दलगत राजनीति से परे होकर आरक्षण प्रणाली की पुनर्समीक्षा समय की मांग

The need of the hour is to review the reservation system beyond party politics.
 
दलगत राजनीति से परे होकर आरक्षण प्रणाली की पुनर्समीक्षा समय की मांग

(डॉ. सुधाकर आशावादी – विनायक फीचर्स)**  देश, समय और परिस्थितियों के अनुरूप हर जिम्मेदार नागरिक—विशेषकर उच्च पदों पर कार्य कर चुके बुद्धिजीवी—अपने विचार प्रकट करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। जब उनकी अभिव्यक्ति तथ्यों, तर्क और व्यापक सामाजिक दृष्टि पर आधारित होती है, तो उसे व्यापक समर्थन भी मिलता है। परंतु संकीर्ण राजनीतिक सोच अक्सर उदात्त और राष्ट्रहितैषी विचारों को स्वीकारने में हिचकती है। यही कारण है कि जातीय आरक्षण का प्रश्न आज भी विवादों के केंद्र में बना हुआ है।

भारत में दशकों से जारी आरक्षण व्यवस्था पर विभिन्न दृष्टिकोण सामने आए हैं—कहीं जाति आधारित आरक्षण पर आपत्ति उठाई जाती है,तो कहीं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिए गए आरक्षण पर प्रश्न खड़े होते हैं। कभी-कभी अनुसूचित जातियों के भीतर क्रीमीलेयर को मिल रहे लाभ पर भी बहस छिड़ जाती है। स्पष्ट है कि आरक्षण को लेकर समाज में पूर्वाग्रह, भावनात्मक प्रतिक्रियाएं और राजनीतिक स्वार्थ हावी रहे हैं, जिसके कारण वस्तुनिष्ठ और तर्कसंगत चर्चा अक्सर पीछे छूट जाती है।

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क्रीमीलेयर आरक्षण पर उठे सवाल

पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गंवई ने हाल ही में अनुसूचित जाति वर्ग में क्रीमीलेयर को मिले आरक्षण पर पुनर्विचार की आवश्यकता बताई थी। उनका यह मत था कि डॉ. भीमराव अंबेडकर आरक्षण को एक सहायक साधन की तरह देखते थे—ऐसा साधन जिसे केवल उतनी देर तक उपयोग किया जाए, जब तक कोई पिछड़ा व्यक्ति मुख्यधारा की बराबरी न पकड़ ले। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह विशेषाधिकार पीढ़ी दर पीढ़ी अनंतकाल तक चलता रहे। हालाँकि उनकी इस राय को उनकी ही जाति के कुछ लोगों ने आलोचना का विषय बना दिया।

सीमित वर्गों तक सिमटता लाभ

वास्तविक स्थिति यह है कि जातीय आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति की दर्जनों जातियों तक समान रूप से नहीं पहुँच पाया। यह फायदा मुख्यतः कुछ विशेष और अपेक्षाकृत सक्षम परिवारों में ही केंद्रित हो गया है।इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज मित्तल का विचार उल्लेखनीय है। उनका कहना है कि आरक्षण केवल पहली पीढ़ी के लिए होना चाहिए। यदि कोई परिवार एक बार इस अवसर का लाभ उठा चुका है, तो आगे की पीढ़ियों को दूसरों के लिए जगह छोड़ देनी चाहिए ताकि वास्तविक रूप से वंचित लोग आगे आ सकें।

आरक्षण की व्यापक और निष्पक्ष समीक्षा आवश्यक

आज आवश्यकता इस बात की है कि आरक्षण व्यवस्था की दलगत राजनीति से पूरी तरह मुक्त होकर समीक्षा की जाए। यह समीक्षा केवल वोट-बैंक की दृष्टि से नहीं, बल्कि राष्ट्रहित और समाज के समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए। यदि आरक्षण को किसी रूप में आगे जारी रखना है, तो वह केवल सबसे अंतिम व्यक्ति—वास्तविक रूप से पिछड़े और अवसरों से वंचित वर्ग—के लिए होना चाहिए।

कैसे हो समीक्षा?

आरक्षण नीति की पुनर्समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों में ऐसे लोग शामिल हों—

  • समाजशास्त्री

  • अर्थशास्त्री

  • शिक्षाविद

  • प्रशासनिक समझ रखने वाले बुद्धिजीवी

जो दलगत प्रभावों से मुक्त होकर मानवीयता, समानता और राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते हों।

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