ओपन डब्बा लाइब्रेरी: एक किताब लाओ,एक किताब ले जाओ
जिसका नाम है "ओपन डब्बा लाइब्रेरी"। यह पुस्तकालय पारंपरिक पुस्तकालयों से बिल्कुल अलग है, क्योंकि यह न तो किसी बड़े भवन में स्थित है और न ही इसमें कोई ताला-चाबी है । न ही यहां कोई लाइब्रेरियन है जो किताबों का लेखा जोखा रखता हो। यह एक साधारण-सा बुक शेल्फ है, जो जाने माने लेखक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के घर की बाउंड्री वाल पर लगा हुआ है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह 24 घंटे खुला रहता है और सड़क से गुजरने वाला कोई भी व्यक्ति कभी भी यहां से किताब ले सकता है। इस पुस्तकालय को समृद्ध करने के लिए यहां कोई भी व्यक्ति अपनी भी किताबें इसमें रख सकता है। इस पुस्तक मित्र लाइब्रेरी की शुरुआत श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ने की है। इस छोटे से बुक शेल्फ में आरंभ में लगभग 4000 रुपये मूल्य की विभिन्न लेखकों और प्रकाशकों की पुस्तकें रखी गई थीं। इनमें प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध, श्री सुरेश पटवा, स्वयं विवेक रंजन श्रीवास्तव और ज्ञानगंगा प्रकाशन की किताबें शामिल हैं। ये पुस्तकें साहित्य, ज्ञान और मनोरंजन का खजाना लेकर आई हैं, जो हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए उपयोगी हैं। इस लाइब्रेरी का मूल मंत्र है- "एक किताब रखो, एक ले जाओ"।
यह सिद्धांत न केवल किताबों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करता है, बल्कि "पढ़ो और पढ़ाओ" के सुविचार को भी बढ़ावा देता है। आज के दौर में जब डिजिटल माध्यमों के बढ़ते प्रभाव के कारण किताबों की पठनीयता में कमी देखी जा रही है, तब यह पहल एक ताजी हवा के झोंके की तरह है। लोग अक्सर अपने घरों में पढ़ी हुई किताबों और पत्रिकाओं को इधर-उधर रख देते हैं या उन्हें बेकार समझकर रद्दी में बेच देते हैं या फेंक देते हैं। ऐसे में ओपन डब्बा लाइब्रेरी इन किताबों को नया जीवन दे रही है, जिससे एक के लिए अनुपयोगी पुस्तकें दूसरों के लिए उपयोगी बन रही हैं। इस अभियान की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मीनाल रेजीडेंसी के निवासी और आसपास के लोग इसे हाथों-हाथ ले रहे हैं।
कॉलोनी के लोगों में पुस्तकों के प्रति उत्सुकता और उत्साह साफ देखा जा सकता है। लोग न केवल किताबें लेने आते हैं, बल्कि अपनी पढ़ी हुई किताबें भी इस शेल्फ में रखकर जाते हैं । इस तरह यह एक ऐसा चक्र बन गया है, जो ज्ञान और साहित्य के प्रेम को बढ़ावा दे रहा है।
