मां स्मरण दिलाता दिवाली पूर्व धनतेरस का पावन पर्व अपने जन्मदिवस के रूप में: रमेश भइया

Mother reminds me of the holy festival of Dhanteras before Diwali as her birthday: Ramesh Bhaiya
 
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। समाजसेवी रमेश भइया ने कहा कि वैसे तो आज का त्यौहार बर्तन के खरीद आदि के लिए ही प्रमुखत: माना जाता है ।लेकिन मेरे जीवन में इस दिन का एक अलग ही महत्व है। मेरी  मां (अम्मा)आज के दिन छीतेपुर गांव के छोटे से आंगन की गोबर से  लिपाई करके और उस पर चावल को पीसकर उसकी स्याही जैसी बनाकर और रूई से एक गोल स्थान  बनाती थीं।

और उससे दूर एक मीटर दूर दूसरा गोला और यह दूरी हर वर्ष जैसे जैसे मेरी आयु बढ़ती थी वैसे वैसे एक मीटर हर वर्ष बढ़ती जाती थी। गांव की सभी  औरतों का बुलावा लगाकर सब आती थीं ढोलक बजाती थीं।मेरी मां एक डलिया जिसे वह अपने कपड़ों से भी ज्यादा सुरक्षित दीवाल में बनाई गई हटरी में रखती थीं।एक साल बाद ही वह हटरी खुलती थी।

और उससे वह डलिया और सुई जिससे मेरी नाक किसी संकल्प की पूर्ति पर छेदी गई होगी। यह सिलसिला एक वर्ष से लेकर जब विमला बहन से सामाजिक रीति से विवाह हुआ। तब तक अर्थात दिसंबर 1980 तक चला। मां बताती थीं कि आज (धनतेरस) के दिन तुम्हारा जन्म वर्ष 1955 में हुआ था। प्राइमरी स्कूल में नाम जब पिता जी द्वारा लिखाया गया

तो 20 अप्रैल सन 1956 लिखाया गया। लेकिन  धनतेरस वाले दिन का जन्मदिन मां वाला हमें ज्यादा प्रिय भी है। वह अधिकतर तो पवनार में बाबा विनोबा जी के चरणों में उनके आश्रम पर ही पड़ता है।क्योंकि बाबा का निर्वाण दिवस  दीपावली के दिन अमावास्या को होता है। और उस दिन पवनार गांव के लोग दीदी लोगों का आशीर्वाद लेकर पहले से हरिपाठ सप्ताह  और सहभोज कराते हैं। जिसमें हम सब लोग  भी प्रतिवर्ष शामिल होते हैं। बाबा की पुण्यतिथि 15 नवंबर 1982 है।

इस वर्ष दीपावली और 15 नवंबर में 15 दिन का अंतर है।इसलिए हम आज का पावन दिन विनोबा सेवा आश्रम परिवार के साथ ही मनाएंगे। डा.जयपाल सिंह व्यस्त सदस्य शिक्षक विधान परिषद परिवार सदस्य के रूप में आज सायंकाल आश्रम परिवार के साथ उपस्थित रहेंगे। आज  सबेरे पवनार की आदरणीय गंगा लक्ष्मी दीदी के आशीष पाकर 69 वर्ष की जीवन यात्रा को पूर्ण मानकर 70 वर्ष में प्रवेश लिया। यह भावी सत्तरवां वर्ष आप सभी के आशीष एवं शुभकामनाओं के पुंज से विनोबा विचार प्रवाह के प्रचार प्रसार हेतु स्वस्थ,सानंद,सकुशल बीते। इस कामना के साथ। रामहरि।

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