साहिबज़ादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह , साहस, धैर्य और बलिदान की अमर गाथा
(निखिलेश महेश्वरी – विभूति फीचर्स)
आज का बालक धीरे-धीरे अपना धैर्य खोता जा रहा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि समाज में आत्महत्या, अपराध और संवेदनहीनता जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही हैं। दूसरों के प्रति सम्मान, आत्मगौरव और अपने धर्म व मूल्यों के प्रति आस्था में भी कमी दिखाई देती है। जबकि वास्तव में बालक के भीतर साहस, धैर्य, आत्मसम्मान, संवेदनशीलता और व्यवहार-कुशलता जैसे गुण स्वाभाविक रूप से विकसित होने चाहिए। यही गुण उसे परिवार, समाज, राष्ट्र और धर्म के लिए उपयोगी बनाते हैं।
यदि हमें बच्चों में इन गुणों का विकास करना है, तो उन्हें ऐसे महापुरुषों और वीर बालकों के जीवन-प्रसंग सुनाने होंगे, जिनसे वे प्रेरणा ग्रहण कर सकें। उन्हें ऐसे गीत, पुस्तकें और चलचित्रों से परिचित कराना होगा, जो सीधे उनके हृदय को स्पर्श करें और उनके भीतर आत्मगौरव तथा राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करें। जब अभिभावक, शिक्षक और समाज अपने-अपने स्तर पर यह प्रयास करेंगे, तभी ध्रुव, प्रह्लाद, हकीकत, भगत सिंह जैसे आदर्श बालक तैयार होंगे।
वीर बाल दिवस : प्रेरणा का पावन अवसर
26 दिसंबर ऐसा ही एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो साहस, आत्मगौरव और बलिदान की भावना को जागृत करता है। यह दिन ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। संभव है कि अनेक बालकों को इसके ऐतिहासिक महत्व की पूरी जानकारी न हो, इसलिए यह आवश्यक है कि हम आने वाली पीढ़ी को अपने गौरवशाली अतीत से परिचित कराएँ।
खालसा पंथ की स्थापना और संघर्ष
वर्ष 1699 में बैसाखी के पावन अवसर पर सिख धर्म के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। उनके चारों पुत्र—साहिबज़ादे अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह—इस पंथ के अभिन्न अंग थे। खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य मुगल शासन के अत्याचारों से समाज और धर्म की रक्षा करना था।
इस जनजागरण को समाप्त करने के लिए मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी को पकड़ने हेतु पूरी शक्ति झोंक दी। इसी क्रम में 20 दिसंबर 1704 की कड़ाके की ठंड में मुगल सेना ने आनंदपुर साहिब के किले पर अचानक आक्रमण कर दिया। परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी को अपने परिवार सहित किले से प्रस्थान करना पड़ा।
सरसा नदी और ऐतिहासिक बिछोह
प्रस्थान के दौरान सरसा नदी का वेग अत्यंत प्रचंड था। नदी पार करते समय गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार एक-दूसरे से बिछुड़ गया। यही वह क्षण था, जिसने इतिहास को बलिदान की अमर गाथाओं से भर दिया।
चमकौर का युद्ध और वीरगति
चमकौर में मुगलों के साथ भीषण युद्ध हुआ। धर्म और सत्य की रक्षा हेतु गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने दोनों ज्येष्ठ पुत्रों—साहिबज़ादे अजीत सिंह और जुझार सिंह—को युद्धभूमि में भेजा। अदम्य साहस और शौर्य से युद्ध करते हुए दोनों वीर साहिबज़ादे रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए और अमर हो गए।
छोटे साहिबज़ादों की गिरफ्तारी
दूसरी ओर, माता गुजरी देवी अपने दो छोटे पौत्रों—साहिबज़ादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह—के साथ एक गुप्त स्थान पर शरण लेने को विवश हुईं। दुर्भाग्यवश, रसोइए गंगू ने लोभवश उनकी सूचना मुगल अधिकारियों को दे दी। परिणामस्वरूप दोनों छोटे साहिबज़ादे सरहिंद के नवाब वजीर खान के सामने प्रस्तुत किए गए।
अडिग आस्था और अमानवीय यातनाएँ
वजीर खान ने नन्हे साहिबज़ादों पर अमानवीय अत्याचार किए और उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए विवश करने का प्रयास किया, किंतु उन्होंने अपने धर्म और आस्था से विचलित होने से स्पष्ट इंकार कर दिया।
26 दिसंबर 1704 : अमर बलिदान
अंततः 26 दिसंबर 1704 को साहिबज़ादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को निर्दयतापूर्वक सरहिंद की दीवार में जीवित चुनवा दिया गया। इस हृदयविदारक समाचार को सुनकर माता गुजरी जी ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
उस समय साहिबज़ादा जोरावर सिंह जी की आयु मात्र 9 वर्ष और साहिबज़ादा फतेह सिंह जी की आयु केवल 6 वर्ष थी। इतनी अल्प आयु में उन्होंने जो साहस, धैर्य और आत्मबल दिखाया, वह इतिहास की स्वर्णिम और अमिट कथा बन गया।
अमर संदेश
अपने वीर बालकों के बलिदान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था—
“चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार।”
यह बलिदान हमें सिखाता है कि जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में भी अपने मूल्यों और धर्म के प्रति अडिग रहना ही सच्चा वीरत्व है।
वीर बाल दिवस की घोषणा
वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। इस दिवस का उद्देश्य साहिबज़ादों के साहस, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति को चिरस्मरणीय बनाना है।
आज देशभर के विद्यालयों, महाविद्यालयों और गुरुद्वारों में इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनके माध्यम से बच्चों और युवाओं को त्याग, वीरता और आत्मगौरव की प्रेरणा दी जाती है। साहिबज़ादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह का बलिदान राष्ट्रीय एकता, धर्मनिष्ठा और मानव मूल्यों का महान संदेश देता है। उन्होंने मानवता और राष्ट्र की रक्षा के लिए जो आदर्श स्थापित किए, वे युगों-युगों तक हमें प्रेरणा देते रहेंगे।

