रिश्तों का मंत्र :- परखें नहीं, अपनाएँ

Mantra of relationships:- Don't test, adopt
 
Dnne
लखनऊ डेस्क (प्रत्यूष पाण्डेय)।जीवन की भागदौड़ में हम अक्सर रिश्तों को लाभ-हानि की तराजू में तौलने लगते हैं। किन्तु प्रेम का स्वरूप तो निःस्वार्थ होता है, जिसमें लेन-देन नहीं, केवल अपनत्व और समर्पण का भाव होता है। जब हम रिश्तों को तौलना छोड़कर सम्मान देना आरम्भ करते हैं, तब संबंधों में मधुरता स्वयं उतर आती है।
मित्रता भी इसी दिव्यता का प्रतिबिंब है। सच्ची मित्रता परखने की वस्तु नहीं, समझने का विषय है। यदि हम हर समय मित्र को कसौटी पर कसते रहें, तो संबंध बोझिल हो जाते हैं। किंतु जब हम अपने मित्र को उसके सम्पूर्ण गुण-दोषों के साथ समझने का प्रयास करते हैं, तो आत्मीयता प्रगाढ़ हो जाती है और विश्वास अडिग बनता है।
अतः आइए —
रिश्तों को तौलना नहीं, उन्हें प्रेम व सम्मान से सजाएँ; मित्रों को परखना नहीं, उन्हें समझकर जीवन को सौंदर्यपूर्ण बनाएं।
             ।।जय माता दी।।

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