सोने-चांदी की बढ़ती कीमतें बनीं आम आदमी की चिंता का कारण
Rising prices of gold and silver have become a cause of concern for the common man.
Wed, 15 Oct 2025

(मनोज कुमार अग्रवाल – विनायक फीचर्स)
सोना अब आम आदमी की पहुंच से दूर होता जा रहा है। बीते एक साल में जहां अन्य वस्तुओं की कीमतों में मामूली इज़ाफा हुआ, वहीं सोने ने लगभग 60 प्रतिशत तक की रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की है। फिर भी इसकी रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में सोना 1.5 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच सकता है।
जिन लोगों ने पहले से सोने में निवेश किया था, वे आज मुनाफे में हैं, जबकि जिन्होंने मौका गंवा दिया, वे अब पछता रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने की कीमत 4000 डॉलर प्रति औंस से ऊपर पहुंच चुकी है।
निवेश नहीं, असुरक्षा का संकेत भी है सोने की चमक
विशेषज्ञों का कहना है कि सोने की इस तेज़ी को केवल लाभ से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। इसके पीछे वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और सुरक्षा की चिंता भी बड़ी वजह है। इस समय दुनिया के केंद्रीय बैंक, सॉवरेन फंड और बड़े संस्थागत निवेशक सोने की भारी खरीद कर रहे हैं। वे इसे मुनाफे के लिए नहीं बल्कि अपने निवेश पोर्टफोलियो को सुरक्षित रखने के लिए खरीद रहे हैं।
जब सरकारें रिकॉर्ड स्तर पर सोना खरीदती हैं, तो इसके पीछे सिर्फ आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रणनीतिक और मुद्रा-सुरक्षा के कारण भी छिपे होते हैं।
परंपरा और महंगाई के बीच फंसा भारतीय समाज
भारत में सोना केवल निवेश नहीं, बल्कि संस्कार और परंपरा का प्रतीक है। दीवाली, अक्षय तृतीया, शादी या किसी शुभ अवसर पर सोने के आभूषणों के बिना रस्में अधूरी मानी जाती हैं। यही वजह है कि त्योहारी और शादी-ब्याह के मौसम में सोने की बढ़ती कीमतें आम लोगों के लिए भारी चिंता का कारण बन गई हैं।
फिलहाल बाजार में 10 ग्राम सोने की कीमत 1.25 लाख रुपये से अधिक है, जबकि चांदी 1.5 लाख रुपये प्रति किलो के पार जा चुकी है। ऐसे में आम परिवारों के लिए बेटी की शादी या धार्मिक आयोजनों में सोने के गहने खरीदना अब बेहद मुश्किल होता जा रहा है।
केंद्रीय बैंकों की सोने में दिलचस्पी और चीन की रणनीति
विश्लेषकों के अनुसार, 2022 की दीपावली से अब तक सोने की कीमतें लगातार ऊपर जा रही हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2026 की दीपावली तक सोने के दाम और बढ़ेंगे, क्योंकि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक और बड़े निवेशक लगातार सोने में निवेश कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, चीन का पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना लगातार 11वें महीने सोने की खरीद कर रहा है, ताकि वह डॉलर पर अपनी निर्भरता घटा सके।
2025 में अब तक घरेलू बाजार में सोने का रिटर्न करीब 60 प्रतिशत, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में 53 प्रतिशत दर्ज किया गया है। गोल्ड ETF में भी निवेश में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और सितंबर 2025 में इसमें 1.53 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ — जो अब तक का सर्वाधिक है।
वैश्विक राजनीति और डॉलर की भूमिका
सोने की कीमतों में उछाल की जड़ें अमेरिका से जुड़ी हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है। जनवरी 2025 में जब डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभाला था, तब सोना 2700 डॉलर प्रति औंस था, जो अब काफी बढ़ चुका है। ट्रंप की व्यापार नीतियों और टैरिफ की घोषणाओं ने वैश्विक बाजार में अस्थिरता बढ़ाई, जिससे देशों ने डॉलर के विकल्प के रूप में सोना खरीदना शुरू किया।
इतिहास बताता है, सोना हमेशा स्थिर नहीं रहा
1970–80 के दशक में सोना कई गुना महंगा हुआ, लेकिन 1999 तक इसके दाम गिर गए। यहां तक कि 1991 में भारत को अपने खर्च पूरे करने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा। इसके बाद उदारीकरण के दौर में अर्थव्यवस्था सुधरी और अब भारतीय रिजर्व बैंक के पास 880 मीट्रिक टन सोने का भंडार है।
केंद्रीय बैंक अब विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लाने के लिए सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, ताकि डॉलर पर निर्भरता घटे। हालांकि, इसका सीधा असर आम नागरिक पर पड़ रहा है, क्योंकि शादी-ब्याह और पारिवारिक आयोजनों में सोना खरीदना दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है।
महंगाई और मिलावट की नई चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि सोने की मांग भले ही बनी रहे, लेकिन अत्यधिक महंगाई के चलते मिलावटी सोने के कारोबार में इज़ाफा हो सकता है। आम उपभोक्ता के लिए असली और नकली सोने में अंतर करना मुश्किल होगा, जिससे उनकी परेशानी और बढ़ सकती है।
फिलहाल यह स्पष्ट है कि सोना आज भी भारत की संस्कृति और परंपरा में उतना ही आवश्यक है, जितना पहले था—बस अब इसकी चमक आम आदमी की जेब पर भारी पड़ने लगी है।

