मदमहेश्वर: हिमालय की गोद में विराजमान भगवान शिव का मोहक स्वरूप

(लेखिका: अंजनी सक्सेना – विभूति फीचर्स)
हिमालय की ऊँचाईयों में भगवान शिव अनेक रूपों में विराजित हैं। उत्तराखंड के पवित्र क्षेत्र में स्थित मदमहेश्वर (या मध्यमहेश्वर), पंच केदार में से एक है, जहाँ शिव और पार्वती का एक अद्वितीय सजीव स्वरूप दर्शन को मिलता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है, बल्कि शिवभक्तों की आस्था, तप और यात्रा की परीक्षा भी लेता है।
पंच केदार यात्रा का प्रमुख पड़ाव
उत्तराखंड के पंच केदार – केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमहेश्वर और कल्पेश्वर – उन पांच पवित्र स्थानों में शामिल हैं जहाँ भगवान शिव ने पांडवों को अपने पांच अंगों में प्रकट होकर दर्शन दिए थे। मदमहेश्वर को भगवान शिव के मध्यम भाग (नाभि और उदर) का प्रतीक माना जाता है।
यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ तक पहुँचने के लिए तीर्थयात्रियों को पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यह स्थान रांसी गांव से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि रांसी तक की दूरी उखीमठ से लगभग 30 किलोमीटर है।

शिव की कथा: पांडवों से लेकर पंच केदार तक
महाभारत के युद्ध में ब्राह्मणों और गुरुओं के वध के कारण पांडव ‘ब्रह्महत्या’ जैसे पाप से ग्रस्त हो गए थे। जब वे इस दोष से मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण के कहने पर भगवान शिव की शरण में पहुँचे, तो शिव उनसे रुष्ट होकर नंदी का रूप धारण कर ‘गुप्तकाशी’ की ओर चले गए। पांडवों की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपने शरीर के विभिन्न अंगों को पांच स्थानों पर प्रकट किया:
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केदारनाथ में धड़
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तुंगनाथ में भुजाएं
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रुद्रनाथ में मुख
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मदमहेश्वर में नाभि
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कल्पेश्वर में जटाएं
इन्हीं स्थानों पर पांडवों ने मंदिरों की स्थापना की और शिव की उपासना कर मोक्ष प्राप्त किया।
मदमहेश्वर मंदिर की विशेषता
मदमहेश्वर मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियाँ एक ही काले प्रस्तर की शिला में उकेरी गई हैं। भगवान शिव एक विशेष ध्यानमग्न मुद्रा में विराजमान हैं और उनकी बायीं जंघा पर माता पार्वती बैठी हैं। दोनों एक-दूसरे को निहारते प्रतीत होते हैं, जिससे यह दृश्य अत्यंत मनोहारी बन जाता है।
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भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा और गंगा सुशोभित हैं
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उनके गले में सर्प लिपटा है, एक हाथ में डमरू और दूसरे में त्रिशूल है
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पार्वती देवी वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित हैं
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मंदिर में एक शिवलिंग भी प्रतिष्ठित है, जो यहां की दिव्यता को पूर्ण करता है
बूढ़ा मदमहेश्वर: और ऊँचाई पर एक और आस्था स्थल
मुख्य मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर ऊपर और समुद्र तल से करीब 3700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है बूढ़ा मदमहेश्वर। यहाँ तक पहुँचने के लिए कठिन चढ़ाई है, लेकिन श्रद्धालु इस कठिनाई को भी श्रद्धा से पार कर लेते हैं। यह स्थल शांति, प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक अनुभूति का एक संगम है।
