Omar vs Mehboob Controversy : उमर बनाम महबूबा, एक्स की ताकत: जम्मू-कश्मीर के नेताओं में भारत-पाकिस्तान के मुद्दे पर तकरार, दादा और पिता को भी बीच में लाया गया

 
 Omar vs Mehboob Controversy

आज हम बात करेंगे जम्मू-कश्मीर की सियासत के दो दिग्गज नेताओं की  - उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती - के बीच हाल ही में छिड़ी तीखी जंग की। ये टकराव सिर्फ दो नेताओं का नहीं, बल्कि india -पाकिस्तान के Sensitive मुद्दे और कश्मीर की सियासत का है। इस बार तो बात इतनी बढ़ गई कि दोनों ने एक-दूसरे के दादा और पिता को भी बीच में घसीट लिया! आखिर क्या है पूरा मामला? और इसमें एक्स की ताकत का क्या रोल है ? चलिए, शुरू करते हैं

नमस्कार, मैं  Swati Pandey और आप देख रहे है आप की खबर राजनीति 

"इस तकरार की जड़ है तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट और indus water treaty। दरअसल, उमर अब्दुल्ला, जो जम्मू-कश्मीर के Chief Minister हैं, उन्होंने हाल ही में तुलबुल प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू करने की बात कही। ये प्रोजेक्ट 1980 के दशक में शुरू हुआ था, लेकिन पाकिस्तान के दबाव और  indus water treaty की वजह से रुक गया। उमर का कहना है कि ये संधि कश्मीर के लोगों के साथ historical injustice है, क्योंकि ये जम्मू-कश्मीर को पानी और बिजली जैसे resources से वंचित करती है।

"लेकिन महबूबा मुफ्ती, जो पीडीपी की अध्यक्ष और former chief minister हैं, उन्होंने इसे ‘सस्ती popularity’ और ‘पाकिस्तान को खुश करने की कोशिश’ करार दिया। उन्होंने कहा कि पानी जैसे resource  को हथियार बनाना और इस तरह की बयानबाजी करना गैर-जिम्मेदाराना है, खासकर जब  india पाकिस्तान के बीच हाल ही में युद्ध जैसे हालात से राहत मिली है।

पानी को हथियार बनाना inhuman है। ये india  की global image को नुकसान पहुंचा सकता है। तो  ये सिर्फ एक प्रोजेक्ट की बात नहीं है। ये कश्मीर की sovereignty, development,और भारत-पाक रिश्तों का सवाल है।"  

अब बात इतनी बढ़ गई कि दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के परिवार को भी निशाना बनाया। महबूबा ने उमर के दादा शेख अब्दुल्ला पर तंज कसते हुए कहा कि उन्होंने सत्ता से बाहर रहते हुए पाकिस्तान के साथ विलय की वकालत की थी, लेकिन बाद में भारत के साथ चले गए। महबूबा ने इसे ‘सियासी चाल’ करार दिया और कहा कि उनकी पार्टी की विचारधारा बदलना ‘commitment’ है, न कि चालबाजी।"  

"उमर ने भी पलटवार में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने महबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद पर निशाना साधा, जो जम्मू-कश्मीर के former chief minister थे। उमर ने तंज कसा कि मुफ्ती साहब ने बीजेपी के साथ गठबंधन को ‘नॉर्थ पोल-साउथ पोल’ कहा था, लेकिन फिर भी सत्ता के लिए गठबंधन किया। उमर ने कहा, ‘मैं कीचड़ में नहीं उतरना चाहता, लेकिन आप चाहें तो उस कहानी को दोबारा देख सकती हैं।

ये बयानबाजी दिखाती है कि जम्मू-कश्मीर की सियासत में पुरानी रंजिशें और परिवार का इतिहास कितना अहम है। लेकिन क्या ये सिर्फ सियासी ड्रामा है, या इसके पीछे कोई बड़ा मकसद है?

