क्या भारत हिंदू राष्ट्र है? मोहन भागवत के बयान पर देशभर में बहस
आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे बयान की जो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। क्या भारत एक हिंदू राष्ट्र है? और क्या इसके लिए संविधान की मंजूरी की जरूरत है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कोलकाता में दिए अपने भाषण में ये बातें कही हैं, जो न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में गूंज रही हैं, बल्कि आम आदमी के मन में भी कई सवाल पैदा कर रही हैं। ये बयान सिर्फ शब्द नहीं हैं, ये एक विचारधारा को दर्शाते हैं जो सालों से चली आ रही है। लेकिन क्या ये बयान देश की एकता को मजबूत करेंगे या विवाद बढ़ाएंगे? आइए, इस वीडियो में हम इस भाषण को डिटेल में समझते हैं,
चलिए शुरू करते हैं!मोहन भागवत का भाषण: क्या कहा उन्होंने?21 दिसंबर 2025 को, रविवार के दिन, कोलकाता में आरएसएस की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित '100 व्याख्यान माला' कार्यक्रम में मोहन भागवत ने अपना भाषण दिया। ये कार्यक्रम आरएसएस के शताब्दी वर्ष का हिस्सा था, जहां उन्होंने भारत को हिंदू राष्ट्र बताते हुए कहा कि इसके लिए किसी संवैधानिक मंजूरी की जरूरत नहीं है, क्योंकि ये एक शाश्वत सत्य है – जैसे सूरज पूर्व से उगता है, क्या उसके लिए भी संविधान की जरूरत है? उन्होंने कहा, "हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है। जो भी भारत को अपनी मातृभूमि मानता है, वह भारतीय संस्कृति की कद्र करता है। जब तक हिंदुस्तान की धरती पर एक भी व्यक्ति जीवित है जो भारतीय पूर्वजों की महिमा में विश्वास रखता है और उसका सम्मान करता है, तब तक भारत हिंदू राष्ट्र रहेगा। यही संघ की विचारधारा है।" भागवत जी ने ये भी जोड़ा कि अगर संसद कभी संविधान में संशोधन करके 'हिंदू राष्ट्र' शब्द जोड़ दे, तो ठीक है, लेकिन न जोड़े तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हम हिंदू हैं, और हमारा देश हिंदू राष्ट्र है – ये सच्चाई है।
उन्होंने जन्म आधारित जाति व्यवस्था को हिंदुत्व की पहचान नहीं माना और कहा कि आरएसएस हमेशा से यही कहता आया है कि भारत की संस्कृति और बहुसंख्यक आबादी का हिंदू धर्म से जुड़ाव इसे हिंदू राष्ट्र बनाता है। दोस्तों, ये बयान सुनकर आपको क्या लगता है? क्या ये सिर्फ एक संगठन की विचारधारा है, या ये देश की दिशा बदल सकता है? कमेंट में जरूर बताएं!
