Manipur : हिंदू-मुसलमान की लड़ाई से ज्यादा खतरनाक है ये हिंदू-ईसाई की लड़ाई
चर्चा जब हो रही है मणिपुर हिंसा पर तो सबसे पहले इसके मूल कारणों को समझना चाहिए... ये समझ लीजिए कि जितने मुंह उतनी बातें… मणिपुर में जारी हिंसा के लिए कोई सत्ता पक्ष को दोषी बता रहा, तो कोई विपक्ष को… पर हकीकत इन सब से इतर है, बहुत ही खतरनाक है…आंखें मूंद लेने से खतरा खत्म नही हो जाता…आज मणिपुर हिंसा विपक्ष के लिए अवसर लेकर आया है, तो सत्ता पक्ष असहज है... सारे नाग बिलों से निकल आये हैं और विष उगल रहे हैं जैसे वो इसी अवसर की तलाश में दिन गुज़ार रहे थे…हम बात कर रहे थे मणिपुर हिंसा के मूल कारण की... और मूल कारण जानने के लिए हमें इसका इतिहास समझना होगा... तो चलिए आपको ले चलते हैं इसके इतिहास की तरफ…
कांगलीपाक राज्य जिसे आज मणिपुर राज्य के नाम से जाना जाता है, उसकी स्थापना सन् 1110 में राजा लोइयुम्बा ने आसपास की पहाड़ियों में अधिकांश रियासतों को शामिल करके किया था... उस समय इस राज्य में मैतेई लोग रहते थे और ये लोग मैतेई भाषा यानी मणिपुरी भाषा बोलते थे... मैतेई हिन्दू थे और मणिपुर में हिन्दू धर्म का इतिहास बहुत पुराना है... कुछ लोगो का मानना है कि मणिपुर का जिक्र हिन्दू पुराणों में और महाभारत में भी किया गया है... 18वीं और 19वीं सदी में बर्मा में कुछ समुदायों को जिन्हें कुकी समुदाय के नाम से जाना जाता है, उनको वहां के अन्य समुदाय ने परेशान करना शुरू किया और मणिपुर राज्य ने कुकी समुदाय को अपने यहां शरण दे दी और उन्हें पहाड़ियों में बसाया... उसी शताब्दी में बर्मा ने मणिपुर पर आक्रमण किया और मणिपुर राज्य ने कुकी समुदाय के लोगों को अपने यहां बसाया ताकि मणिपुर अच्छे से बर्मा से लड़ाई कर सके...
खैर, 19वीं सदी की शुरुआत हो चुकी थी और अंग्रेज़ भारत आ चुके थे... अंगेज़ी सरकार ने मणिपुर पर हमला किया और 1824 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मणिपुर राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया और मणिपुर राज्य को अपना एक संरक्षित राज्य बना दिया... अंग्रेजी सरकार और कुकी समुदाय के बीच भी झड़प हुई थी और कभी कभी मूल निवासी मैतेई भी अंग्रेज़ो से लड़ते थे... इसी समय ईसाई मिशनरी की नज़र मणिपुर पर पड़ी और उन्होंने कुकी समुदाय को ईसाई बनाना शुरू किया, यही कारण है कि आज ज़्यादातर कुकी ईसाई हैं... वहीं दूसरी तरफ आज भी ज़्यादातर मैतेई या मणिपुरी लोग हिन्दू हैं... जब देश आज़ाद हुआ तो मणिपुर के राजा ने अपने राज्य का विलय भारत में कर लिया.
गौरतलब है कि मणिपुर नागालैंड का पड़ोसी राज्य है और यहां नागा समुदाय के लोग भी रहते हैं... मैतेई समुदाय का कहना है कि अंग्रेज़ो ने मैतेई, नागा और कुकी समुदायों को जनजाति का दर्जा दिया था... लेकिन देश की पहली सरकार यानी नेहरू सरकार ने 1950 में मणिपुर में केवल नागा और कुकी समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया... इसका ये मतलब हुआ कि कुकी समुदाय को आरक्षण तो है ही और वो मैतेई बहुल इलाकों में ज़मीन भी खरीद सकते हैं लेकिन मैतेई लोग, कुकी बहुल इलाको में ज़मीन नहीं खरीद सकते हैं... यही वजह है कि मैतेई लोगों की ये मांग रही है कि उनको भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए... उनका दावा है कि वो मूल निवासी हैं और उनका हक़ छीना जा रहा है...
पिछले साल अप्रैल में मणिपुर उच्च न्यायलय ने मणिपुर सरकार से कहा कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग पर चार महीने के अंदर विचार करे और मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले... इसके बाद कुकी समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया जो हिंसक हो गया... इस तरह मणिपुर में हिंसा की शुरुआत हुई और पिछले लंबे वक्त से वहां हिंसा हो रही है...
