अरावली बचेगी तो दिल्ली बचेगी: क्यों चर्चा में हैं अरावली पहाड़ियां और क्या है पूरा मामला?

 
“Save Aravalli to Save Delhi”: Akhilesh Yadav Warns of Pollution, Tourism Loss and Environmental Crisis

अरावली बचेगी तो दिल्ली बचेगी: क्यों चर्चा में हैं अरावली पहाड़ियां और क्या है पूरा मामला?

ज़रा सोचिए… जब हिमालय अपनी किशोरावस्था में था, तब अरावली पहाड़ियां बुज़ुर्गों वाली समझदारी के साथ खड़ी थीं। यह कोई मज़ाक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सच्चाई है। अरावली पहाड़ियां दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक हैं, जिनकी उम्र लगभग 3 अरब साल मानी जाती है। राजस्थान से लेकर हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर तक फैली ये पहाड़ियां सिर्फ पत्थर और मिट्टी का ढेर नहीं हैं, बल्कि उत्तर भारत के लिए एक प्राकृतिक एयर प्यूरिफायर, जल-संरक्षक और प्रदूषण से बचाने वाली ढाल हैं।

आखिर अरावली अचानक चर्चा में क्यों आ गई?

इन दिनों अरावली को लेकर विवाद इसलिए तेज़ हो गया है क्योंकि सरकार इसकी ऊंचाई के आधार पर नई परिभाषा तय करने पर विचार कर रही है। आसान शब्दों में कहा जाए तो—जो पहाड़ी तय की गई ऊंचाई से कम होगी, उसे अरावली का हिस्सा ही नहीं माना जाएगा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे अरावली के बड़े हिस्से को गैर-पहाड़ी घोषित किया जा सकता है, जिससे वहां खनन, निर्माण और व्यावसायिक परियोजनाओं को बढ़ावा मिल सकता है।

पर्यावरणविदों को डर है कि अगर ऐसा हुआ तो अरावली का प्राकृतिक अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। यानी जिन पहाड़ियों ने सदियों तक प्रकृति की रक्षा की, वही अब खुद बचाव की मांग कर रही हैं।

राजनीति में भी गर्माया मुद्दा

इसी विवाद के बीच राजनीति भी सक्रिय हो गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कड़ी चेतावनी दी है। उनका साफ संदेश है—
“अरावली बचेगी तो दिल्ली बचेगी।”

अखिलेश यादव ने एक लंबी पोस्ट के जरिए कहा कि अरावली को बचाना कोई विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरी जिम्मेदारी है। यह कोई ऐसा विषय नहीं है जिसे “बाद में देख लेंगे” कहकर टाला जा सके। उनके मुताबिक, अरावली दिल्ली-एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच है।

अरावली क्यों है इतनी ज़रूरी?

अखिलेश यादव के अनुसार, अरावली पहाड़ियां वायु प्रदूषण को कम करने, बारिश के पानी को ज़मीन में समाने देने और तापमान को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। अगर ये पहाड़ियां कमजोर हुईं या खत्म हो गईं, तो दिल्ली का मौसम पूरी तरह बेकाबू हो सकता है—कभी भीषण गर्मी, कभी असहनीय सर्दी।

उन्होंने यह भी कहा कि अरावली एनसीआर की जैव विविधता की रीढ़ है। यहां मौजूद वेटलैंड्स, पक्षी और वन्यजीव इसी पारिस्थितिक तंत्र पर निर्भर हैं। अगर यह रीढ़ टूट गई, तो पूरा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा

अखिलेश यादव ने भावनात्मक पहलू पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि अरावली सिर्फ एक भूगोलिक संरचना नहीं, बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है। जैसे कुतुब मीनार और पुराना किला इतिहास की पहचान हैं, वैसे ही अरावली भी इस क्षेत्र की पहचान है। इसके नष्ट होने से यह विरासत अधूरी हो जाएगी।

स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा

अरावली के नुकसान का सबसे बड़ा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। अखिलेश यादव ने चेतावनी दी कि अगर अरावली का विनाश नहीं रोका गया, तो दिल्ली के नागरिकों को हर सांस के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। प्रदूषण का सबसे बुरा असर बुज़ुर्गों, बीमार लोगों और बच्चों पर पड़ेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि बढ़ते प्रदूषण की वजह से दिल्ली का मेडिकल और अस्पताल क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा है। इलाज के लिए आने वाले लोग भी अब दिल्ली आने से हिचकने लगे हैं।

पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर असर

अखिलेश यादव ने आशंका जताई कि अगर यही हाल रहा तो विदेशी पर्यटक तो छोड़िए, देश के पर्यटक भी दिल्ली नहीं आएंगे। दिल्ली की पहचान “दिल वालों की दिल्ली” से बदलकर “इनहेलर वालों की दिल्ली” बन सकती है।

उन्होंने कहा कि इससे दिल्ली की आर्थिक स्थिति भी कमजोर होगी। बड़े राजनीतिक, शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन प्रभावित होंगे। यहां तक कि ओलंपिक, कॉमनवेल्थ या एशियाड जैसे अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों की संभावनाएं भी खत्म हो सकती हैं।

निष्कर्ष

अखिलेश यादव का संदेश साफ है—

  • अरावली है तो हवा है

  • हवा है तो ज़िंदगी है

  • और ज़िंदगी है तो दिल्ली है

अंत में उन्होंने दिल्लीवासियों से अपील की कि अरावली को सिर्फ नक्शे पर नहीं, बल्कि अपने दिल में जगह दें। क्योंकि अगर अरावली बची रही, तो दिल्ली न सिर्फ ज़िंदा रहेगी, बल्कि खुलकर सांस भी ले सकेगी।

वरना भविष्य का नारा कुछ ऐसा हो सकता है—
“दिल्ली में स्वागत है, मास्क फ्री नहीं… एंट्री फ्री है!”

Tags