लखनऊ समकालीन भारतीय कला मेला समकालीन कलाकारों का चिंतन विमर्श

Lucknow Contemporary Indian Art Fair Discussion of Contemporary Artists
 
Lucknow Contemporary Indian Art Fair Discussion of Contemporary Artists
 लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)।उत्तर प्रदेश की राजधानी में ‘लखनऊ कंटेम्पररी इंडियन आर्ट फेयर’-2025 के माध्यम से समकालीन कला के इस नये युग के वर्ष में प्रवेश कर रही है। रविवार को फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी और फीनिक्स प्लासियो के संयुक्त तत्वावधान में प्रतिष्ठित फीनिक्स प्लासियो में एक बड़ी प्रदर्शनी लगाई गई। इस प्रदर्शनी का भव्य उद्घाटन मुख्य अतिथि मुकेश मेश्राम प्रिंसिपल सेक्रेटरी टूरिज्म एंड कल्चर, गैलरी संरक्षक डॉ. एस. पी. सिंह , मेंबर ऑफ पार्लियामेंट, चेयरमैन लखनऊ पब्लिक स्कूल्स एंड कॉलेजेज, नवीन कुमार कन्नौजिया रीजनल कमिश्नर( ई. पी. एफ .ओ .) लखनऊ, और देश के जाने माने कला समीक्षक, कला इतिहासकार, लेखक जॉनी एम एल व  जय त्रिपाठी ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस अवसर पर गैलरी की निदेशक नेहा सिंह और संजीव सरीन निदेशक फीनिक्स प्लासियो, रंगमंच, फिल्म कलाकार अनिल रस्तोगी, संदीप यादव , क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना, गोपाल सामंत्री,राजेश कुमार सहित देश व प्रदेश के सम्मानित कलाकार, कलाप्रेमी उपस्थित रहे। 


   लखनऊ स्थित फ्लोरसेंस गैलरी द्वारा आयोजित इस आर्ट फेयर में देश के अन्य प्रदेशों बिहार, पश्चिम बंगाल, नई दिल्ली, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के 38 समकालीन युवा एवं वरिष्ठ कलाकारों की 120 कलाकृतियों (पेंटिंग, मूर्तिकला, सिरामिक और इंब्रॉयडरी) को लखनऊ स्थित फोनिक्स प्लासियो में प्रदर्शित किया गया है। फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी की  निदेशक नेहा सिंह कहती हैं कि कला का सामाजिक और मानवीय भावनाओं से सीधा संबंध है। उन्होने प्रदेश में इस आर्ट फेयर को एक नये स्वरूप में प्रस्तुत करके कला को विस्तृत रूप देते हुए नई संभावनाएं जगाई हैं। दीर्घा में प्रदर्शित सामाजिक, प्रकृतिवादी एवं प्रयोगवादी कृतियों को जब हम देखते हैं

तो उनके कलात्मक तत्व, प्रकृतिवादी स्वरूप से उपजी संवेदनाएं आकृष्ट करती हैं। कहने का तात्पर्य है कि कलाकार दृश्य कला में जिस भी माध्यम में अभिव्यक्त करते हैं, कला का ही एक रूप होता है। जैसे गोपाल सामंत्रे, सूरज कुमार काशी, संजय राजपूत, उदय गोस्वामी, बापी दास आदि के चित्र के प्रकृति के साथ-साथ प्रयोगवादी हैं। यह रचनाधर्मी कलाकार अपनी कलात्मक क्षमता में भी दक्ष हैं। वरिष्ठ चित्रकार उमेश कुमार सक्सेना का अमूर्त हो या समकालीन कलाकारों में रवींद्र कुमार दास सहित युवा कलाकार श्वेता राय, किशोर कुमार, रोहित कुमार शर्मा, हिफजुल कबीर, डिगबिजयी खटुआ, रंजीता कुमारी, नितीश शर्मा, शिखा पटेल, शुभंकर तरफदार, राम संजीवन और कई अन्य कलाकारों की कृतियां हों, ये सभी प्रेम, प्रकृति अथवा सामाजिक चुनौतियों को संदर्भित करती हैं। भावनात्मक जुड़ाव बनाती ये कृतियां दर्शकों को कल्पना की गहराई और प्रासंगिकता से बुनी कहानियों में डूबने का मौका देती हैं।