1961 में मणिपुर की कुल आबादी का 61% हिस्सा हिन्दू था और 19% ईसाई था लेकिन 2011 में हिन्दू समुदाय की संख्या घट कर 41% हो गयी है और ईसाई समुदाय की संख्या बढ़ कर 41% हो गयी... 1921 तक ईसाई समुदाय मणिपुर की आबादी के केवल एक प्रतिशत थे और आज सौ साल बाद हिंदू के बराबर या शायद उनसे ज़्यादा ही होंगे... अभी भी बर्मा से शरणार्थी भारत आते रहते हैं... मणिपुर में उग्रवाद का इतिहास रहा है और वहां बहुत से आतंकी संगठन रहे हैं... 1998 से भारत सरकार का कुकी आतंकी संगठनों के साथ युद्ध विराम चल रहा है... कुछ उग्रवादी संगठन मैतेई समुदाय से भी जुड़े हैं जो पहले से ही अलग मणिपुर देश की मांग करते रहे हैं... इसका मतलब ये है कि दोनों समुदाय के पास हथियार चलाने का अनुभव है और दोनों अपने इलाके में दूसरे समुदाय के लोगो पर हिंसा कर रहे हैं... लोगों को सरेआम मारा जा रहा है, महिलाओं का बलात्कार किया जा रहा है, घरों को जलाया जा रहा है, संपत्तियों को लूटा जा रहा है, मंदिरो और चर्चों को जलाया जा रहा है... एक तरह से वहां गृहयुद्ध हो रहा है... आलम इतने बुरे हैं कि भारतीय सेना और अर्धसैनिक बालों को भी हिंसा पर काबू पाने में दिक्कत हो रही है... बहुत जगहों पर महिलाएं, पुलिस और सेना का रास्ता रोक लेती हैं ताकि उनके पुरुष दूसरे समुदाय पर हिंसा कर सुरक्षित निकल जाएं...
चलिए अब आपको मणिपुर हिंसा की तरफ कांग्रेस का क्या रुख है, आपको इसके इतिहास से रूबरू कराते हैं... आज़ादी के समय वहां के राजा थे बोध चंद्र सिंह और उन्होंने भारत में विलय का निर्णय किया... 1949 में उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बोला कि मूल वैष्णव जो कि 10% भूभाग में रह गए हैं, उनको ST का दर्जा दिया जाए... नेहरू ने उनको जाने को कह दिया... फिर 1950 में संविधान अस्तित्व में आया तो नेहरू ने मैती समाज को कोई छूट नहीं दिया... 1960 में नेहरू सरकार द्वारा लैंड रिफार्म एक्ट लाया जिसमे 90% भूभाग वाले कुकी और नगा ईसाईयों को ST में डाल दिया गया... इस एक्ट में ये प्रावधान भी था जिसमे 90% कुकी-निगा वाले कहीं भी जा सकते हैं, रह सकते हैं और ज़मीन खरीद सकते हैं लेकिन 10% के इलाके में रहने वाले मैती हिंदुओं को ये सब अधिकार नहीं था... यहीं से मैती लोगों का दिल्ली से विरोध शुरू हो गया... नेहरू एक बार भी पूर्वोत्तर के हालत को ठीक करने करने नहीं गए...
उधर ब्रिटैन की MI6 और पाकिस्तान की ISI मिलकर कुकी और नगा को हथियार देने लगी जिसका इस्तेमाल वो भारत विरुद्ध तथा मैती वैष्णवों को भागने के लिए करते थे... मैतियो ने उनका जम कर बिना दिल्ली के समर्थन के मुकाबला किया... हमेशा से इस इलाके में कांग्रेस और कम्युनिस्ट लोगों की सरकार रही और वो कुकी और नगा ईसाईयों के समर्थन में रहे... चूँकि लड़ाई पूर्वोत्तर में ट्राइबल जनजातियों के अपने अस्तित्व की थी तो अलग अलग फ्रंट बनाकर सबने हथियार उठा लिया... पूरा पूर्वोत्तर ISI के द्वारा एक लड़ाई का मैदान बना दिया गया... जिसके कारण Mizo जनजातियों में सशत्र विद्रोह शुरू हुआ... बिन दिल्ली के समर्थन जनजातियों ने ISI समर्थित कुकी, नगा और म्यांमार से भारत में अनधिकृत रूप से आये चिन जनजातियों से लड़ाई करते रहे...
