Powered by myUpchar
मणी झा और हेमवती नंदन बहुगुणा स्मृति समिति के संत प्रसाद पांडेय जी के द्वारा महाकुम्भ में भूले, बिछड़े श्रद्धालुओं को मिलाये जाने एवं उनके केन्द्र की कार्यप्रणाली को साझा किया गया

लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। मुख्यमंत्री उ0प्र0 योगी आदित्यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश पुलिस की उपलब्धियों, विशेषताओं एवं किए गए सराहनीय कार्यों को वीडियो के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित करने के निर्देश दिए गए थे, जिसके अनुपालन में पुलिस महानिदेशक उ0प्र0, प्रशान्त कुमार द्वारा एक अभिनव पहल करते हुए उ0प्र0 पुलिस के “Beyond the Badge ” नामक पॉडकास्ट के श्रृंखला की शुरूआत की गयी है। उक्त पॉडकास्ट के ग्यारहवें एपिसोड में महाकुम्भ मे पुरानी पद्धति से कार्य करने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा स्मृति समिति के खोया पाया केन्द्र प्रभारी संत प्रसाद पांडेय जी एवं आधुनिक डिजिटल खोया पाया केन्द्र प्रभारी मणी झा के द्वारा महाकुम्भ में भूले/ बिछड़े श्रद्धालुओं को मिलाये जाने, उनके केन्द्रों में अपनायी जा रही तकनीक एवं अपने-अपने केन्द्रों की कार्यप्रणाली के बारे में पुलिस उपाधीक्षक तनु उपाध्याय एवं उनकी सहयोगी एंकर मानसी त्रिपाठी के साथ विस्तार से चर्चा की गयी ।
हेमवती नंदन बहुगुणा स्मृति समिति के संत प्रसाद पांडेय के द्वारा बताया गया कि उनकी समिति के द्वारा 1950 के दशक से कुम्भ, अर्धकुंभ में खोया पाया केन्द्र संचालित किया जा रहा है । इनके द्वारा बताया गया कि हमारे यहां तो खोने वालों का नाम पर्चियां में लिखकर अनाउंसमेंट करने की व्यवस्था रहती है, किंतु डिजिटल खोया पाया केंद्र नई टेक्नोलॉजी के अनुसार काम करता है इस वजह से उनके द्वारा ज्यादा लोगों की मदद की जाती है, क्योंकि नई तकनीक से लोग बहुत जल्दी मिल जाते है। यही वजह है कि इनके केंद्र द्वारा रजिस्ट्रेशन करने के उपरांत अधिकांश लोगों को डिजिटल खोया पाया केंद्र में भी जानकारी करने के लिए भेज दिया जाता था।
डिजिटल खोया पाया केंद्र के मणी झा के द्वारा अवगत कराया गया कि डिजिटल खोया पाया केन्द्र की शुरुआत वर्ष 2019 के कुम्भ में पुलिस प्रशासन के सहयोग से हुई थी, तथा 2019 में 39 हजार लोगों को उनके परिवारों से मिलाया गया था। मणि झा द्वारा यह भी बताया गया कि इस बार केंद्र में 02 नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया जिससे काफी फायदा मिला है, जिसमें से एक है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा दूसरा है भारत सरकार का भाषिनी पोर्टल।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं फैसियल रिकॉग्निशन से भूले, बिछड़े आदमी की जानकारी जैसे उसका नाम, निवास स्थान, परिजनों के नाम और फ़ोटो को डालने से बहुत तेजी से सर्च हो जाता था । भाषिनी के सहयोग से देश के किसी भी कोने से आने वाले श्रद्धालु की भाषा को हिंदी अथवा अंग्रेजी में ट्रांसलेट करके उनसे वार्ता किए जाने के कारण कोई कम्युनिकेशन गैप नहीं रहता था और श्रद्धालुओं की बेहतर तरीके से मदद हो जाती थी ।
संत प्रसाद के द्वारा बताया गया कि पुराने जमाने में हम लोग पर्चियां काटकर भूले भटके लोगों का नाम लाउडस्पीकर के माध्यम से अनाउंस कराया करते थे पर आज मोबाइल की वजह से यह काम काफी आसान हो गया है। इसके साथ ही संत प्रसाद जी के द्वारा यह भी बताया गया कि पुराने जमाने में खोए हुए लोगों को उनके परिवार से मिलने के लिए लोग गांव के चौकीदार तथा नगड़िया बजाने वाले के माध्यम से गांव-गांव में जाकर सूचना दिया करते थे।
डिजिटल खोया पाया केंद्र के मणी झा द्वारा बताया गया कि उनके यहां महिलाओं, वृद्धो, पुरुषों तथा बच्चों के लिए अलग-अलग कक्ष की व्यवस्था की गई थी तथा बच्चों का मनोरंजन करने के लिए खेलकूद के सामान के साथ-साथ वालंटियर भी रहते थे जो बच्चों के परिजन के मिलने तक उनका ख्याल रखते थे। इसके साथ ही उन लोगों के द्वारा NGO से भी टाइ-अप किया गया था, जो भूले-बिछड़े लोगों की काउंसलिंग किया करते थे, जब तक उनके परिजन न मिल जाए।
मणि झा जी के द्वारा बताया गया कि पूरे महाकुंभ में उनके अलग-अलग सेक्टर में 10 केंद्र स्थापित किए गए थे तथा सभी केंद्र एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए थे।सभी केन्द्र में बड़ी-बड़ी टीवी लगाई गई थी, जिनमें लगातार खोए हुए लोगों के बारे में जानकारी प्रसारित की जाती थी। साथ ही उनके द्वारा बताया गया कि समस्त तकनीक होने के बाद भी बहुत से ऐसे प्रकरण थे जिनमें पुलिस की मदद से ही बिछड़ों को उनके परिजनों से मिलाया जा सका। साथ ही यह भी बताया गया कि पुलिस और वॉलिंटियर, डिजिटल खोया पाया केंद्र की दो आंखें हैं तथा पुलिस के सहयोग के बिना भूले भटकों को मिला पाना असंभव है।
आमंत्रित अतिथियों द्वारा महाकुम्भ के दौरान श्रद्धालुओं से जुड़े यादगार किस्से, पुलिस के सहयोग से श्रद्धालुओं को मिलाए जाने, शाही स्नान के दिनों मे की जाने वाली तैयारियों के सम्बन्ध में चर्चा करते हुए महाकुम्भ आने वाले श्रद्धालुओं को यह सलाह दी कि वह जब यहाँ पर आए तो अपने हाथ में अथवा गले में अपने परिजनों के मोबाईल नंबर से सम्बन्धित सूचना अवश्य पहनकर आए जिससे उनके परिजनों को ढूँढने में आसानी हो ।