लोकतंत्रीय प्रणाली पर आधारित राम राज्य के पक्षधर थे महात्मा गांधी

Mahatma Gandhi was in favour of Ram Rajya based on democratic system
 
Mahatma Gandhi was in favour of Ram Rajya based on democratic system
(संजय कुमार जैन - विनायक फीचर्स)  महात्मा गांधी के बिना आजाद भारत की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। महात्मा गांधी का भारतीय  लोकतंत्र से क्या आशय था?आज के समय में यह जान लेना अनुपयोगी न होगा।  


 राज्य विहीन लोकतंत्र 


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी ने राजनैतिक क्षेत्र में संत तथा धार्मिक क्षेत्र में राजनीतिज्ञ की भूमिका निभाई है। उनका उद्देश्य राजनीति को धार्मिक एवं आध्यात्मिक बनाना था। गांधीजी के मतानुसार मनुष्य का सबसे बड़ा लक्ष्य अपनी आत्मा का विश्वास करना है। यह तब तक नहीं हो सकता जब तक कि व्यक्ति अपने आपको समूचे मानव समाज के साथ अभिन्न न समझे और समस्त व्यक्तियों के हित का ध्यान रखे या सर्वोदय को अपने जीवन का लक्ष्य न बनाये। उनकी विचारधारा को दार्शनिक अराजकता कहा जा सकता है। दार्शनिक आधार पर उन्होंने राज्य का विरोध इसलिये किया था कि इसमें व्यक्ति की नैतिकता के विकास का कोई अवसर नहीं है।

कोई कार्य उसी दशा में नैतिक हो सकता है, जब उसका करना पूर्ण रूप से हमारी स्वतंत्र इच्छा पर निर्भर हो, राज्य चाहे कितना ही लोकतंत्रात्मक क्यों न हो,वह अपने स्वरूप को समाप्त कर उसके स्थान पर राज्य विहीन लोकतंत्र स्थापित करना चाहते थे। ऐसे राज्य में व्यक्ति सामाजिक जीवन की अपनी इच्छाओं से नियमन करते हैं। गांधीवादी आदर्श अराजकता लोकतंत्रीय समाज है। वह सत्याग्रह के सिद्धांतों का पालन करने वाले व्यक्तियों के आत्म निर्भर ग्रामीण समुदायों का संघ है। इस लोकतंत्र का आधार विकेंद्रीकरण है। जिसमें स्वेच्छा पूर्ण सहयोग भी होगा एवं सभी व्यक्तियों के अधिकार समान होंगे। गांधीजी की लोकतंत्र की कल्पना थी कि समाज के सभी व्यक्ति अनिवार्य रूप से शारीरिक श्रम करेंगे, आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति न रखेंगे और इस प्रकार के लोकतंत्र में किसी प्रकार का शोषण नहीं होगा।उनका यह लोकतंत्र सत्य, अहिंसा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित था जिससे एक आदर्श समाज की स्थापना होगी।


 संसदीय शासन प्रणाली 


गांधीजी राज्य को साध्य न मानकर साधन मानते थे, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को निरंतर उत्कृष्ट बना सके। राज्य का प्रमुख कार्य सभी व्यक्तियों का अधिकतम हित करना है। गांधीजी राज्य की निरपेक्ष प्रभुता के विरोधी थे। वे नैतिकता विरोधी कानूनों का प्रतिरोध करने का अधिकार ही नहीं देते थे बल्कि उसे व्यक्ति का कर्तव्य भी मानते थे। अच्छे एवं एक सच्चे लोकतंत्र की स्थापना हेतु यह भावना भी आवश्यक है।

गांधीजी ने संसदीय शासन प्रणाली तथा प्रतिनिधित्व व्यवस्था की कटु आलोचना की है। फिर भी वे प्रतिनिधि संस्थाओं एवं चुनावों के विरोधी नहीं थे। उनका कहना था कि भारत के सात लाख गांवों का शासन उनकी इच्छानुसार होना चाहिये और चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार स्वार्थ रहित, भ्रष्टाचार से दूर, आत्म विज्ञापन से दूर पद लोलुपता विहीन  होना चाहिए।
लोकतंत्र में बहुमत का शासन होगा, किंतु बहुमत वाले की अल्पमत की अवहेलना करने का अधिकार नहीं होगा। सिद्धांत या आदर्श के विषय में बहुमत को मानना दासता का सूचक है। लोकतंत्र का अर्थ भेड़चाल नहीं है। वे ऐसी सरकार को सर्वोत्तम मानते थे जो कम से कम शासन को राज्य के कार्यों को कम करके उन्हें दूसरी ऐच्छिक संस्थाओं को सौंपने चाहते थे।


