चुनावी मौसम में मुंगेरीलाल और सत्ता के हसीन सपने

सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स) जीवन के हर क्षेत्र में मुंगेरीलालों का बोलबाला है, जो रंगीन और हसीन सपने दिखाकर अपना रोज़गार चला रहे हैं। ये लोग सपने बेचकर अपने व्यापार में प्रगति करते हैं। लेकिन हमारे देश की सियासत में मुंगेरीलाल सबसे अधिक सक्रिय हैं। कुर्सी के खेल में, कोई कुर्सी छीनने के लिए मुंगेरीलाल बना है तो कोई कुर्सी बचाने के लिए।
कुर्सी के मुंगेरीलाल: सपनों की असीमित उड़ान
कुर्सी छीनने और कुर्सी बचाने का प्रयास करने वाले मुंगेरीलालों के सपनों में मुख्य अंतर होता है
| वर्ग | सपनों की प्रकृति | विशेषता |
| कुर्सी बचाने वाला | सीमित सपने | उन्हें मौजूदा संसाधनों और संभावनाओं के भीतर ही सपने दिखाने पड़ते हैं। |
| कुर्सी छीनने वाला | असीमित सपने | इन्हें मनचाहे सपने देखने और दिखाने का असीमित अधिकार होता है, इसलिए वे सपनों की उड़ान की सारी हदें लाँघने में संकोच नहीं करते। |
कड़वा सच और विरोधाभास
समाज में कुछ कहावतें मुंगेरीलाल के सपनों का कड़वा सच उजागर करती हैं, जैसे: "घर में नहीं दाने, मैया चली भुनाने" और "थोथा चना बाजे घना"। ये कहावतें सियासत में खूब चरितार्थ होती हैं, जहाँ विरोधाभास स्पष्ट दिखता है:
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संसाधनों का अभाव: जिसके पास अपना पेट भरने के साधन नहीं हैं, वह औरों को पकवान परोसने की बात करता है।
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शिक्षा और योग्यता: जो खुद अनपढ़ है, वह उत्तम शिक्षा व्यवस्था देने का दम भरता है।
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रोजगार का संकट: जिस प्रदेश के लाखों युवा रोज़गार के लिए भटक रहे हैं, वहाँ मुंगेरीलाल प्रत्येक परिवार के एक व्यक्ति के लिए सरकारी रोज़गार देने का प्रण लेते हैं।
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मुफ्त सुविधाएं: मुफ्त बिजली, मुफ्त बीमा, और मुफ्त की अनेक सुविधाएं देने की बातें की जा रही हैं।
वास्तव में, जिस व्यक्ति के पास संसाधनों का अभाव होता है, वह सपने अधिक देखता है और अपने अभावों की पूर्ति सपने देखकर ही करना चाहता है। इस प्रकार के सपने सियासत में सबसे अधिक देखे जाते हैं।
बदलते युग में पब्लिक की तर्कशक्ति
सत्ता की चाहत में सपने देखने और दिखाने का चलन पुराना है। मुंगेरीलाल समझते हैं कि जनता मासूम है और सपनों में दिखाए गए पुलाव से अपना पेट भर लेगी। इसलिए वे उसे जैसे चाहें, भ्रमित कर सकते हैं। चुनावी रण क्षेत्र में मुंगेरीलाल ऊँचे-ऊँचे प्रण लेते हैं, जैसे: "मैं आसमान से तारे तोड़कर धरती पर लाऊंगा। जनता को अपनी पलकों पर बिठाऊंगा। बिना काम के मजदूरी दिलाऊंगा। घर बैठे खाना खिलाऊंगा। मुफ्त में बिजली दिलाऊंगा।" हालांकि, अब जनता तर्क करने लगी है और शकुनि के पासे फेंकने के पुराने नियम बदल गए हैं।
यह निश्चित नहीं है कि इन मुंगेरीलालों को अपना प्रण पूरा करने का अवसर मिलेगा या नहीं, या वे अपने सपनों को हकीकत में बदल पाएँगे या नहीं। इतना अवश्य निश्चित है कि सपने देखने या दिखाने पर किसी प्रकार के टैक्स का कोई प्रावधान नहीं है। यदि सपनों पर भी जीएसटी का प्रावधान होता, तो मुंगेरीलाल सपने तो देखते, किन्तु उन सपनों को अपना प्रण कहकर प्रचारित न करते। वैसे भी, चुनावी मौसम में यदि मुंगेरीलाल सत्ता के हसीन सपने नहीं देखेंगे, तो भला कौन देखेगा?

