त्योहारी सीज़न का 'मारा' बेचारा पति: करवा चौथ से दिवाली तक की 'डिमांड लिस्ट' का दबाव

(सुधाकर आशावादी द्वारा एक हास्य व्यंग्य)
कहने को आज समाज में 'नारी-पुरुष एक समान' की नीति पर ज़ोर है, लेकिन अधिकारों के नाम पर 'श्रीमती जी' की डिमांड अपने 'श्रीमान जी' से हर त्योहार पर बढ़ती जा रही है।
करवा चौथ का पावन पर्व, जब श्रीमती जी ने श्रीमान जी की दीर्घायु की कामना में व्रत रखा, उसी समय उन्होंने अपनी मांगों की एक लंबी फेहरिस्त भी श्रीमान जी के हाथों में थमा दी। महँगी साड़ी के साथ-साथ, महंगाई की ऊँची कूद लगाते स्वर्ण आभूषणों की डिमांड कर डाली। साथ ही धमकी भी दी: "चाहे जो मजबूरी हो, डिमांड श्रीमती जी की पूरी हो।"
श्रीमान जी, भला मरते क्या न करते! श्रीमती जी की ख्वाहिश पूरी करने के लिए उन्हें बैंक के कर्जे की किश्त बढ़ाने तक के लिए विवश होना पड़ा।
गृहस्थ शांति बनाम आपदा में अवसर
गृहस्थ जीवन में 'शांति पाठ' का महत्व केवल श्रीमान जी ही जानते हैं। श्रीमती जी तो हमेशा 'आपदा में अवसर' ढूँढने की फिराक में रहती हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य होता है कि त्योहार के नाम पर 'कैकेयी' बनकर कोप भवन में अनशन की धमकी देती रहें, और बेचारे श्रीमान जी को समझौता वार्ता के लिए मजबूर करती रहें।
बहरहाल, करवा चौथ का समापन हो भी जाए, तो यह बड़ी बात है कि श्रीमती जी, श्रीमान जी से मिले उपहारों से संतुष्ट हों। अन्यथा, भले ही श्रीमान जी अपनी जेब का अतिक्रमण करके कितना ही महँगा उपहार क्यों न पेश कर दें, श्रीमती जी को प्रसन्न करना आसान काम नहीं!
बढ़ती डिमांड की 'क्रूर लिस्ट'
त्योहारी सीज़न आता तो है, मगर एक सामान्य श्रीमान जी के सम्मुख मुसीबतों का पहाड़ खड़ा करने में पीछे नहीं हटता। करवा चौथ के बाद अब धनतेरस भी श्रीमान जी की जेब पर 'क्रूर प्रहार' करने को तैयार है।
श्रीमती जी की सुविधा-भोग की फेहरिस्त का आकार प्रतिवर्ष बढ़ता ही जाता है:
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अब पीतल के बर्तनों की डिमांड नहीं होती, अब सीधे डायमंड के गहनों की डिमांड होती है।
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साइकिल आज भी कुछ श्रीमानों के लिए सपना होगी, लेकिन सुविधा भोगी श्रीमतियों की नज़र किसी दोपहिया पर नहीं पड़ती। सामान्य चौपहिया भी उन्हें आरामदायक नहीं लगते। चौपहिया में भी उन्हें ऊँचे कद और तेज़ गति से दौड़ने वाली लक्जरी गाड़ियाँ ही पसंद आती हैं।
श्रीमती जी भले ही श्रीमान जी की जेब की सीमाएँ न जानती हों, लेकिन उन्हें अपने पड़ोसियों, सहेलियों और रिश्तेदारों की समृद्धि कैसे हज़म हो, जिनके ड्राइंग रूम महँगे झूमर की रोशनी में नहा रहे हों? यही समृद्धि, श्रीमती जी की महत्वाकांक्षा के परों को उड़ान भरने के लिए उकसाती है।

