वयंभू, नागवेष्टित और दक्षिणमुखी प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह दक्षिण दिशा की ओर स्थापित एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जिसे तांत्रिक उपासना में अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
2. दूसरा खंड:
इसमें भगवान ओंकारेश्वर का शिवलिंग प्रतिष्ठित है।
3. तीसरा (ऊपरी) खंड:
यहाँ नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा स्थापित है, जो सिर्फ नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खोली जाती है।
अन्य मंदिर और धार्मिक संरचनाएं
महाकाल मंदिर परिसर में स्वप्नेश्वर महादेव का मंदिर है, जिसकी मान्यता है कि इसके दर्शन से बुरे स्वप्नों का प्रभाव समाप्त होता है। मंदिर के दक्षिणी भाग में अनादिकालेश्वर और वृद्ध महाकालेश्वर के मंदिर भी हैं। परिसर में स्थित कोटि चक्र तीर्थ नामक सरोवर का धार्मिक महत्त्व यह है कि इसमें स्नान करने से कोटि अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।

महाकालेश्वर का पूजन और भस्म आरती

मंदिर में प्रतिदिन भगवान शिव का तीन बार श्रृंगार, आरती और भोग होता है। विशेष रूप से प्रातःकालीन भस्म आरती अत्यधिक प्रसिद्ध है। यह आरती सुबह चार बजे होती है और इसमें भाग लेने के लिए विशेष पारंपरिक वस्त्र पहनना अनिवार्य है। इस आरती में भगवान का श्रृंगार चिता की भस्म से किया जाता है, जो तांत्रिक आस्था का प्रतीक है।

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