पैरेंट-टीचर मीटिंग या मम्मियों का मिनी फैशन वीक?
Parent-teacher meeting or a mini fashion week for mommies?
Fri, 4 Jul 2025

(लेखक: सुधाकर आशावादी | प्रस्तुति: विभूति फीचर्स)
आज का दौर ‘दिखावे’ का है। लोग अब अपने लिए नहीं, समाज में अपने कद-काठी का प्रदर्शन करने के लिए जीते हैं। यह दिखावा सिर्फ पार्टियों या सोशल मीडिया तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि अब तो बच्चों की पैरेंट-टीचर मीटिंग (PTM) भी इसकी चपेट में आ चुकी है।
कभी एक समय था जब सरकारी स्कूलों में बच्चे का दाखिला करवा देने के बाद माँ-बाप शायद ही दोबारा स्कूल का मुंह देखते। शिक्षक अगर बच्चे की शिकायत करना भी चाहते, तो उसे घर बुलाकर ही अभिभावकों को संदेश भिजवाते। ना कोई तय तारीख, ना विशेष तैयारी। शिक्षक बच्चों की कमज़ोरियाँ गिनवाते, और अभिभावक अपनी विवशताओं का बखान करते। यही था वह 'सादा और सच्चा' दौर।
अब ज़माना बदल चुका है। अभिभावक सजग हुए हैं—खान-पान से लेकर होमवर्क और हॉबी क्लास तक बच्चों का हिसाब-किताब रखने लगे हैं। लेकिन इसी सजगता में कब दिखावे की परत चढ़ गई, पता ही नहीं चला।
कॉन्वेंट और इंटरनेशनल स्कूलों की चमक-दमक ने पैरेंट्स को एक नई दुनिया से जोड़ा—जहाँ पीटीएम अब ‘प्रगति समीक्षा’ नहीं, बल्कि ‘प्रेस्टीज शो’ बन गई है।
अब हालात ऐसे हैं कि मम्मियों के लिए पीटीएम किसी शादी-ब्याह जैसे इवेंट से कम नहीं। हर मीटिंग में नया परिधान पहनना जैसे मानक बन चुका है। "पिछली बार वाली साड़ी इस बार कैसे पहन सकती हूँ?"—यह सवाल अब आम हो गया है। औरतें पीटीएम से पहले पार्लर के अपॉइंटमेंट फिक्स करवाती हैं, फेस मसाज से लेकर हेयरस्टाइल तक की बारीकी तय होती है।
मीटिंग में असली चर्चा बच्चों के रिपोर्ट कार्ड की नहीं, बल्कि मम्मियों की ड्रेस, परफ्यूम और एक्सेसरीज की होती है। कौन सी मम्मी कौन से ब्रांड की लिपस्टिक लगा रही है, किसके कुर्ते का डिज़ाइन नया है, और कौन सा परफ्यूम ज़्यादा "सॉफ़िस्टिकेटेड" है—ये ही हैं आज की पीटीएम की मुख्य विषय-वस्तु।
कई बार तो टीचर भी उन्हीं अभिभावकों से ज़्यादा प्रभावित नजर आते हैं, जो "ग्लैमर कोड" पूरा करके आते हैं। सामान्य दिखने वाली मम्मियों की बात सुनी भी जाए या नहीं, यह भी अब स्टाइल स्टेटमेंट पर निर्भर करता है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि पैरेंट-टीचर मीटिंग अब बच्चों की प्रगति रिपोर्ट से अधिक, अभिभावकों की "प्रेसेंस रिपोर्ट" का प्लेटफॉर्म बन चुकी है। शिक्षा का यह आधुनिक तमाशा शायद यही बताता है—अब स्कूल सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, मम्मियों के लिए भी एक रनवे है।