सच्चा लोकतंत्रीय शासन उसी देश का होता है। जहां राज्य के हस्तक्षेप के बिना सभी कार्य ऐच्छिक आधार पर पूर्ण किये जाते हैं। गांधी का लोकतंत्र जनता की अधिकतम सद्भावना एवं नैतिक शक्ति पर आधारित था। वे यह स्वीकार करते थे कि हिसाब हिंसात्मक एवं अपराधी तत्वों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है उनके लोकतंत्र में पुलिस की कल्पना वर्तमान पुलिस से भिन्न बताई थी, उन्होंने उसे जनता को सेवक माना है। उनका लोकतंत्र बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय के सिद्धांतों पर आधारित था।


 विकेन्द्रीकरण  


गांधीजी राजनैतिक और आर्थिक क्षेत्रों में शक्ति तथा धन के केंद्रीयकरण को सब बुराईयों की जड़ मानते थे। उनके रामराज्य और लोकतंत्र में यह कल्पना थी कि राजनैतिक क्षेत्र में सत्ता का विकेंद्रीकरण हो और आर्थिक क्षेत्र में भी विकेंद्रीकरण कर आर्थिक विषमता की खाई को घटाया जा सके,उन्होंने भारत में अपने आदर्श ग्राम स्वराज्य का चित्रांकन करते हुए बताया है

कि उसमें प्रत्येक ग्राम एक पूर्ण गणराज्य होगा। वह अपनी आवश्यक वस्तुओं के लिए पड़ोसी राज्य पर निर्भर नहीं होगा। खाने के लिए अन्न, कपड़े के लिए रुई, पशुओं के लिए पर्याप्त गोचर भूमि होगी। उसमें अपनी-अपनी नाट्यशाला,सार्वजनिक भवन, पाठशाला, जलाशय, कूप आदि होंगे। प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य होगी। प्रत्येक कार्य सहकारिता के आधार पर आधारित होगा। ग्राम का शासन पांच व्यक्तियों की एक पंचायत द्वारा संचालित होगा। इस प्रकार गांधीजी सत्ता के विकेंद्रीकरण के प्रबल समर्थक थे। उनके अनुसार शासन, केंद्र से राज्य, शासन से जिले, जिले से तहसील क्रमश: पंचायत स्तर तक होना चाहिये।


गांधीजी के अनुसार पूंजीवाद अपने आपको जमीन, संपत्ति, कारखानों आदि का स्वामी न समझकर, उन्हें समाज की धरोहर समझकर संचालन, अपने लाभ के लिए न बल्कि समाज के लाभ हेतु करें। यह विचारधारा अपरिग्रह के सिद्धांत पर आधारित है।
विभिन्न देशों में आर्थिक विषमता मिटाने के लिए उत्पादन के साधन पूंजी पतियों से छीन कर उन्हें राज्य के अधीन संचालित किया जाता है। गांधीवादी विचारधारा इस संदर्भ में एक नयी दिशा प्रदान करती है। समाज में आर्थिक समानता तथा शोषण की समाप्ति के लिये संरक्षण अथवा न्यास सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं। वे पूंजीपतियों से उनकी सम्पत्ति जबरदस्ती छीनने के पक्ष में नहीं थे।

बल्कि वे कहते थे पूंजीपतियों को अपनी संपत्ति को समाज की धरोहर समझना चाहिये।  मार्क्सवादी विचारक यह मानने को तैयार नहीं है कि धनिक लोग स्वेच्छा पूर्वक अपनी संपत्ति का त्याग कर देंगे। किंतु गांधीजी को मानवीय प्रकृति की उदारता, दिव्यता और सुधार में अगाध विश्वास था। उनके अनुयायी विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन से गांधीजी के सिद्धांतों को क्रियान्वित करते हुए हजारों एकड़ भूमि किसानों को दिलवाई थी।

इस प्रकार गांधी जी ने लोकतंत्रीय प्रणाली पर आधारित राम राज्य की कल्पना की थी, और उक्तानुसार व्यवस्था में वे पूर्ण पक्ष में थे। गांधीजी का लोकतंत्र सत्य, अहिंसा एवं न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है। जो उनकी कल्पना के राम राज्य को साकार रुप देने के लिए पूर्णत: सक्षम है। 

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