आजमगढ़ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किया 'पीडीए भवन' का उद्घाटन, लेकिन पूजा को लेकर उठा विवाद

SP chief Akhilesh Yadav inaugurated 'PDA Bhavan' in Azamgarh, but controversy over worship
 
SP chief Akhilesh Yadav inaugurated 'PDA Bhavan' in Azamgarh, but controversy over worship

अजय कुमार वरिष्ठ पत्रकार )  उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में, जो लंबे समय से समाजवादी पार्टी (सपा) का मज़बूत गढ़ माना जाता है, 3 जुलाई 2025 को एक बड़ा राजनीतिक आयोजन हुआ। सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने नए आवास और पार्टी कार्यालय का उद्घाटन किया, जिसे उन्होंने पीडीए भवन नाम दिया है।

72 बिस्वा भूमि पर निर्मित यह परिसर अनवरगंज में स्थित है, जिसमें अखिलेश का निजी निवास, पार्टी का केंद्रीय कार्यालय और समर्थकों के लिए एक बड़ा हॉल शामिल है। इस भवन को आगामी 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए रणनीतिक रूप से विकसित किया गया है। उद्घाटन के मौके पर अखिलेश यादव ने स्पष्ट किया कि पीडीए — यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक — समाजवादी पार्टी की भावी राजनीति की नींव बनेगा। उन्होंने कहा, "पीडीए की एकता ही 2027 में सत्ता का रास्ता खोलेगी।"

अजय कुमार वरिष्ठ पत्रकार

पूजा को लेकर उठे सवाल: पीडीए भवन, लेकिन ब्राह्मण पुजारी?

हालांकि यह आयोजन राजनीतिक रूप से सपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि था, लेकिन इसके साथ एक विवाद भी जुड़ गया। गृह प्रवेश की पूजा के लिए अखिलेश यादव द्वारा काशी के ब्राह्मण पंडितों को आमंत्रित करने की खबर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी। आलोचकों ने सवाल उठाया कि जब पूरा भवन पीडीए विचारधारा पर आधारित है, तो पूजा के लिए उसी वर्ग से किसी विद्वान को क्यों नहीं बुलाया गया?

सूत्रों के अनुसार, काशी के पंडितों ने पूजा में सम्मिलित होने से इनकार कर दिया, जिसकी वजह इटावा में हाल ही में हुआ कथित ‘कथावाचक विवाद’ बताया जा रहा है। इस विवाद में अखिलेश के कुछ पुराने बयानों को ब्राह्मण समुदाय ने अपमानजनक माना था। अंततः पूजा स्थानीय पुजारी चंदन कुशवाहा द्वारा करवाई गई।

इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचनाओं की बाढ़ आ गई। एक यूज़र ने लिखा:"भवन का नाम तो पीडीए रख लिया, लेकिन पूजा ब्राह्मणों से ही करवाई। क्या पीडीए में कोई विद्वान नहीं था?" दूसरे ने कटाक्ष करते हुए कहा:"कथनी और करनी में फर्क साफ है।"

ब्राह्मण समुदाय की नाराज़गी और संभावित सियासी असर

इस मुद्दे ने ब्राह्मण समाज की नाराज़गी को भी जन्म दिया। कुछ संगठनों — जैसे ब्राह्मण महासभा और विश्व हिंदू महासंघ — ने इस आयोजन का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि अखिलेश यादव ब्राह्मण समुदाय की गरिमा को ठेस पहुँचा रहे हैं। विरोधस्वरूप कुछ ब्राह्मण नेताओं ने उन पंडितों को सामाजिक रूप से बहिष्कृत करने की बात भी कही जो पूजा में शामिल हुए। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में ब्राह्मणों की हिस्सेदारी करीब 10 प्रतिशत मानी जाती है, ऐसे में इस असंतोष का असर 2027 के चुनावों में सपा पर पड़ सकता है।

सुरक्षा में चूक और विरोध प्रदर्शन

इस समारोह के दौरान सुरक्षा व्यवस्था भी सवालों के घेरे में आ गई जब एक युवक मंच के नज़दीक तक पहुंच गया। हालांकि पुलिस ने उसे तुरंत हिरासत में लिया, लेकिन यह घटना अखिलेश की सुरक्षा को लेकर चिंता का विषय बन गई।

राजनीतिक रणनीति या छवि का संकट?

पीडीए भवन को समाजवादी पार्टी ने एक राजनीतिक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी प्रस्तुत किया है, जहां युवाओं को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने का प्रयास होगा। लेकिन उद्घाटन कार्यक्रम से जुड़ा विवाद अखिलेश यादव की समावेशी राजनीति और पीडीए रणनीति पर सवाल खड़े करता है। विश्लेषकों की मानें तो यह विरोधाभास उनकी राजनीतिक छवि को प्रभावित कर सकता है, खासकर जब वे पार्टी को यादव-मुस्लिम छवि से आगे ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।

सियासी दांव उलटा तो नहीं पड़ गया?

जहां एक ओर पीडीए भवन पूर्वांचल में सपा के लिए एक संगठित राजनीतिक केंद्र बन सकता है, वहीं पूजा को लेकर उठा विवाद और ब्राह्मण समुदाय की नाराज़गी, अखिलेश यादव की समावेशी राजनीति की परीक्षा बन गई है।
अब देखना यह है कि 2027 में यह रणनीति उन्हें सत्ता के और करीब ले जाती है, या विरोधाभास उनके रास्ते में रुकावट बनते हैं।

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