भारत के इतिहास के दुखद और संवेदनशील पहलू: इंदिरा गांधी से लेकर आज के खतरे तक

 
 Indira Gandhi’s Assassination

आज हम बात करेंगे भारत के इतिहास के कुछ सबसे दर्दनाक और विवादास्पद घटनाओं की—इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव गांधी के खिलाफ साजिश, और कैसे कनाडा खालिस्तानी उग्रवाद का गढ़ बनता जा रहा है। साथ ही, समझेंगे कि क्यों आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण है।

इंदिरा गांधी की हत्या: 31 अक्टूबर 1984 का काला दिन

31 अक्टूबर 1984 को भारत ने अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी, को खो दिया। सुबह करीब 9:30 बजे, दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित उनके आवास पर उनके दो सिख सुरक्षा गार्ड—बेअंत सिंह और सतवंत सिंह—ने उन पर गोलियां चलाईं। बेअंत सिंह ने रिवॉल्वर से तीन, जबकि सतवंत सिंह ने स्टेन कारबाइन से 22 गोलियां दागीं, जिससे इंदिरा गांधी की मौत मौके पर हो गई।

इस घटना के पीछे की जड़ें थीं जून 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार। यह एक सैन्य अभियान था, जिसका उद्देश्य स्वर्ण मंदिर से जरनैल सिंह भिंडरावाले और सिख उग्रवादियों को हटाना था। इस ऑपरेशन ने सिख समुदाय के एक हिस्से में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया था।

इंदिरा गांधी को पहले से ही खतरे की चेतावनी मिल चुकी थी, लेकिन उन्होंने अपने सिख गार्ड्स को हटाने से मना कर दिया, ताकि उनकी छवि सिख-विरोधी न बने। दुर्भाग्यवश, यही निर्णय उनके लिए घातक साबित हुआ।

बाद के प्रभाव: सिख विरोधी दंगे

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे, जिनमें हजारों निर्दोष सिखों की जान गई। इसने देश के सामाजिक ताने-बाने को गहराई से झकझोर दिया।

राजीव गांधी की हत्या: 21 मई 1991

इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी ने देश की बागडोर संभाली। लेकिन उनका जीवन भी हिंसा से मुक्त नहीं रहा। 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने उनके शरीर पर बंधे विस्फोटक से धमाका कर उन्हें मार डाला। इस हमले की जिम्मेदारी तमिल विद्रोही समूह LTTE ने ली थी, जो भारत की श्रीलंका में शांति सेना के कारण नाराज थे।

कनाडा में बढ़ता खालिस्तानी उग्रवाद

हाल के वर्षों में, कनाडा खालिस्तानी उग्रवाद का एक बड़ा केंद्र बन गया है। वहाँ के सिख समुदाय के कुछ हिस्से ने खालिस्तान आंदोलन को खुले समर्थन दिया है। वैंकूवर और अन्य शहरों में खालिस्तानी समर्थकों ने इंदिरा गांधी की हत्या को “जश्न” के रूप में मनाया, जो भारत-कनाडा संबंधों में तनाव का कारण बन रहा है।

भारत ने कनाडा से इस तरह की उग्रवादी गतिविधियों पर रोक लगाने की बार-बार अपील की है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कई बार इन्हें नजरअंदाज किया जाता है। कनाडा में भारतीय दूतावासों पर हमले और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जान से मारने की धमकियां भी दी गई हैं।

क्या कनाडा सरकार इन उग्रवादी तत्वों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएगी? यह एक गंभीर सवाल है।

प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा क्यों है इतनी महत्वपूर्ण?

भारत आज विश्व की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को वैश्विक मंच पर मजबूती से स्थापित किया है, लेकिन उनकी सुरक्षा कई उग्रवादी और आतंकवादी समूहों की नजर में है।

इंदिरा और राजीव गांधी की मौतें हमें सिखाती हैं कि नेताओं की सुरक्षा कितनी अहम है। खासकर जब खालिस्तानी उग्रवाद फिर से सक्रिय हो रहा है और उसे बाहरी समर्थन मिल रहा है, तब प्रधानमंत्री की सुरक्षा देश की स्थिरता, विकास और सम्मान की रक्षा है।

भारत ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा समूह (SPG) को और मजबूत किया है, और खुफिया एजेंसियां सतर्क हैं। लेकिन सुरक्षा सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं—हम सभी नागरिकों को देश में शांति और एकता बनाए रखने का योगदान देना होगा।

निष्कर्ष

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के निधन ने हमें ये सिखाया है कि नफरत और उग्रवाद का रास्ता कभी भी किसी के हित में नहीं होता। कनाडा में बढ़ते खालिस्तानी उग्रवाद और धमकियां चिंता का विषय हैं, लेकिन हमें विश्वास है कि भारत की सरकार और सुरक्षा एजेंसियां इन चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं।

पीएम मोदी की सुरक्षा केवल एक व्यक्ति की रक्षा नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की सुरक्षा है। आइए, हम सभी मिलकर एक मजबूत, एकजुट और शांतिपूर्ण भारत के लिए काम करें।

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