इस टकराव की पृष्ठभूमि में भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और हाल का युद्ध विराम भी है। मई 2025 में भारत और पाकिस्तान ने सीजफायर की घोषणा की, जिसका उमर और महबूबा दोनों ने स्वागत किया। उमर ने कहा कि कश्मीर के लोग शांति चाहते हैं, न कि युद्ध। वहीं, महबूबा ने opposition से अपील की कि वो  इस शांति process  को politics से ऊपर रखें।  

"लेकिन तुलबुल प्रोजेक्ट पर दोनों की राय अलग है। उमर इसे कश्मीर के Development के लिए जरूरी मानते हैं, जबकि महबूबा इसे भारत-पाक रिश्तों के लिए उकसावे वाला कदम बताती हैं। ये मुद्दा सिर्फ कश्मीर तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की foreign policy और global image से भी जुड़ा है।"  

अब बात करते हैं ‘एक्स की ताकत’ की। इस पूरे टकराव में सोशल मीडिया, खासकर एक्स, ने आग में घी डालने का काम किया। उमर और महबूबा ने एक्स पर एक-दूसरे के खिलाफ तीखे पोस्ट किए, जो वायरल हो गए। उमर ने तुलबुल प्रोजेक्ट का वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि ये कश्मीर के लिए गेम-चेंजर हो सकता है। वहीं, महबूबा ने जवाब में लिखा कि ऐसी बयानबाजी से शांति को खतरा है।"  

"एक्स पर यूजर्स ने भी इस जंग में हिस्सा लिया। कुछ ने उमर को सपोर्ट किया, तो कुछ ने महबूबा को ‘पाकिस्तान समर्थक’ कहकर ट्रोल किया। ये दिखाता है कि एक्स न सिर्फ खबरें फैलाता है, बल्कि सियासी तकरार को और हवा देता है।"  

"ये पहली बार नहीं है जब उमर और महबूबा आमने-सामने आए हैं। 2018 में Rajya Sabha Deputy Chairman चुनाव के दौरान भी दोनों ने ट्विटर पर इमोजी और तंज के साथ जंग लड़ी थी। 2019 में, जब Article 370 हटाया गया, दोनों को हिरासत में रखा गया था। उस वक्त भी दोनों में तीखी बहस हुई, जहां उमर ने महबूबा के बीजेपी गठबंधन पर तंज कसा, और महबूबा ने उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला के एनडीए गठबंधन को याद दिलाया।"  
"2025 में भी ये रंजिश जारी है। महबूबा ने उमर पर बीजेपी की नीतियों को वैध करने का आरोप लगाया, जबकि उमर ने महबूबा को ‘पाकिस्तान की language बोलने’ वाला बताया।"  

इस टकराव का असर सिर्फ इन दो नेताओं तक सीमित नहीं है। कश्मीर की जनता, जो पहले ही आतंकवाद और तनाव से जूझ रही है, उसके लिए ये सियासी ड्रामा और uncertainty लाता है। तुलबुल प्रोजेक्ट जैसे मुद्दे कश्मीर के development  से जुड़े हैं, लेकिन इन पर सियासत हावी हो रही है। india -पाक रिश्तों के लिहाज से भी ये बहस अहम है। क्या तुलबुल प्रोजेक्ट शांति process को influence  करेगा? या ये कश्मीर के लिए वाकई फायदेमंद होगा? ये सवाल अभी अनसुलझे हैं।
 
"सियासी तौर पर, उमर और महबूबा की ये जंग 2024 के विधानसभा चुनावों के बाद और तेज हुई है, जहां उमर की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत हासिल की, लेकिन महबूबा की पीडीपी को सिर्फ तीन सीटें मिलीं। क्या ये टकराव महबूबा की सियासी वापसी की कोशिश है? या उमर का कश्मीर में अपनी पकड़ मजबूत करने का तरीका ?

"तो  ये थी उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच की ताजा सियासी जंग की पूरी कहानी। कश्मीर की सियासत में ये टकराव नया नहीं है, लेकिन इस बार भारत-पाक मुद्दे और परिवार को घसीटने से ये और तेज  हो गया। आपका क्या मानना है? क्या तुलबुल प्रोजेक्ट कश्मीर के लिए जरूरी है? या ये सिर्फ सियासी शोर है? कमेंट में बताएं। हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें, लाइक करें, और बेल आइकन दबाना न भूलें। मिलते हैं अगले वीडियो में। तबतक के लिए नमस्कार।

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