बंपर बिजली उत्पादन से आत्मनिर्भरता और समृद्धि की ओर बढ़ता मध्यप्रदेश

Madhya Pradesh moving towards self-reliance and prosperity with bumper power generation
 
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(विवेक रंजन श्रीवास्तव – विनायक फीचर्स)

कभी बिजली कटौती के लिए बदनाम रहा मध्यप्रदेश आज ऊर्जा अधिशेष (Power Surplus) राज्य के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में प्रदेश ने विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हासिल की हैं। यही कारण है कि आज औद्योगिक विकास की रफ्तार तेज हुई है और किसानों को भी भरपूर लाभ मिल रहा है।

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ऊर्जा के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति

साल 2000 में जहाँ राज्य की स्थापित क्षमता करीब 3,000 मेगावाट थी और ग्रामीण अंचल में अंधेरे के हालात आम थे, वहीं अब यह क्षमता बढ़कर 32,500 मेगावाट से अधिक हो चुकी है। यह छलांग ही मध्यप्रदेश को ऊर्जा आत्मनिर्भर और बिजली सरप्लस राज्यों की सूची में ले आई है।

तापीय और नवीकरणीय ऊर्जा का संतुलन

आज प्रदेश के पास 21,000 मेगावाट से अधिक तापीय बिजली उत्पादन है, जो बेसलोड को सुनिश्चित करता है। साथ ही 11,000 मेगावाट से ज्यादा बिजली सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय स्रोतों से आ रही है। इस तरह एक ओर कोयले पर आधारित पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन है तो दूसरी ओर पर्यावरण अनुकूल स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।

बड़े बिजली प्रोजेक्ट्स – प्रदेश की शान

  • विंध्याचल ताप विद्युत स्टेशन – 4,760 मेगावाट, देश का सबसे बड़ा थर्मल पावर प्लांट

  • सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट (सिंगरौली) – 3,960 मेगावाट, निजी क्षेत्र की बड़ी उपलब्धि

  • श्री सिंहाजी तापीय विद्युत केंद्र (खंडवा) – 2,520 मेगावाट, राज्य का प्रमुख प्रोजेक्ट

  • खरगोन सुपर थर्मल पावर स्टेशन – 1,320 मेगावाट

  • संजय गांधी तापीय गृह (बिरसिंहपुर) – 1,340 मेगावाट

इन पाँच बड़े केंद्रों के बिना प्रदेश की ऊर्जा तस्वीर अधूरी मानी जाएगी।

सरकारी और निजी क्षेत्र की साझेदारी

एमपी पावर जेनरेटिंग कंपनी के पास करीब 6,500 मेगावाट की क्षमता है, वहीं निजी कंपनियाँ और केंद्र सरकार के उपक्रम (एनटीपीसी, सासन, एमबी पावर, जेपी निगरी) कहीं अधिक क्षमता के साथ योगदान दे रहे हैं। यही वजह है कि मध्यप्रदेश आज अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली पैदा कर रहा है और अन्य राज्यों को भी आपूर्ति कर पा रहा है।

जलविद्युत और नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में कदम

राज्य की भौगोलिक सीमाओं के कारण जलविद्युत उत्पादन केवल 2,200 मेगावाट (लगभग 7%) तक सीमित है। इस कमी को पूरा करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा पर जोर दिया गया है।

  • रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट

  • ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट

  • नीमच सोलर प्रोजेक्ट

ये सभी परियोजनाएँ हरित ऊर्जा की दिशा में प्रदेश की दूरदर्शी सोच को दर्शाती हैं।

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