sant surdas jayanti 2025 : भोर के सूर्य की तरह सदैव प्रकाशित और पूजित महाकवि सूरदास

Surdas, the great poet who always shines and is revered like the morning sun
 
sant surdas jayanti 2025

(डॉ. मुकेश कबीर-विभूति फीचर्स)   महाकवि सूरदास को हिंदी साहित्य का सूर्य माना जाता है। उनके बारे में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है जो आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित है -


"सूर सूर तुलसी शशि उड़गन केशव दास,
और कवि खदयोत सम जहां तहां करत प्रकाश"

sant surdas jayanti 2025
 हिंदी साहित्य जगत में सर्वश्रेष्ठता को लेकर  सूर और तुलसी में हमेशा से एक तुलना, एक चर्चा जरूर रही है और बच्चन जी को छोड़कर सभी महाकवियों ने सूर को सर्वश्रेष्ठ माना है,सिर्फ बच्चन जी ने तुलसी को सर्वश्रेष्ठ माना है।बेशक ज्ञान,भाषा और कला पक्ष की दृष्टि से तुलसी सर्वश्रेष्ठ हैं लेकिन भावपक्ष की बात करें तो सूर का कोई मुकाबला ही नहीं है। सूरदास जी की सबसे बड़ी खासियत उनकी मौलिकता और भावनात्मक गहराई ही है और यह सब उन्होंने तब लिखा है जबकि वो जन्मांध थे। उन्हें आंखों से दिखाई नहीं देता था लेकिन वे मन की आंखों से देखते थे और जैसा देखते वैसा ही गाते थे और प्रमाणिक काव्य  रचते थे।

उनके काव्य की प्रमाणिकता के कारण  कई विद्वानों ने तो सूर का जन्मांध होना स्वीकार ही नहीं किया,उनका तर्क है कोई भी जन्मांध व्यक्ति श्रृंगार का इतना सटीक वर्णन कैसे कर सकता है। इस संदर्भ में वैष्णव संप्रदाय में तो एक किस्सा बड़ा मशहूर है कि सूरदास के श्रृंगार और सौंदर्य वर्णन की सटीकता के कारण लोगों को शक होता था कि या तो सूरदास जी अंधे होने का नाटक करते हैं या किसी से श्रृंगार के बारे में पूछकर काव्य रचना करते हैं। इसी की पुष्टि के लिए एक दिन पुजारी जी के बेटे ने श्रीनाथ जी को कोई श्रृंगार ही नहीं कराया और सिर्फ मोतियों की माला धारण करा दी और साथ ही सूरदास जी से पहले किसी को दर्शन करने की अनुमति भी नहीं दी। लेकिन तभी सूरदास जी का आना हुआ और आते से ही उनकी नजर श्रीनाथ जी के स्वरूप पर पड़ी तो उनको जोर से हंसी आ गई तब पुजारी जी ने उनसे हंसी का कारण पूछा तो सूरदास जी ने तुरंत एक पद सुनाया "आज हरि देखे नंगम नंगा ,बसंहीन छवि उठति तरंगा" इतना सुनते ही पुजारी जी सूरदास जी के पैरों में गिर गए और क्षमा प्रार्थना भी की।


यह किस्सा अक्सर धार्मिक चर्चाओं और भागवत कथाओं काफी सुना सुनाया जाता है। अगर हम केवल साहित्यिक नजरिए से देखें तो भी सूरदास की रचनाओं में अद्भभुत गहराई मिलती है। उनका भावपक्ष इतना प्रबल है कि उनको पढ़ते पढ़ते सामान्य जन भी भाव विह्वल जो जाते हैं। सूरदास की भक्ति और भावनात्मक गहराई का ही परिणाम है कि आज बालकृष्ण और लड्डू गोपाल की पूजा घर घर में हो रही है। आज हमें  बालक कृष्ण के दही से सने हुए हाथ और होंठ के जो फोटो देखने को मिलते हैं उसकी सबसे पहली परिकल्पना सूरदास जी ने ही की थी। बालक कृष्ण का चोरी चोरी माखन खाना,या माखन खाते हुए मटकी फैला देना और अपने नन्हे हाथ और नाज़ुक होंठो को माखन से सना लेना यह सब सूरदास जी की दिव्य दृष्टि की ही देन है, उनसे पहले बालकृष्ण का ऐसा अद्भुत वर्णन किसी ने नहीं किया। सूरदास जी मन की आंखों से बालक कृष्ण की लीलाएं देखते थे और फिर उनको गाते थे इसीलिए उनको वैष्णव संप्रदाय का तो जहाज भी कहा जाता है। सूरदास ही थे जो वैष्णव ख़ासकर वल्लभ संप्रदाय के मूल भाव को जन जन तक पहुंचा सके इसीलिए अष्टछाप के कवियों में सूरदास जी का सर्वोत्कृष्ट स्थान है,वो न सिर्फ आचार्य बल्लभ के शिष्य थे बल्कि उनके विचार और भाव को शब्दों के जरिए मूर्त रूप भी देते रहे इसीलिए आज तक वैष्णव मंदिरों में सूरदास के पद गाए जाते हैं

