अलौकिक शक्तियों के धनी थे नीम करौली बाबा

Neem Karauli Baba was rich in supernatural powers
 
Neem Karauli Baba was rich in supernatural powers

(रमाकांत पंत – विभूति फीचर्स)  भारतीय संत परंपरा में समय-समय पर ऐसे महान योगी और सिद्ध पुरुष जन्म लेते रहे हैं, जिन्होंने मानव समाज को आध्यात्मिक दिशा देने का कार्य किया। इन्हीं महान आत्माओं में से एक थे बाबा नीम करौली महाराज, जिनका कैंची धाम (उत्तराखंड) स्थित मंदिर आज भी श्रद्धा, चमत्कार और भक्ति का सजीव प्रतीक है।

Neem Karauli Baba was rich in supernatural powers

उत्तराखंड की पावन धरती और कैंची धाम की महिमा


उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है। यहां की रमणीय वादियों, शांत झरनों और प्राचीन मंदिरों की उपस्थिति हर आगंतुक को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। इन्हीं पवित्र स्थलों में एक है कैंची धाम, जिसे बाबा नीम करौली का आश्रम भी कहा जाता है।

यह स्थल न केवल प्राकृतिक रूप से मनोरम है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रभावशाली है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहां की गई सच्ची प्रार्थना और पूजा कभी निष्फल नहीं जाती। हर वर्ष 15 जून को यहां विशाल भंडारे और मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।

बाबा नीम करौली महाराज – योगबल और चमत्कारों के प्रतीक


नीम करौली बाबा को उनके चमत्कारी जीवन और सिद्ध शक्तियों के लिए जाना जाता है। उन्होंने मानव कल्याण के लिए अनेक अलौकिक कार्य किए, जो आज भी श्रद्धालुओं की स्मृतियों में जीवित हैं। एक प्रसिद्ध घटना के अनुसार, एक बार जब वे अल्मोड़ा से नैनीताल की यात्रा पर थे, तो रास्ते में कैंची धाम के पास अचानक वाहन से उतर गए और अपने एक शिष्य से कहा कि "श्यामलाल अच्छा आदमी था"। बाद में पता चला कि उनके समधी श्यामलाल जी का उसी समय निधन हो गया था। इस घटना ने सभी को उनके दिव्यज्ञान से चकित कर दिया।

एक अन्य चमत्कार के अनुसार, 15 जून 1991 को कैंची धाम में श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करना कठिन हो गया था। जब यातायात कर्मियों की सभी कोशिशें विफल हो गईं, तब बाबा की कृपा से स्थिति स्वतः ही सामान्य हो गई। भंडारे के दौरान एक बार जब घी की कमी हो गई थी, तो बाबा के आदेश पर नदी से लाया गया जल जैसे ही उपयोग में लाया गया, वह घी में परिवर्तित हो गया। यह चमत्कार आज भी लोगों की आस्था को और दृढ़ करता है।

जीवन यात्रा और विरासत


बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के अकबरपुर गांव में एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम लक्ष्मीनारायण था। बहुत ही कम उम्र में वे सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आध्यात्मिक मार्ग पर चल पड़े। केवल 11 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हुआ और 13 वर्ष की अवस्था में वे घर त्यागकर तपोमार्ग पर निकल पड़े।

बाबा नीम करौली महाराज हनुमान जी के अनन्य उपासक थे। कहा जाता है कि एक बार टिकट न होने पर उन्हें ट्रेन से उतार दिया गया, लेकिन ट्रेन आगे नहीं बढ़ी। बाद में क्षमायाचना करने पर ही ट्रेन चली। इस घटना ने उन्हें "अलौकिक संत" के रूप में स्थापित कर दिया।

उनके जीवन का अंतिम पड़ाव वृंदावन रहा, जहां उन्होंने अपनी अंतिम लीला सम्पन्न की। उनके आध्यात्मिक प्रभाव के चलते आज देश ही नहीं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे 100 से अधिक देशों में उनके भक्त और आश्रम हैं। उनके प्रेरणा से देशभर में कई हनुमान मंदिर स्थापित हुए, जिनमें उत्तराखंड का कैंची धाम, पिथौरागढ़ का गणाई क्षेत्र, और नैनीताल का गेठिया स्थित भूमियाधार मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

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