आरएसएस की Establishment 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी, और आज ये अपना 100वां साल मना रहा है। संघ का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना रहा है। लेकिन विवाद भी कम नहीं रहे – जैसे 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा था, हालांकि बाद में इसे हटा लिया गया। भागवत जी के बयान में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द का जिक्र आया। आपको बता दें कि संविधान की प्रस्तावना में 'सेक्युलर' (धर्मनिरपेक्ष) और 'सोशलिस्ट' शब्द 1976 में इंदिरा गांधी सरकार के दौरान 42 वें संशोधन से जोड़े गए थे, जब देश में इमरजेंसी लगी हुई थी। आरएसएस का मानना है कि भारत मूल रूप से हिंदू राष्ट्र है, और सेक्युलरिज्म का मतलब सभी धर्मों का सम्मान है, न कि हिंदू संस्कृति को नजरअंदाज करना। उन्होंने ये भी कहा कि आरएसएस कट्टर राष्ट्रवादी है, हिंदुओं की रक्षा करता है, लेकिन मुस्लिम विरोधी नहीं है। "हमारा काम पारदर्शी है। आप कभी भी आकर देख सकते हैं। अगर आपको मुस्लिम विरोधी कुछ दिखे, तो अपना विचार रखें, वरना बदल लें।"
ये बयान संघ की छवि को सुधारने की कोशिश लगता है, क्योंकि अक्सर इसे मुस्लिम-विरोधी कहा जाता है। हाल ही में, भागवत जी ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा पर भी बात की। उन्होंने कहा कि भारत को बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की मदद करनी चाहिए, और हिंदुओं को एकजुट रहना चाहिए। ये बयान ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल चल रही है, और वहां हिंदू समुदाय पर हमले की खबरें आ रही हैं। क्या कह रहे हैं लोग और पार्टियां? विपक्षी पार्टियां जैसे कांग्रेस और टीएमसी ने इसे संविधान-विरोधी बताया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि ये बयान भारत की सेक्युलर छवि को चोट पहुंचाता है, और देश की एकता के लिए खतरा है। वहीं, नागा स्टूडेंट्स फेडरेशन (एनएसएफ) ने इसकी निंदा की और कहा कि भारत एक बहु-धार्मिक राष्ट्र है, न कि सिर्फ हिंदू राष्ट्र। कुछ सेक्युलर विचारकों ने लिखा है कि 'हिंदू राष्ट्र' की परिभाषा क्या है? क्या ये मुस्लिम, ईसाई या अन्य अल्पसंख्यकों को अलग-थलग कर देगा? एक सबस्टैक लेख में केबी सिद्धू ने भागवत जी से पूछा कि क्या ये अवधारणा देश को बांटेगी? दूसरी तरफ, बीजेपी और संघ समर्थकों ने इसे सही ठहराया। अमित शाह जैसे नेताओं ने कहा कि संघ की विचारधारा राष्ट्रवाद पर आधारित है, न कि विभाजन पर।
सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी हुई है – कुछ कहते हैं कि भारत पहले से ही डी फैक्टो हिंदू राष्ट्र है, क्योंकि न्यायपालिका में भी ये विचारधारा घुस चुकी है। अब बात करते हैं इंसानियत की। कल्पना कीजिए, एक छोटे से गांव में रहने वाला मुस्लिम परिवार, या एक ईसाई स्कूल टीचर – क्या ऐसे बयान उन्हें असुरक्षित महसूस कराएंगे? भारत की सुंदरता उसकी विविधता में है – गंगा-जमुनी तहजीब, जहां हर धर्म साथ रहता है। मोहन भागवत जी का कहना है कि हिंदू राष्ट्र का मतलब सभी को सम्मान देना है, लेकिन क्या ये शब्द आम आदमी के मन में डर पैदा करते हैं? याद कीजिए, हमारे संविधान के निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था कि भारत एक सेक्युलर गणराज्य है, जहां हर नागरिक बराबर है। अगर हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं, तो क्या दलित, आदिवासी या महिलाओं की आवाज दब जाएगी? संघ खुद कहता है कि जन्म आधारित जाति गलत है, लेकिन जमीन पर क्या बदलाव आया है? ये बयान हमें सोचने पर मजबूर करता है – क्या हम एक ऐसे भारत चाहते हैं जहां हर कोई सुरक्षित महसूस करे, या जहां बहुसंख्यक की विचारधारा हावी हो? इंसानियत यही सिखाती है कि हम सब एक हैं – हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सब भारत के बच्चे।
आप क्या सोचते हैं? मोहन भागवत जी का ये भाषण आरएसएस की 100 साल पुरानी विचारधारा को दोहराता है, लेकिन आज के भारत में ये नई बहस छेड़ रहा है। क्या भारत हिंदू राष्ट्र है, या एक सेक्युलर डेमोक्रेसी? क्या संविधान से ऊपर कोई सत्य है? क्या ऐसे बयान देश को एकजुट करेंगे या बांटेंगे ? comment में जरूर बताईयेगा।
