स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू की अमिट भूमिका पर लखनऊ में विचार–गोष्ठी

A symposium in Lucknow on the indelible role of Urdu in the freedom movement
 
A symposium in Lucknow on the indelible role of Urdu in the freedom movement
लखनऊ डेस्क (प्रत्यूष पाण्डेय)।
ग्लोरियस फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा नेहरू युवा केंद्र, चौक में उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के सहयोग से “स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू भाषा और साहित्य की भूमिका” विषय पर एक विचार–गोष्ठी का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार अहमद इब्राहिम अल्वी ने की।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अहमद इब्राहिम अल्वी ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू भाषा और साहित्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। अनेक उर्दू लेखकों और कवियों ने देश की आज़ादी के लिए त्याग और बलिदान दिए। अंग्रेज़ी शासन के दौरान उर्दू से जुड़े सैकड़ों लोगों को जेलों में डाला गया, लेकिन इसके बावजूद उर्दू की आवाज़ को दबाया नहीं जा सका।

कार्यक्रम के विशेष अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. अब्बास रज़ा नय्यर, जिला उद्योग केंद्र के सहायक आयुक्त वी.डी. चौधरी तथा वरिष्ठ पत्रकार आबिदुल्लाह नासिर रहे।
प्रो. अब्बास रज़ा नय्यर ने कहा कि उर्दू भाषा का गौरवशाली इतिहास रहा है। इसके नारों, शायरी और लेखन ने लोगों के दिलों में जोश और देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित किया।
वहीं आबिदुल्लाह नासिर ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू पत्रकारिता ने भी अहम भूमिका निभाई और अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को जागरूक किया।
कार्यक्रम का संचालन मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, लखनऊ कैंपस के डॉ. मसीउद्दीन खान ने किया। उन्होंने सफल आयोजन के लिए नज़र अहमद शाहब चिश्ती का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के संयोजक नज़र अहमद शाहब चिश्ती और मोहम्मद काशिफ ने अतिथियों का स्वागत किया।
सेमिनार में प्रो. रेशमा खान परवीन, डॉ. एहतेशाम अहमद खान, परवेज़ मलिक ज़दाहू, डॉ. नज़हत फातिमा सहित अनेक विद्वानों ने भाग लिया। वक्ताओं ने कहा कि 1857 के बाद अंग्रेज़ी शासन ने लेखकों और कवियों पर पाबंदियां लगाईं, लेकिन प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों ने प्रतिबंधों के बावजूद अपनी कलम नहीं रोकी।
इस अवसर पर जोश मलीहाबादी, चकबस्त, मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना हसरत मोहानी जैसे महान साहित्यकारों के योगदान को विशेष रूप से याद किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत क़ुरआन पाक की तिलावत से हुई। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के विद्वानों तथा शहर के प्रतिष्ठित लेखकों ने शोधपरक लेख प्रस्तुत किए। इनमें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के सुपरिटेंडेंट अहमद अशरफ फिरदौसी, पत्रकार गुफरान नसीम, मोहम्मद रशाद खान, अल्लाह सिद्दीकी सहित कई नाम शामिल रहे।
सेमिनार में विशेष रूप से अकील फारूकी, मसीहुद्दीन खान, नीर उमर, नदीम अहमद, सहर टीवी के सरवर हसीन, हारिस इब्राहिम अल्वी, सेफी आदि मौजूद रहे। वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि उर्दू के बिना भारत की आज़ादी की कल्पना अधूरी है। कार्यक्रम के समापन पर उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रतिभागियों को ट्रॉफी देकर सम्मानित किया गया।

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