शरद पूर्णिमा : पौराणिक आस्था और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संगम


पौराणिक महत्व
पुराणों में वर्णित है कि शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ दिव्य महारास का आयोजन किया था। यह केवल नृत्य नहीं था, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक था। इसीलिए इस दिन को “रास पूर्णिमा” भी कहा जाता है।
स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, इस रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जागरण करने वालों को समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। ‘को-जागर्ति’ अर्थात् कौन जाग रहा है से ही ‘कोजागरी पूर्णिमा’ नाम की उत्पत्ति हुई है।
कई मान्यताओं में यह भी कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। इसलिए इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन और घरों की सजावट का महत्व है।
धार्मिक परंपराएं
शरद पूर्णिमा को वर्ष की सबसे चांदनी भरी रात कहा जाता है। परंपरा के अनुसार इस दिन लोग खीर बनाकर खुले आकाश के नीचे रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि चांदनी की अमृतमयी किरणें खीर को औषधीय गुणों से भर देती हैं। अगले दिन यह खीर प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है।
इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। महिलाएं व्रत रखकर अपने परिवार के सुख-सौभाग्य की कामना करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से महत्व
खगोल विज्ञान के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति विशेष होती है। इस समय चांदनी की किरणें सीधे धरती पर प्रभाव डालती हैं। वातावरण शुद्ध और नमीयुक्त होने के कारण चंद्र किरणों में ऊर्जा और औषधीय गुण आ जाते हैं।
आयुर्वेद में शरद ऋतु को पित्त दोष की वृद्धि का समय बताया गया है। चांदनी की ठंडक इसे संतुलित करती है। चांदनी में रखे गए दूध या खीर में सूक्ष्म तत्व समाहित हो जाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक शांति बढ़ाने में सहायक माने जाते हैं।
वैज्ञानिक शोधों में यह भी पाया गया है कि इस रात की चांदनी में कैल्शियम और सोडियम जैसे सूक्ष्म तत्व मौजूद रहते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
ध्यान और स्वास्थ्य लाभ
शरद पूर्णिमा की रात ध्यान और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है। खुले आकाश के नीचे चंद्रमा की रोशनी में बैठकर ध्यान या प्राणायाम करने से मानसिक तनाव कम होता है और एकाग्रता बढ़ती है। यह प्राकृतिक थेरेपी नींद की समस्या, रक्तचाप और त्वचा संबंधी विकारों में भी लाभकारी मानी जाती है।
सांस्कृतिक विविधता
भारत के विभिन्न राज्यों में शरद पूर्णिमा को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
-
बंगाल और ओडिशा में इसे कोजागरी लक्ष्मी पूजा कहा जाता है।
-
महाराष्ट्र में इसे कोजागरी पौर्णिमा के रूप में जाना जाता है।
-
उत्तर भारत में इसे शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा कहा जाता है।
-
दक्षिण भारत में इसे कौमुदी उत्सव के नाम से मनाया जाता है।
इस अवसर पर कई जगहों पर रासलीला, भजन संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जो समाज में प्रेम और एकता का संदेश देते हैं।