,मंदिरों से ही उनके पद साहित्य में आए और साहित्य से भजन का रूप लेकर मंचों तक आए ,आज देश में एक भी ऐसा भजन गायक नहीं हैं जो सूरदास के पद न गाता हो और एक भी कथा वाचक ऐसा नहीं है जो सूरदास जी के पदों के बिना भागवत कथा करता हो। यह सूरदास जी के भाव पक्ष की ही प्रबलता  है कि आज पांच सौ साल बाद भी लोग उनके काव्य को सुनकर गदगद हो जाते हैं । उनके पद कई सालों से प्रचलित हैं लेकिन फिर भी उनको बार बार सुनना अच्छा लगता है। हमारे देश में रामायण पाठ की बहुत पुरानी परम्परा रही है इसलिए रामायण हमारे देश के हर घर में मिलती है, सुनी सुनाई जाती है। एक भक्ति आयोजन की तरह उसका पूजा पाठ होता है,हर शुभ अवसर पर रामायण पाठ की परंपरा है इसलिए रामचरित मानस का इतना प्रसिद्ध और सम्मानित होना लाजिमी है लेकिन सूरदास के पदों का ऐसा कोई नियमित आयोजन नहीं होता फिर भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं है। बल्कि दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। भारत में यदि उनकी लोकप्रियता कम होती है तो सुदूर अमेरिका में सूर के पद गाए जाते हैं।

मैं वृंदावन में बहुत से अंग्रेजों से मिला हूं जो सूरदास के पद बहुत भाव से गाते हैं ,उनका अर्थ भी जानते हैं और पूछने पर बता भी देते हैं। भक्ति मार्ग में सूर को वैष्णव संप्रदाय का जहाज कहा जाता है लेकिन वर्तमान में वे ब्रज भाषा के भी जहाज हैं,बृज के सबसे बड़े वाहक हैं। बृज के अलावा कहीं बृज भाषा पढ़ने सुनने को मिलती है तो उसका सबसे बड़ा कारण सूरदास ही हैं। उन्होंने भाषा भी इतनी सरल लिखी है कि छोटे बच्चे भी समझ सकते हैं और यही एक  अच्छे कवि की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि वह सरल भाषा में बड़ी बात करता है। साहित्य जगत में एक कहावत प्रचलित है कि सरल लिखना ही सबसे कठिन है और यह सबसे कठिन काम ही सूरदास ने किया है जो उनकी वर्षों की भक्ति का परिणाम है। सूरदास जी की वर्षों की तपस्या का ही परिणाम है जिन्होंने एक लाख से भी ज्यादा पदों की रचना की थी। उनकी अकेली सूरसागर ही ऐसी है जिसमें एक लाख पद थे,हालांकि अब इसके सिर्फ पांच दस हजार पद ही उपलब्ध हैं। इसके अलावा भी उनकी अन्य पुस्तकें हैं जिनमें सूरसाराबली और साहित्य लहरी भी शामिल है।आमतौर पर सूर कृष्ण के लीला वर्णन के लिए ही जाने जाते हैं लेकिन उन्होंने इनके अलावा भी रचनाएं की हैं जिनमें  नल दमयंती उनकी एक बहुत प्रसिद्ध रचना है। नल दमयंती की कथा अपने आप में बहुत गहरी है, इस कथा में प्रेम की तीव्रतम अभिव्यक्ति है।

इसका वर्णन सूरदास जी ने काव्य रूप में किया है। इसको सूरदास की मेघदूत कहा जा सकता है लेकिन उनकी कृष्ण लीलाओं के मुकाबले इसको लोकप्रियता कम हासिल हुई। ऐसा अक्सर हर कवि के साथ होता है। हर प्रसिद्ध कवि की  कुछ रचनाएं ही ज्यादा लोकप्रिय हो पाती हैं फिर चाहे वे सूरदास ,तुलसीदास हों केशव ,भूषण या फिर बच्चन सभी की एक दो रचनाएं ही प्रसिद्ध हुई हैं बाकी रचनाएं  एक प्रसिद्ध रचना के  साए में ही ढंकी रहीं। लेकिन इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि कवि ने कितना लिखा है महत्वपूर्ण यह है कि कवि ने क्या और कैसा लिखा है और जब कैसा लिखा है पर चर्चा की जाए तो सूरदास का कोई मुकाबला नहीं। यही कारण है कि बड़े बड़े विद्वानों ने भी सूर को साहित्य जगत का सूर्य ही माना है ,एक ऐसा सूर्य जो हर युग में प्रकाशित है, आज सूर और कृष्ण भक्ति एक दूसरे के पर्याय हो चुके हैं ,दुनिया में जब तक सूर साहित्य रहेगा तब तक कृष्ण भक्ति होती रहेगी और जब तक कृष्णभक्ति होगी तब तक सूरदास रहेंगे,बिल्कुल भोर के सूर्य की तरह प्रकाशित और पूजित ।(विभूति फीचर्स)

Tags