जानकारी के लिए बताते चलें कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट ने मिशनरी के साथ मिलकर म्यांमार से आये इन चिन जनजातियों को मणिपुर के पहाड़ी इलाकों और जंगलों की नागरिकता देकर बसा दिया... ये चिन लोग ISI के पाले कुकी और नगा ईसाईयों के समर्थक थे तथा वैष्णव मैतियों से लड़ते थे... पूर्वोत्तर का हाल ख़राब था जिसका पोलिटिकल सलूशन नहीं निकाला गया और एक दिन इन्दिरा गाँधी ने आदिवासी इलाकों में air strike का आर्डर दे दिया जिसका आर्मी तथा वायुसेना ने विरोध किया परन्तु राजेश पायलट तथा सुरेश कलमाड़ी ने एयर स्ट्राइक किया और अपने लोगों की जाने ली... इसके बाद विद्रोह और खूनी तथा सशत्र हो गया...
1971 में पाकिस्तान विभाजन और बांग्ला देश अस्तित्व आने से ISI के एक्शन को झटका लगा परन्तु म्यांमार उसका एक खुला एरिया था... उसने म्यांमार के चिन लोगों का मणिपुर में एंट्री कराया जिसका कांग्रेस तथा उधर म्यांमार के अवैध चिन लोगों ने जंगलों में डेरा बनाया और वहां ओपियम यानि अफीम की खेती शुरू कर दिया... पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड दशकों तक कुकियों और चिन लोगों के अफीम की खेती तथा तस्करी का खुला खेल का मैदान बन गया... मयंमार से ISI तथा MI6 ने इस अफीम की तस्करी के साथ हथियारों की तस्करी का एक पूरा इकॉनमी खड़ा कर दिया... जिसके कारण पूर्वोत्तर के इन राज्यों की बड़ा जनसंख्या नशे की भी आदि हो गई... नशे के साथ हथियार उठाकर भारत के विरुद्ध युद्ध फलता फूलता रहा... तो ये है मणिपुर को लेकर कांग्रेस के तुष्टिकरण की कहानी...
अगर आप मेनस्ट्रीम मीडिया को देखेंगे तो वो मैतेई समुदाय की तरफ से की जा रही हिंसा पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है और वो कुकी समुदाय की तरफ से किए जा रहे हिंसा को नजरंअदाज कर रहा है... विदेशी मीडिया भी इसे ऐसे ही दिखा रहा है कि हिन्दू समुदाय ईसाई समुदाय पर हिंसा कर रहा है और यूरोपीय संसद में भी चर्चा हुई है क्योंकि उनकी सहानभूति ईसाई समुदाय से है... भारत और विदेशों के कई ईसाई संगठनों ने इस हिंसा पर बयान दिया है और ऐसा माहौल बनाया जा रहा कि 2024 में भाजपा को ईसाई वोट नहीं मिले... एक ऐसी धारणा बनाने की कोशिश हो रही है कि मोदी की शह पर हिन्दू समुदाय या मैतेई समुदाय ईसाई समुदाय यानी कुकी समुदाय पर हिंसा कर रहा है... लेकिन सच्चाई तो अलग है... जहां पर मैतेई समुदाय की majority है वहां पर कुकी समुदाय पर अत्याचार किया जा रहा है और जहां पर कुकी समुदाय की majority है वहां वो मैतेई समुदाय पर अत्याचार कर रहे है... दोनों पक्षों में गलत लोग हैं और उन्होंने मासूमों पर अत्याचार किया है... जो भी दोषी हो उसे सजा मिलनी चाहिए...
बहरहाल, इस हिंसा का सबसे बड़ा दुष्परिणाम ये है कि इस हिंसा ने राज्य के हजारों छात्रों का भविष्य अंधेरे में डाल दिया है... हिंसा के कारण लंबे समय तक इंटरनेट बंद रहने की वजह से उन हजारों छात्रों और लोगों को भी भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है जो देश के दूसरे शहरों में रह कर पढ़ाई या नौकरी कर रहे हैं... कई छात्र अपने समुदाय को बचाने के लिए लड़ाई में कूद गए हैं और उन्होंने कलम छोड़ कर हथियार थाम लिए हैं...
फिलहाल राज्य में शांति की बहाली सबसे बड़ी और पहली प्राथमिकता है... इसके लिए हथियारबंद गुटों से उनके हथियार छीन कर लोगों में भरोसा बहाल करना ज़रूरी है.. शांति बहाली के लिए दोनों गुटों के बीच बातचीत के जरिए उस गलतफहमी को दूर करना ज़रूरी है जो हिंसा की वजह बनी थी. अब ये गलतफहमी कब दूर होती है, इसका जवाब तो वक्त ही बताएगा और ये वक्त कब आता है, इसका इंतज़ार करना होगा