Reaction of Opposition leaders on Caste Census : सालों बाद फिर होगी भारत में जाति जनगणना, बीजेपी सरकार ने किया बड़ा ऐलान, इसपर क्या बोले सभी Opposition के Leaders

आज हम बात करेंगे राजनीती के उस पहलू पर जिसने पक्ष और विपक्ष दोनों को ही एक्टिव कर दिया है, ये मुद्दा कई सालो से चला आ रहा है और हमेशा ही opposition ने इसके समर्थन में ही बात की हम बात कर रहे है जाति जनगणना की । केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में जातीय जनगणना कराने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। इस फैसले ने ruling party से लेकर opposition तक, हर किसी को अपनी राय देने के लिए मजबूर कर दिया है। योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, मायावती, राहुल गांधी - सभी ने इस पर खुलकर अपनी बात रखी है।
भारत में जाति एक ऐसी हकीकत है, जो Society और Politics दोनों को गहराई से influence करती है। 1951 के बाद भारत में caste based census बंद कर दी गई थी, ताकि social unity को बढ़ावा मिले। लेकिन बदलते समय के साथ, खासकर OBC, दलित, और tribal communities के लिए social justice और equal opportunities को ensure करने की मांग ने इस मुद्दे को फिर से जिंदा कर दिया।
opposition party, खासकर समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, और बहुजन समाज पार्टी, लंबे समय से जाति जनगणना की मांग करते रहे हैं। उनका तर्क है कि बिना सटीक आंकड़ों के, नीतियाँ बनाना और आरक्षण लागू करना मुश्किल है। दूसरी ओर, कुछ लोग मानते हैं कि ये समाज में caste division को और बढ़ा सकता है। लेकिन 30 अप्रैल 2025 को, केंद्र की मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अगली जनगणना में जातियों की गणना को शामिल करने की Announcement की। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ये process transparent होगा।
तो सवाल ये है की ये फैसला indian politics को कैसे influence करेगा? और इस पर हमारे नेताओं की क्या राय है ? चलिए, एक-एक करके देखते हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस फैसले को वंचित, पिछड़े और neglected sections के लिए निर्णायक पहल" बताया। उन्होंने कहा कि ये फैसला social justice और डेटा based good governance को हकीकत में बदलने का एक ऐतिहासिक कदम है। योगी ने ये भी जोड़ा कि इससे government schemes में इन sections की fair participation ensure होगा।
लेकिन मजेदार बात ये है कि पहले योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में जाति जनगणना कराने से इंकार किया था। अब जब केंद्र ने ये फैसला लिया है, तो योगी इसे बीजेपी की achievement के रूप में पेश कर रहे हैं। क्या ये बीजेपी की strategy है opposition के मुद्दे को अपने पक्ष में भुनाने की ? आप क्या सोचते हैं? कमेंट में जरूर बताएँ।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फैसले को "90% पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की एकजुटता की 100% जीत" करार दिया। उन्होंने कहा कि ये social justice की लड़ाई में एक important कदम है और बीजेपी को ये फैसला opposition के दबाव में लेना पड़ा। अखिलेश ने बीजेपी को चेतावनी भी दी कि "चुनावी धांधली को जनगणना से दूर रखें" और एक ईमानदार जनगणना ही हर जाति को उनका हक दिला सकती है।
अखिलेश ने इसे INDIA गठबंधन की जीत भी बताया और कहा कि ये बीजेपी की negative politics का final stage है। उनके इस बयान से साफ है कि सपा इस मुद्दे को 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में बड़ा हथियार बनाने की तैयारी में है।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने इस फैसले को "देरी से उठाया गया सही कदम" बताया। उन्होंने कहा कि बीएसपी लंबे समय से इसकी मांग करती रही है और अब सरकार को इसे समयबद्ध तरीके से पूरा करना चाहिए। मायावती ने इसे "जनगणना से जनकल्याण" का फैसला करार दिया और उम्मीद जताई कि ये समाज के margins पर रहने वाले sections के लिए profitable होगा।
मायावती का ये बयान दिखाता है कि वो इस मुद्दे पर अपनी पार्टी की पुरानी मांग को हाइलाइट करना चाहती हैं। लेकिन क्या बीएसपी इसे अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए use कर पाएगी? ये देखना interesting होगा।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि "तेलंगाना का मॉडल जाति जनगणना के लिए एक ब्लू प्रिंट हो सकता है"। उन्होंने ये भी जोड़ा कि कांग्रेस इस process को डिजाइन करने में सरकार का पूरा समर्थन करेगी। राहुल ने सवाल उठाया कि "ओबीसी, दलित, और आदिवासी communities की institutions में कितना participation है " और कहा कि जाति जनगणना से ये साफ हो जाएगा।
राहुल ने इस फैसले का Credit opposition के दबाव को दिया और कहा कि ये उनकी लंबी लड़ाई का नतीजा है। कांग्रेस इस मुद्दे को 2024 के लोकसभा चुनाव में भी जोर-शोर से उठा चुकी है, और अब इसे और मजबूती से पेश करने की तैयारी में है। ये फैसला बीजेपी के लिए एक दो धारी तलवार है। एक तरफ, ये opposition के सबसे बड़े मुद्दों में से एक को छीनने की strategy हो सकती है। बीजेपी पर पहले ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगता रहा है, और इस फैसले से वो इस टैग को हटाने की कोशिश कर रही है।
लेकिन दूसरी ओर, opposition इसे अपनी जीत के रूप में Promote कर रहा है। अखिलेश, राहुल, और तेजस्वी यादव जैसे नेता दावा कर रहे हैं कि बीजेपी को ये फैसला उनके दबाव में लेना पड़ा। political analysts का मानना है कि इस जनगणना के आंकड़े 2026-27 तक आएंगे, और तब तक यूपी और बिहार जैसे राज्यों के चुनाव हो चुके होंगे। ऐसे में, इसका असली Effect बाद में देखने को मिलेगा। जाति जनगणना सिर्फ आंकड़ों का मामला नहीं है। ये social justice, Reservation, और political representation से जुड़ा एक sensitive issue है। सटीक आंकड़ों से सरकार को ये समझने में मदद मिलेगी कि कौन सा समुदाय कितना पीछे है और उसे कितनी सहायता चाहिए। लेकिन साथ ही, इससे caste polarization बढ़ने का खतरा भी है।
UP जैसे state , जहाँ caste based politics का बोलबाला है, वहाँ ये फैसला गेम-चेंजर साबित हो सकता है। सपा, बीएसपी, और कांग्रेस इसे अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए use करेंगे, जबकि बीजेपी इसे social justice के अपने वादे से जोड़ रही है।
तो ये थी जाति जनगणना पर indian politics की सच्चाई और नेताओं की reactions की पूरी कहानी। अब आपकी बारी है! कमेंट में बताएँ कि आप इस फैसले को कैसे देखते हैं? क्या ये social justice की दिशा में एक बड़ा कदम है, या फिर सिर्फ political चाल ?