'आत्ममंथन' की ज्योति से आलोकित निरंकारी संत समागम की तैयारियाँ अंतिम चरण में

दिल्ली, 24 अक्टूबर, 2025: सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन छत्रछाया में 78वां वार्षिक निरंकारी संत समागम 31 अक्टूबर से 3 नवंबर, 2025 तक संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा (हरियाणा) में आयोजित होने जा रहा है। देश-विदेश से असंख्य श्रद्धालु इस आत्मीयता के उत्सव में भाग लेकर आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करेंगे।
हज़ारों श्रद्धालुजन पूर्ण तन्मयता और समर्पण भाव से दिन-रात सेवाओं में जुटे हुए हैं, जिसके चलते यह भव्य आयोजन अपनी अंतिम तैयारियों की ओर अग्रसर है।
ज्ञान, प्रेम और भक्ति का पावन संगम
यह समागम केवल एक धार्मिक वार्षिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, प्रेम और भक्ति का ऐसा पावन संगम है जो ब्रह्मज्ञान के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सशक्त माध्यम बनता है। यह आयोजन 'आत्ममंथन' की दिव्य भूमि है, जहाँ प्रत्येक साधक अपने अंतर्मन में झाँकने, आत्मचिंतन करने और आत्मिक चेतना को जागृत करने की प्रेरणा प्राप्त करता है। यहाँ श्रद्धालु आध्यात्मिक जागृति के साथ-साथ मानवता, विश्वबंधुत्व और आपसी सौहार्द की भावना को भी आत्मसात करते हैं।
संत निरंकारी मंडल के सचिव श्री जोगिंदर सुखीजा के अनुसार, एक सामान्य मैदान, संतों की कर्मठ सेवा भावना के कारण अब भव्य शामियानों की सुंदर नगरी में परिवर्तित हो चुका है। यह दिव्य वातावरण प्रत्येक आगंतुक को अपनी ओर आकर्षित करता है।
समागम स्थल का दिव्य स्वरूप
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सुव्यवस्थित नगरी: समागम स्थल को एक दिव्य नगरी का रूप दिया गया है। विशाल पंडालों में भक्तों के लिए बैठने की सुव्यवस्थित व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।
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अत्याधुनिक तकनीक: समागम मंच पर हो रहे प्रेरणादायक प्रवचन, भावपूर्ण भजन और विचारों को पूरे परिसर में प्रभावी ढंग से दिखाने के लिए अत्याधुनिक एल.ई.डी. स्क्रीन स्थापित की जा रही हैं। इससे दूरस्थ स्थानों पर बैठे श्रद्धालु भी समान भाव, ऊर्जा और अनुभूति से सत्संग का लाभ ले सकेंगे।
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प्रबंधन: पूरे परिसर को चार प्रमुख खंडों में विभाजित किया गया है ताकि संचालन, आवागमन और सुविधाओं का समुचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
मुंबई के भक्तों का कलात्मक स्वागत द्वार
पिछले वर्षों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, इस वर्ष भी मुंबई के श्रद्धालु भक्तों द्वारा निर्मित मुख्य स्वागत द्वार अपनी कलात्मक भव्यता के साथ समागम की आध्यात्मिक रूपरेखा को दर्शा रहा है। यह द्वार न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि समर्पण, सेवा और सृजनशीलता का सजीव उदाहरण भी है। जैसे-जैसे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है, यह स्वागत द्वार भी अपने स्वरूप और गरिमा में भव्यता धारण करता जा रहा है, मानो यह समस्त मानवता को प्रेम और अपनत्व से आमंत्रित कर रहा हो।
इस पावन संत समागम में हर सज्जन महात्मा और श्रद्धालु भक्त सादर आमंत्रित हैं। यह संत समागम केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि आत्म बोध, आंतरिक शुद्धि और भक्ति के महासंगम का अनुपम अवसर है।
