काव्य: जब पिताजी थे

Poetry: When father was there
 
Poetry: When father was there
(डॉ. सुधाकर आशावादी - विनायक फीचर्स)
जब पिताजी थे…
उनकी समझाइशें
कभी-कभी कठोर लगती थीं,
जैसे मेरी उड़ान से पहले
मेरे ही पंख काट देना चाहें।
हर बार एक ही बात दोहराते—
"बेटा, कोई भी फैसला लेने से पहले
ठंडे दिमाग से सोचना,
भावनाओं में बहकर नहीं।"

Po

उनकी ये बातें

मेरे प्रयोगधर्मी स्वभाव पर
अक्सर भारी पड़ती थीं।
मैं नए रास्ते अपनाने का आदी था,
जो मन को भाता—वही करता था।
पर अंत में,
सच वही निकलता
जो पिताजी पहले ही कह चुके होते।
अब पिताजी नहीं हैं,
मगर उनके कहे शब्द
आज भी ज़हन में गूंजते हैं।
हर मोड़ पर, हर निर्णय में
उनका अनुभव
अनदेखी राह को रोशन कर जाता है।
ऐसा लगता है
मानो यह एक सनातन चक्र है—
पीढ़ियाँ आती हैं,
पुरानी पीढ़ियाँ अनुभव छोड़ जाती हैं,
जिन्हें वर्तमान अपनाकर
फिर कुछ नया जोड़ती हैं।
और यही नया अध्याय
वो अपने बाद की पीढ़ी को सौंपती हैं,
एक मार्गदर्शक प्रकाश की तरह।

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