बलूचिस्तान की आज़ादी की ओर बढ़ती तेज़ रफ्तार

सुभाष आनंद – विनायक फीचर्स)
सीमा पार हुसैनीवाला से मिली जानकारियों के अनुसार, इस समय बलूचिस्तान एक बारूद के ढेर पर बैठा है। हाल ही में बलूच विद्रोहियों द्वारा एक ट्रेन का अपहरण और पाकिस्तानी सेना पर किए गए हमले ने न केवल पाकिस्तान की जड़ों को हिला दिया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चिंता की लहर दौड़ा दी है। बलूच समुदाय का स्पष्ट आरोप है कि पंजाबी-प्रभावित पाकिस्तानी सेना एक क्रूर और दमनकारी ताकत बन चुकी है।
बलूच नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि उनके मौलिक अधिकारों का दमन जारी रहा, तो वे हथियार उठाने को मजबूर होंगे। पाकिस्तानी पत्रकार दिशा हैदर ने एक लेख में खुलासा किया है कि बलूच लापता लोगों की हत्या कर उन्हें गुप्त स्थानों पर दफनाया जा रहा है।
बलूच विरोध की आग और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
मानवाधिकार कार्यकर्ता कदीरोच कदारी ने विस्तृत रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि बलूचिस्तान में लापता हुए हजारों लोगों की हत्याएं पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई हैं। उन्होंने कहा कि अब सेना को खुद अपने बलूच सिपाहियों पर भरोसा नहीं रह गया है, और उन्हें बलूचिस्तान में तैनात करने से बचा जा रहा है।
कनाडा में आयोजित एक थिंक टैंक बैठक में इंटरनेशनल फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स समेत कई एजेंसियों ने पाकिस्तानी सेना की क्रूरता के सबूत सार्वजनिक किए, जिसमें पहाड़ी कब्रिस्तानों में मिले नरकंकालों ने भयावह सच्चाई उजागर की।
जमीर जमाल अहमद, एक सेवानिवृत्त पाकिस्तानी अधिकारी ने बयान दिया कि बलूचिस्तान में "सैनिकों की आत्माएं मर चुकी हैं" और क्रूरता की सीमाएं पार हो चुकी हैं। महिलाओं पर भी अत्याचार के गंभीर आरोप सामने आए हैं।
बलूच महिलाओं की अग्रणी भूमिका और छात्र आंदोलनों की लहर
बलूच महिलाओं ने आंदोलन की अगुवाई करते हुए कई बार गिरफ्तारी झेली है। आंदोलन अब सिर्फ बंदूक तक सीमित नहीं है, बल्कि बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, महिलाओं और छात्रों के समर्थन से यह जनआंदोलन का रूप ले चुका है।
"वॉयस ऑफ बलूच मिसिंग पर्सन्स" जैसे संगठनों के माध्यम से बलूच समाज अपने लापता परिजनों के लिए लगातार आवाज़ उठा रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि सैकड़ों छात्र अपहरण के मुख्य निशाने पर हैं, और पत्रकारों पर हमले भी तेजी से बढ़े हैं। 2024 में पत्रकारों पर हिंसा के 160 मामले दर्ज हुए, जिनमें से अधिकांश पर कार्रवाई नहीं हुई।
शिक्षा पर हमला और सामाजिक अवनति
बलूचिस्तान में फौजी कब्जे के चलते 76 स्कूल बंद कर दिए गए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, अवारन और मशकाई जैसे इलाकों में दर्जनों स्कूल पूरी तरह बंद पड़े हैं। बच्चों और शिक्षकों की उपस्थिति नगण्य है। आरोप है कि स्कूल भवनों को जबरन सैन्य ठिकानों में बदल दिया गया है, जिससे बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना की जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षा से वंचित करना न केवल मानवाधिकारों का हनन है, बल्कि क्षेत्रीय विकास में भी गंभीर बाधा उत्पन्न करता है।
संभावित टूट के संकेत और अंतरराष्ट्रीय मान्यता की संभावना
पाकिस्तान के सांसद और इस्लामी धर्मगुरु मौलाना फजलुर रहमान ने बलूचिस्तान की स्थिति की तुलना 1971 के पूर्वी पाकिस्तान से की है। उन्होंने चेताया है कि बलूचिस्तान के कई जिले अलग होकर स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर सकते हैं, और ऐसे में संयुक्त राष्ट्र उन्हें मान्यता दे सकता है।
बलूचिस्तान न केवल भौगोलिक रूप से अफगानिस्तान की सीमा से सटा है, बल्कि यह क्षेत्र लंबे समय से शिया-सुन्नी विवादों और जातीय संघर्षों का केंद्र भी रहा है। यहां की भौगोलिक बनावट (पहाड़ी क्षेत्र) और अलगाववादी भावना इसे पाकिस्तान सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण बना रही है।