 यह ‘लखनऊ कंटेम्परेरी इंडियन आर्ट फेयर’ महज एक आयोजन ही नहीं, बल्कि ऐसा सांस्कृतिक आयोजन है जिसमें कला की चुनौती पर विमर्श है तो समकालीन कलाकारों और चिंतकों के व्याख्यान भी हैं। परंपरा और समकालीन दृष्टिकोणों का एक सहज मिश्रण प्रदर्शित करती है। वैसे तो प्रदर्शित कलाकृतियां मनुष्य की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति को व्यक्त करती हैं, किंतु कलाकार अपनी स्मृति के आधार पर चित्रण करता दिखता है। समाज की व्यापक जिंदगी के चित्र भी अंकित होते चित्रों में अरविंद सिंह, अभिषेक कुमार, अमित कुमार, संबित पांडा, अभिलाषा सिंह ने मानवीय अनुभवों, सामाजिक चुनौतियों,पर्यावरणीय क्षरण और दार्शनिक चिंतन पर दृष्टिकोणों की  जीवंत श्रृंखला प्रस्तुत करते हैं। नवीन तकनीकों और विचारोत्तेजक कायरे के माध्यम से अपनी सरलता का प्रदर्शन करते हैं। अदिति रमन, अंजुम खान, रंजीता कुमार, रश्मि श्रीवास्तव एवं सोनल वार्ष्णेय महिलाओं में परिवर्तन की यात्रा की प्रतीक हैं। प्रियंका सिन्हा अमूर्त चितण्र द्वारा आंतरिक दृष्टि को अभिव्यक्त करती हैं।

फीनिक्स मिल्स के सीनियर सेंटर डायरेक्टर संजीव सरीन ने कहा कि गर्व से आयोजित, कलात्मक प्रतिभा का एक शानदार प्रदर्शन, लखनऊ समकालीन भारतीय कला मेला 2025 (सीआईएएफ-2025) में आपका स्वागत करते हुए मुझे खुशी हो रही है। फीनिक्स पलासियो सिर्फ एक शॉपिंग डेस्टिनेशन से कहीं अधिक है; यह एक गतिशील सांस्कृतिक स्थान है जहाँ नवीनता और कल्पना जीवन में आती है। इस वर्ष, फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी के साथ साझेदारी में, हम अपने आयोजन स्थल को कलात्मक अभिव्यक्ति के एक जीवंत केंद्र में बदलने के लिए उत्साहित हैं।

 कौशलेश कुमार व पायल की कृतियां की गहरी व्यक्तिगत खोज, नितीश शर्मा की मानवता व ब्रह्मांड से संबंध का पता लगाती, नवकाश के अमूर्त टुकड़े से प्रेक्षक को गहन शांति कि ओर ले जाती हैं। भावनाओं और यादों को व्यक्त करतीं राम संजीवन की मूर्तियां शहरी जीवन के मनोवैज्ञानिक आयामों में उतरती हैं। संजय के राज अपने जलरंगों में ग्रामीण-शहरी विभाजन को तो शिवि शर्मा स्वप्निल परिदृश्य दर्शाती हैं, जबकि शिखा पटेल, सुपर्णा मंडल की रचनाएं विचारशील चिंतन को उकसाती हैं। शुभंकर तरफदार की कला सामाजिक कमजोरियों का चिंतन है, भोपाल के उदय गोस्वामी का ध्यान विकास और परिवर्तन का प्रतीक है। अमित गौढ़, सचिन्द्र नाथ झा के शिल्प एवं ललित भारतीय की शिल्पाकृतियाों के साथ विजिन्द्र महली और प्रेम शंकर के स्टोनवेयर सैरेमिक आधुनिक जीवन, पहचान, सामाजिक मुद्दों और दुनिया के साथ मानवता के विकसित होते संबंधों की जटिलताओं से जूझते हुए एक गतिशील कथा का निर्माण करते प्रतीत होते हैं। कुल मिला कर ‘लखनऊ कंटेम्पररी इंडियन आर्ट फेयर’ जैसे आयोजन, समकालीनता और भावों के इस प्रयोग में अपनी चुनौतीपूर्ण लकीर खींचते हैं। 


  इस भव्य कला मेला के क्यूरेटर देश के जाने माने कलाकार, क्यूरेटर और समीक्षक भूपेंद्र कुमार अस्थाना, गोपाल सामंत्रे, और राजेश कुमार है।इस अवसर पर सांसद डॉ. एस.पी. सिंह ने कहा कि - " इस प्रकार की प्रदर्शनियों की उत्तर प्रदेश में नितांत आवश्यकता है, और कला क्षेत्र में इस तरह के शोधात्मक प्रयोग होते रहने चाहिए।विद्यालयों से लेकर प्रमुख शोध संस्थानों को कला को बढ़ावा देने में पूरा सहयोग करना चाहिए। आज  जिस तरह का यह समकालीन कलाकृतियों की प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है, इससे पूरे देश में कला जगत को प्रेरणा मिलेगी ऐसा मेरा विश्वास है।"
 
नई दिल्ली से आए कला समीक्षक जय त्रिपाठी और जॉनी एम एल ने कहा कि दृश्य कला में विभिन्न कलाकारों द्वारा रचे गए दृश्य अपनी रचनात्मकता के माध्यम से उनके सौंदर्यबोध एंव अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं, एक परिष्कृत अर्थ के संदर्भ में कला का यह निरंतर विकसित होना है। कला के निर्माण से संबंधित वैचारिकता के परिणाम का एक स्वरूप यह भी है यह लखनऊ सी आई ए एफ 2025।

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