रामचरितमानस में व्यंग्य के रंग : तुलसीदास की दृष्टि से समाज का आइना

(विवेक रंजन श्रीवास्तव – विभूति फीचर्स) रामचरितमानस को सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ कहना इसकी व्यापकता को सीमित करना होगा। यह भारतीय लोकजीवन की भावनाओं, विश्वासों और व्यवहारों का ऐसा अद्वितीय दस्तावेज़ है, जिसमें भक्ति, प्रेम, वीरता, करुणा के साथ-साथ हास्य और व्यंग्य का भी अनोखा समावेश है। गोस्वामी तुलसीदास ने न केवल धर्म और अध्यात्म को सरल भाषा में प्रस्तुत किया, बल्कि समाज की विसंगतियों, मिथ्याचार, ढोंग और अहंकार पर भी करारा व्यंग्य किया है। यही कारण है कि रामचरितमानस आज भी जनमानस से गहराई से जुड़ा हुआ है।
नारद की अहंकार कथा: जब ज्ञान हार गया मोह से (बालकांड)
जब नारद मुनि अपनी कठोर तपस्या का बखान करते हुए भगवान शिव के पास जाते हैं और फिर विष्णु से एक रूपवती कन्या को पत्नी के रूप में मांगते हैं, तो तुलसीदास ने इस प्रसंग में व्यंग्य की महीन परत चढ़ाई:
"बिप्र चाल रिसाल बिलग भगति ग्यान बिराग।
निपट निरखि प्रभु मोहबस कीन्हे मृग नयना त्याग।।"
यहाँ व्यंग्य यह है कि जिन नारद जी ने ज्ञान-वैराग्य की दुहाई दी थी, वे रूप-मोह में उलझ जाते हैं। शिव मुस्कराते हैं, विष्णु लीला करते हैं, और अंततः नारद का दर्प टूटता है। यह प्रसंग धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन का भी माध्यम बन जाता है।
मंथरा: कुरूपता और कुटिलता का व्यंग्यात्मक चित्रण (अयोध्याकांड)
"कुबरी कलमुंखी कुटिल कपट गाल भरे।
नीच जाहि गृह बीच भूत बस न धरे।।"
तुलसीदास मंथरा के माध्यम से कुरूपता, कपट और छल की व्याख्या इस तरह करते हैं कि उसके चरित्र से घृणा के साथ-साथ एक हास्य का भाव भी जागता है। यह तीखा व्यंग्य उस मानसिकता पर है जो बाहरी रूप से ही चरित्र का मूल्यांकन करती है।
कैकेयी और वरदानों का उल्टा गणित (अयोध्याकांड)
"माँगेउ रामहि बन को जोगु।
भूप भुअंग सम बिछुरत भोगु।।"
कैकेयी द्वारा राम को वनवास भेजने की मांग को तुलसीदास एक गहरी विडंबना के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यहाँ वरदान की स्थिति को उलटते हुए तुलसीदास यह बताना चाहते हैं कि कभी-कभी माँग वही होती है, पर परिणाम उसका विपरीत होता है — और यही दृश्य करुणा के साथ-साथ तीखा व्यंग्य बन जाता है।
लक्ष्मण की तीखी ज़ुबान और परशुराम पर व्यंग्य (बालकांड)
"लखन कहा सुनु भृगुकुल भूषण।
भट भटेश भय बिभूषण।।"
यहां लक्ष्मण परशुराम की क्रोधमयी मुद्रा पर चुटीले शब्दों से प्रहार करते हैं। उन्हें ‘भय बिभूषण’ कहना एक अद्भुत व्यंग्य है — ऐसा योद्धा जो डराने के बजाय खुद डरावना दिखता है। इस तरह की वाणी रामलीलाओं में दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण होती है।
अंगद का रावण दरबार में संदेश और व्यंग्यपूर्ण चेतावनी (लंका कांड)
"कहहिं सत्य रघुबीर सहाय।
जो न देसि सुरपति पद पाई।।"
अंगद, रावण के सामर्थ्य पर व्यंग्य करते हुए उसे कुमंत्रों से बचने की सलाह देते हैं। साथ ही उनका रावण दरबार में पैर जमाकर सेना को हिला न पाने देना — यह दृश्य हास्य और व्यंग्य का क्लासिक उदाहरण है।
शबरी के बेर और भक्तिभाव में छिपा विनोद (अरण्यकांड)
"चखि चखि देई राम कहँ दीन्हा।
प्रेम सहित प्रभु कबहुँ न हीन्हा।।"
शबरी द्वारा बेर चख-चख कर राम को देना — यह दृश्य व्यंग्य नहीं, बल्कि मधुर हास्य और भक्ति का अनूठा संगम है। यह दर्शाता है कि भगवान को प्रेम अधिक प्रिय है, रूप या विधि नहीं।
विभीषण की विदाई और रावण की प्रतिक्रिया (सुंदरकांड)
"कहा – कहहु बिबीषन बड़ भाई।
रामहि समर समर समुझाई।।"
रावण द्वारा विभीषण को तंज के रूप में 'बड़का ज्ञानी' कहना, उसकी असहिष्णुता और अहंकार का व्यंग्यात्मक चित्रण है। यह दिखाता है कि जब अहंकार बढ़ता है, तो व्यंग्य उसका आईना बन जाता है।
हनुमान और राक्षसियों की अशोक वाटिका में हलचल (सुंदरकांड)
"लखि कपि सुरतिन्ह करहिं कुचालि।
सबै उठाइं करहिं कर तालि।।"
हनुमान की हरकतों को देखकर राक्षसियों की प्रतिक्रिया, तुलसीदास के हास्यबोध का प्रमाण है। यहाँ दृश्य में विनोद है, लेकिन उसमें भी हनुमान की भक्ति और उद्देश्य स्पष्ट झलकते हैं।
निष्कर्ष: व्यंग्य का अर्थपूर्ण प्रयोग
रामचरितमानस भले ही भक्ति का महाग्रंथ हो, पर तुलसीदास ने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक, नैतिक और धार्मिक संदेशों को और अधिक प्रभावशाली बना दिया है। इन प्रसंगों में छुपा विनोद न केवल कथा को रोचक बनाता है, बल्कि पाठकों को सोचने पर भी विवश करता है। यही कारण है कि यह ग्रंथ आज भी जनमानस की आत्मा बना हुआ है।